भगवान शिव जन्म कथा | What Is The Shiv Janm katha
शिव जन्म- जब संपूर्ण ब्रह्मांड जलमग्न था, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा कोई भी अस्तित्व में नहीं था। तब भगवान विष्णु ही शेषनाग पर विश्राम करते हुए नजर
शिव जन्म- जब संपूर्ण ब्रह्मांड जलमग्न था, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा कोई भी अस्तित्व में नहीं था। तब भगवान विष्णु ही शेषनाग पर विश्राम करते हुए नजर
मुख पृष्ठ संपूर्ण कवच “श” से “ह” तक ॥ 卐 ॥॥ श्री गणेशाय नमः ॥॥ श्री कमलापति नम: ॥॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते
भारतीय पौराणिक कथाएं साधारण अच्छाई और बुराई से परे है। हिन्दू पुराणों में हर कदम पर एक दिलचस्प कहानी है। ऐसी ही एक कहानी लंकापति रावण की है। रावण ने खलनायक की भूमिका निभाई,
महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायणकाव्य का निर्माण कर लव-कुशको पढ़ाना, लव और कुश का अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो रामदरबार में रामायण गान सुनाना।
सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान नारायण के नाभिकमल से सर्व प्रथम ब्रह्मा जी का प्राकट्य हुआ। इसी से वे पद्मयोनि भी कहलाते हैं। नारायण की इच्छाशक्ति की प्रेरणा से स्वयं उत्पन्न होने के कारण ये स्वयम्भू भी कहलाते है।
बहुत पुरानी बात है, उस समय सत्ययुग चल रहा था। एक बार भगवान ब्रह्मा के मानस-पुत्र ऋषि सनकादि, जिनकी आयु हमेशा पंचवर्षीय बालक कीसी ही रहती है, वैकुण्ठ लोक में जा पहुँचे। वे भगवान् विष्णु के पास जाना चाहते थे
ऋषि दुर्वासा सतयुग, त्रेता एवं द्वापर तीनों युगों में मौजूद थे। पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास और जामवन्त आदि कई ऋषि, मुनि और देवता हुए हैं जिनका जिक्र सभी युगों में पाया जाता है।
कल्कि को विष्णु का भावी अवतार माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों के संहार के लिये कल्कि अवतार प्रकट होगा। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अभी तो कलियुग का प्रथम चरण है।
उद्योग पर्व में विराट की सभा में पाण्डव पक्ष से श्रीकृष्ण, बलराम, सात्यकि का एकत्र होना और युद्ध के लिए द्रुपद की सहायता से पाण्डवों का युद्धसज्जित होना, संजय द्वारा धृतराष्ट्र को और धृतराष्ट्र द्वारा दुर्योधन को समझाना, पाण्डवों से परामर्श कर कृष्ण द्वारा शान्ति प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास जाना, दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण को बन्दी बनाने का षडयन्त्र करना, लौटे हुए श्रीकृष्ण द्वारा कौरवों को दण्ड देने का परामर्श, दोनों पक्षों की सेनाओं का वर्णन, भीष्म-परशुराम का युद्ध आदि विषयों का वर्णन है।
भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता ब्राह्मण जमदग्नि तथा माता क्षत्रिय रेणुका थी। इसलिये उनके अंदर ब्राह्मण तथा क्षत्रिय दोनों के गुण थे। उनका बचपन में नाम राम रखा गया था किंतु भगवान शिव से प्राप्त अस्त्र परशु/कुल्हाड़ी के कारण उन्हें परशुराम के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में उनका जन्मस्थल मध्य प्रदेश राज्य के इंदौर में जनापाव नामक पहाड़ियां है।
विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि में विराट नगर में रहने के लिए गुप्तमन्त्रणा, धौम्य द्वारा उचित आचरण का निर्देश, युधिष्ठिर द्वारा भावी कार्यक्रम का निर्देश, कौरवों द्वारा विराट की गायों का हरण, पाण्डवों का कौरव-सेना से युद्ध, अर्जुन द्वारा विशेष रूप से युद्ध और कौरवों की पराजय, अर्जुन और कुमार उत्तर का लौटकर विराट की सभा में आना, विराट का युधिष्ठिरादि पाण्डवों से परिचय तथा अर्जुन द्वारा उत्तरा को पुत्रवधू के रूप में स्वीकार करना वर्णित है।
