
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥

।मुख पृष्ठ।।दारिद्रय दहन स्तोत्र।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-



दारिद्रय दहन स्तोत्र
दारिद्रय दहन स्तोत्र:- इसे पढ़ने से दूर होते हैं आर्थिक संकट
प्रतिदिन भगवान शिव का ‘दारिद्रय दहन स्तोत्र’ के साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।
शास्त्र कहता है दरिद्रता एक अभिशाप है।
‘बभक्षित: किं न करोति पापम्।
क्षीणा: नरा: निष्करूणा भवन्ति॥’– अर्थात भूखा व्यक्ति कौन-सा पाप नहीं करता। हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्र का उल्लेख है जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। प्रतिदिन भगवान शिव का ‘दारिद्रय दहन स्तोत्र’ के साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
ॐ नमः शिवाय
द्रारिदय दहन स्त्रोत का भावार्थ:- द्रारिद्रता का दहन करने वाला स्त्रोत। द्ररिद्रता अर्थात् गरीबी। जिस स्तुति को सुनकर शिवजी आनंदित हो उठंते है। ऐसे प्रभाव वाला द्रारिद्रय दहन शिव स्त्रोत है। शिव पूजन के बाद इस स्त्रोत का पाठ किया जाना शिव को प्रसन्न करता है। इस स्त्रोत के पाठ से द्ररिद्रता से छुटकारा मिलने लगता है। जैसे कि अग्नि में कोई चीज जलकर राख हो जाती है। वैसे ही शिव की प्रसन्नता जीवन में सौभाग्य लाती है।
स्त्रोत:-
विश्वेश्वरायनरकार्णवतारणाय
कर्णामृतायशशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलायजटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनायनमःशिवाय॥1॥
गौरीप्रियायरजनीशकलाधराय
कालान्तकायभुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधरायगजराजविमर्दनाय॥2॥
भक्तिप्रियायभवरोगभयापहाय
उग्रायदुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयायगुणनामसुनृत्यकाय॥3॥
चर्माम्बरायशवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणायमणिकुण्डलमण्डिताय।
मञ्जीरपादयुगलायजटाधराय॥4॥
फणिराजविभूषणाय
हेमांशुकायभुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदायतमोमयाय॥5॥
भानुप्रियायभवसागरतारणाय
कालान्तकायकमलासनपूजिताय।
नेत्रत्रयायशुभलक्षणलक्षिताय॥6॥
रामप्रियायरघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियायनरकार्णवतारणाय।
पुण्येषुपुण्यभरितायसुरार्चिताय॥7॥
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मुक्तेश्वरायफलदायगणेश्वराय
गीतप्रियायवृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्चर्मवसनायमहेश्वराय॥8॥
वसिष्ठेनकृतंस्तोत्रंसर्वरोगनिवारणम्।
सर्वसम्पत्करंशीघ्रंपुत्रपौत्रादिवर्धनम्।
त्रिसंध्यंयःपठेन्नित्यंसहिस्वर्गमवाप्नुयात्॥9॥

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