श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

मल्लिका के अर्जुन बाबा श्री मल्लिकार्जुन

श्री मल्लिकार्जुन

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श्री मल्लिकार्जुन

श्री मल्लिकार्जुन कथा

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

श्री मल्लिकार्जुन का वर्णन

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में मल्लिकार्जुन के विषय विस्तार पूर्वक बताया गया है। यह 12 ज्योतिर्लिगों मे दुसरा स्थान रखता है। इसे श्री मल्लिकार्जुन अर्थात मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। अगर हम इन दोनों शब्दों की संधि करते हैं तो यह “मल्लिकार्जुन” शब्द बनता है।

एक बार सप्त ऋषियों ने श्री कमलापति से शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग अर्थात मल्लिकार्जुन के विषय में विस्तार पूर्वक कथा सुनाने का आग्रह किया। तब बाबा श्री कमलापति ने कहा- हे ऋषियों! अब ध्यान से सुनिए क्योंकि मैं आपको मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा की संपूर्ण महिमा का वर्णन करता हूँ।

श्री मल्लिकार्जुन पहली कथा

एक बार भ्रमणशील नारद जी आकाश मार्ग से कैलाश पर्वत होते हुए कहीं जा रहे थे। उनको मुस्कराते हुए देख कार्तिकेय और श्री गणेश जी ने प्रणाम किया और उनसे अत्यंत खुश होने का कारण जानना चाहा। तब नारद जी ने कहा, मैं पृथ्वी लोक में एक विवाह समारोह से लौट कर आ रहा हूँ। मेरा वहॉं बहुत आदर सम्मान हुआ। वाह क्या सुखमय पल था, बिना विवाह के जीवन व्यर्थ है? इतना कहकर नाराज जी आकाश मार्ग से आगे चले जाते हैं।

श्री गणेश और कार्तिकेय का कलह

कुछ समय पश्चात श्री गणेश और कार्तिकेय अपनी विवाह के लिए चिंतित होने लगते हैं। तब शिव पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय और गणेश दोनों भाई विवाह के लिए आपस में कलह करने लगे। कार्तिकेय का कहना था कि वे बड़े हैं, इसलिए उनका विवाह पहले होना चाहिए, किन्तु श्री गणेश अपना विवाह पहले करना चाहते थे। इस झगड़े पर फैसला देने के लिए दोनों अपने माता-पिता भवानी और शंकर के पास पहुँचे।

पृथ्वी की परिक्रमा

उनके माता-पिता ने कहा कि तुम दोनों में जो कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले यहाँ आ जाएगा, उसी का विवाह पहले होगा। शर्त सुनते ही कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए दौड़ पड़े। इधर स्थूलकाय श्री गणेश जी और उनका वाहन भी चूहा, भला इतनी शीघ्रता से वे परिक्रमा कैसे कर सकते थे। गणेश जी के सामने भारी समस्या उपस्थित थी।

श्रीगणेश द्वारा माता-पिता की परिक्रमा

श्रीगणेश जी शरीर से ज़रूर स्थूल हैं, किन्तु वे बुद्धि के सागर हैं। उन्होंने कुछ सोच-विचार किया और अपनी माता पार्वती तथा पिता देवाधिदेव महेश्वर से एक आसन पर बैठने का आग्रह किया। उन दोनों के आसन पर बैठ जाने के बाद श्रीगणेश ने उनकी सात परिक्रमा की, फिर विधिवत् पूजन किया-

पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रकान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यं फलं भवति निश्चितम्॥

अर्थात जो पितरों (माता-पिता) की पूजा करता है और उनके नाम को चमकाता है। वह मनुष्य निश्चय ही पृथ्वी का प्रतिफल पाता है

श्री गणेश का सिद्धि और बुद्धि से विवाह

इस प्रकार श्रीगणेश माता-पिता की परिक्रमा करके पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति के अधिकारी बन गये। उनकी चतुर बुद्धि को देख कर शिव और पार्वती दोनों बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीगणेश का विवाह भी करा दिया। जिस समय स्वामी कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके वापस आये, उस समय श्रीगणेश जी का विवाह विश्वरूप प्रजापति की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो चुका था। इतना ही नहीं श्री गणेशजी को उनकी ‘सिद्धि’ नामक पत्नी से ‘क्षेम’ तथा ‘बुद्धि’ नामक पत्नी से ‘लाभ’, ये दो पुत्ररत्न की भी प्राप्ति हो गई थी।

नारद का कार्तिकेय से सारा वृत्तांत सुनाया

भ्रमणशील और जगत् का कल्याण करने वाले देवर्षि नारद ने स्वामी कार्तिकेय से यह सारा वृत्तांत कहा सुनाया। श्रीगणेश का विवाह और उन्हें पुत्र लाभ का समाचार सुनकर स्वामी कार्तिकेय जल उठे। इस प्रकरण से नाराज़ कार्तिक ने शिष्टाचार का पालन करते हुए अपने माता-पिता के चरण छुए और वहाँ से चल दिये।