महिषासुर संपूर्ण कथा -पौराणिक कथाओं के अनुसार रम्भासुर असुरों का राजा था। एक दिन उसका जल में रहने वाले एक महिषी (भैंसे) पर मन आ गया व उसने उसके साथ संभोग किया।
पांडवों का वनवास, अर्जुन की तपस्या तथा दिव्यास्त्र की प्राप्ति, अर्जुन की इंद्रलोक-यात्रा, भीम की हनुमान से भेंट, दुर्योधन आदि का गर्व हरण इत्यादी घटनाक्रम है।
सभापर्व में मयासुर द्वारा युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण, लोकपालों की भिन्न-भिन्न सभाओं का वर्णन, युधिष्ठिर द्वारा राजसूय करने का संकल्प करना, जरासन्ध का वृत्तान्त तथा उसका वध, राजसूय के लिए अर्जुन आदि चार पाण्डवों की दिग्विजय यात्रा, राजसूय यज्ञ, शिशुपालवध, द्युतक्रीडा, युधिष्ठिर की द्यूत में हार और पाण्डवों का वनगमन वर्णित है।
आदिपर्व मे कथा-प्रवेश के बाद च्यवन का जन्म, पुलोमा दानव का भस्म होना, जनमेजय के सर्पसत्र की सूचना, नागों का वंश, कद्रू कद्रू और विनता की कथा, देवों-दानवों द्वारा समुद्र मंथन, परीक्षित का आख्यान, सर्पसत्र राजा उपरिचर का वृत्तान्त, व्यास आदि की उत्पत्ति, दुष्यन्त-शकुन्तला की कथा, पुरूरवा, नहुष और ययाति के चरित्र का वर्णन, भीष्म का जन्म और कौरवों-पाण्डवों की उत्पत्ति, कर्ण-द्रोण आदि का वृत्तान्त, द्रुपद की कथा, लाक्षागृह का वृत्तान्त, हिडिम्ब का वध और हिडिम्बा का विवाह, बकासुर का वध, धृष्टद्युम्न और द्रौपदी की उत्पत्ति, द्रौपदी-स्वयंवर और विवाह, पाण्डव का हस्तिनापुर में आगमन, सुन्द-उपसुन्द की कथा, नियम भंग के कारण अर्जुन का वनवास, सुभद्राहरण और विवाह, खाण्डव-दहन और मयासुर रक्षण की कथा वर्णित है।
रामायण काव्य का उपक्रम- तमसा के तटपर क्रौञ्चवध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक-रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्माजी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना
गांडीव धनुष और अक्षय तरकश कथा: अर्जुन के पास गांडीव नाम का एक दिव्य धनुष था और एक ऐसा तरकश था जिसके बाण कभी खत्म नहीं होते थे। इसे अक्षय तरकश कहते थे।
पुराणों के अनुसार ब्रह्मलोक में ब्रह्मदेव, कैलाश पर महादेव एवं वैकुण्ठ धाम में भगवान विष्णु बसते हैं। श्रीकृष्ण के अवतरण के बाद बैकुंठ को गोलोक भी कहा जाता है।
वाल्मीकि रामायण भावार्थ सहित- बालकाण्ड सर्ग- १ में नारदजी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्रीरामचरित्र सुनाना।
पिनाक धनुष शंकर के धनुष का नाम है, जिसका निर्माण विश्वकर्मा ने किया था। यह धनुष राजा जनक के पास रखा हुआ था। श्री राम ने धनुष तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था।
भगवान ब्रह्मा ने एक जामवंत नामक रीछ मानव बनाया था जो दो पैरों से चल सकता था पुराणों अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है।
जन्माष्टमी एक बार इंद्र ने नारदजी से कहा हे ब्रह्मपुत्र, हे मुनियों में श्रेष्ठ, सभी कथाओ में उत्तम उस कथा को सुनाए, जिस से मनुष्यों को मुक्ति, लाभ प्राप्त हो।
तुलसीदास किशोरा अवस्था तक एक सामान्य व्यक्ति की तरह मोहमाया और काया में लींन थे। आखिर उनके जीवन में ऐसी कौन सी घटना घटी की उनका जीवन ही परिवर्तित हो जाता है।
महर्षि वाल्मीकि प्रचेता ऋषि के पुत्र थे, जो आश्रम में बच्चों को शास्त्र पढ़ाते थे वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था। एक दिन रत्नाकर खेलते-खेलते जंगल में भटक गए।