स्वर्गारोहणपर्व- महाभारत (अठारहवाँ अध्याय)
महाभारत स्वर्गारोहणपर्व इस पर्व में आप पढ़ेंगे स्वर्ग में नारद के साथ युधिष्ठिर का संवाद, युधिष्ठिर दिव्य लोक में श्री कृष्ण और अर्जुन से मिलते हैं।
महाभारत स्वर्गारोहणपर्व इस पर्व में आप पढ़ेंगे स्वर्ग में नारद के साथ युधिष्ठिर का संवाद, युधिष्ठिर दिव्य लोक में श्री कृष्ण और अर्जुन से मिलते हैं।
महाप्रास्थानिकपर्व मे आप पढ़ेंगे युधिष्ठिर वृष्णि वंशियों का श्राद्ध करके, प्रजाजनों की अनुमति लेकर द्रौपदी के साथ युधिष्ठिर आदि पाण्डव महाप्रस्थान करते हैं।
मौसलपर्व मे ॠषि-शापवश साम्ब के उदर से मुसल की उत्पत्ति तथा समुद्र-तट पर मुसलकणों से उगे सरकण्डों से यादवों आपस मे ही का लड़कर विनष्ट हो जाने का वर्णन शामिल है।
आश्रमवासिकपर्व में भाइयों समेत युधिष्ठिर और कुन्ती द्वारा धृतराष्ट्र तथा गान्धारी की सेवा, व्यास जी के समझाने पर धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती को वन में जाने देना, वहाँ जाकर इन तीनों का ॠषियों के आश्रम में निवास करना,
आश्वमेधिकपर्व में महर्षि व्यास द्वारा यज्ञ के लिए धन प्राप्त करने का उपाय युधिष्ठिर से बताना, अर्जुन द्वारा कृष्ण से गीता का विषय पूछना, श्री कृष्ण द्वारा अनेक आख्यानों द्वरा अर्जुन का समाधान करना, ब्राह्मणगीता का उपदेश, अन्य आध्यात्मिक बातें, अर्जुन द्वारा कृष्ण से गीता का विषय पूछना, ब्राह्मणगीता का उपदेश।
भीष्म युधिष्ठिर को नाना प्रकार से तप, धर्म और दान की महिमा बतलाते हैं और अन्त में युधिष्ठिर पितामह की अनुमति पाकर हस्तिनापुर चले जाते हैं। इसमें भीष्म के पास युधिष्ठिर का जाना, युधिष्ठिर की भीष्म से बात, भीष्म का प्राणत्याग, युधिष्ठिर द्वारा उनका अन्तिम संस्कार।
में भीष्म के धराशायी होने पर कर्ण का आगमन और युद्ध करना, सेनापति पद पर द्रोणाचार्य का अभिषेक, द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण, अभिमन्यु द्वारा पराक्रम और व्यूह में फँसे हुए अकेले नि:शस्त्र अभिमन्यु का कौरव महारथियों द्वारा वध, अभिमन्यु के वध से पाण्डव-पक्ष में शोक, कृष्ण द्वारा सहयोग का आश्वासन, अर्जुन का द्रोणाचार्य तथा कौरव-सेना से भयानक युद्ध, अर्जुन द्वारा जयद्रथ का वध, कर्ण द्वारा घटोत्कच का वध, धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य का वध।
महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायणकाव्य का निर्माण कर लव-कुशको पढ़ाना, लव और कुश का अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो रामदरबार में रामायण गान सुनाना।
उद्योग पर्व में विराट की सभा में पाण्डव पक्ष से श्रीकृष्ण, बलराम, सात्यकि का एकत्र होना और युद्ध के लिए द्रुपद की सहायता से पाण्डवों का युद्धसज्जित होना, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को और धृतराष्ट्र द्वारा दुर्योधन को समझाना, पाण्डवों से परामर्श कर कृष्ण द्वारा शान्ति प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास जाना, दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का षडयन्त्र करना, लौटे हुए श्रीकृष्ण द्वारा कौरवों को दण्ड देने का परामर्श, दोनों पक्षों की सेनाओं का वर्णन, भीष्म-परशुराम का युद्ध आदि विषयों का वर्णन है।
विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि में विराट नगर में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, युधिष्ठिर द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, कौरवों द्वारा विराट की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, अर्जुन द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।
आदिपर्व मे कथा-प्रवेश के बाद च्यवन का जन्म, पुलोमा दानव का भस्म होना, जनमेजय के सर्पसत्र की सूचना, नागों का वंश, कद्रू कद्रू और विनता की कथा, देवों-दानवों द्वारा समुद्र मंथन, परीक्षित का आख्यान, सर्पसत्र राजा उपरिचर का वृत्तान्त, व्यास आदि की उत्पत्ति, दुष्यन्त-शकुन्तला की कथा, पुरूरवा, नहुष और ययाति के चरित्र का वर्णन, भीष्म का जन्म और कौरवों-पाण्डवों की उत्पत्ति, कर्ण-द्रोण आदि का वृत्तान्त, द्रुपद की कथा, लाक्षागृह का वृत्तान्त, हिडिम्ब का वध और हिडिम्बा का विवाह, बकासुर का वध, धृष्टद्युम्न और द्रौपदी की उत्पत्ति, द्रौपदी-स्वयंवर और विवाह, पाण्डव का हस्तिनापुर में आगमन, सुन्द-उपसुन्द की कथा, नियम भंग के कारण अर्जुन का वनवास, सुभद्राहरण और विवाह, खाण्डव-दहन और मयासुर रक्षण की कथा वर्णित है।