नाराज कार्तिक का क्रौंच पर्वत पर निवास

माता-पिता से अलग होकर कार्तिक स्वामी क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। शिव और पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को समझा-बुझाकर बुलाने हेतु देवर्षि नारद को क्रौंचपर्वत पर भेजा। देवर्षि नारद ने बहुत प्रकार से स्वामी को मनाने का प्रयास किया, किन्तु वे वापस नहीं आये। उसके बाद कोमल हृदय माता पार्वती पुत्र स्नेह में व्याकुल हो उठीं। वे भगवान शिव जी को लेकर क्रौंच पर्वत पर पहुँच गईं।

शिव का क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होना

इधर स्वामी कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत अपने माता-पिता के आगमन की सूचना मिल गई और वे वहाँ से तीन योजन अर्थात् छत्तीस किलोमीटर दूर चले गये। कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। ‘मल्लिका’ माता पार्वती का नाम है, जबकि ‘अर्जुन’ भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार सम्मिलित रूप से ‘मल्लिकार्जुन’ नाम उक्त ज्योतिर्लिंग का जगत् में प्रसिद्ध हुआ।

मल्लिकार्जुन दूसरी कथा

एक अन्य कथानक के अनुसार कौंच पर्वत के समीप में ही चन्द्रगुप्त नामक किसी राजा की राजधानी थी। उनकी राजकन्या किसी संकट में उलझ गई थी। उस विपत्ति से बचने के लिए वह अपने पिता के राजमहल से भागकर पर्वतराज की शरण में पहुँच गई। वह कन्या ग्वालों के साथ कन्दमूल खाती और दूध पीती थी। इस प्रकार उसका जीवन-निर्वाह उस पर्वत पर होने लगा।

ज्योतिर्लिंग के ऊपर मन्दिर का निर्माण

उस कन्या के पास एक श्यामा (काली) गौ थी, जिसकी सेवा वह स्वयं करती थी। उस गौ के साथ विचित्र घटना घटित होने लगी। कोई व्यक्ति छिपकर प्रतिदिन उस श्यामा का दूध निकाल लेता था। एक दिन उस कन्या ने किसी चोर को श्यामा का दूध दुहते हुए देख लिया, तब वह क्रोध में आगबबूला हो उसको मारने के लिए दौड़ पड़ी। जब वह गौ के समीप पहुँची, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, क्योंकि वहाँ उसे एक शिवलिंग के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दिया।

आगे चलकर उस राजकुमारी ने उस शिवलिंग के ऊपर एक सुन्दर सा मन्दिर बनवा दिया। वही प्राचीन शिवलिंग आज ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। इस मन्दिर का भलीभाँति सर्वेक्षण करने के बाद पुरातत्त्ववेत्ताओं ने ऐसा अनुमान किया है कि इसका निर्माणकार्य लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन है। इस ऐतिहासिक मन्दिर के दर्शनार्थ बड़े-बड़े राजा-महाराजा समय-समय पर आते रहे हैं।

मल्लिका देवी मंदिर

मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे माँ पार्वती जी का मंदिर है। जिसे मल्लिका देवी कहते हैं। वहीँ स्थित कृष्णा नदी में भक्तगण स्नान करते है और उसी जल को भगवन को चढ़ाते हैं। कहते हैं कि नदी में दो नाले मिलते हैं। जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। वहीँ समीप में ही गुफा है जहाँ भैरवादि और शिवलिंग हैं।

मल्लिकार्जुन मंदिर से लगभग 6 मील की दूरी पर शिखरेश्वर और हाटकेश्वर मंदिर भी है। वहीँ से 6 मील की दूरी पर एकम्मा देवी का मंदिर भी है। ये सारे  मंदिर घोर वन के बीच में स्थित हैं। इस स्थान के दर्शन करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है और माँ पार्वती और शिव जी की कृपा बनी रहती है।

पौराणिक मान्यता

आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल पर्वत पर श्रीमल्लिकार्जुन विराजमान हैं। इसे दक्षिण का कैलाश कहते हैं। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है। महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है।

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श्री मल्लिकार्जुन

श्री मल्लिकार्जुन FAQ?

श्री मल्लिकार्जुन कौन है?

मल्लिका के अर्जुन, मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। अगर हम इन दोनों शब्दों की संधि करते हैं तो यह “मल्लिकार्जुन” शब्द बनता है। विस्तार पूर्वक पढ़े..

श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

श्री मल्लिकार्जुन मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

कार्तिकेय के चले जाने पर भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से भगवान शिव ‘मल्लिकार्जुन’ ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए। विस्तार पूर्वक पढ़े..

श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

श्री मल्लिकार्जुन का क्या अर्थ है?

मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। अगर हम इन दोनों शब्दों की संधि करते हैं तो यह “मल्लिकार्जुन” शब्द बनता है। विस्तार पूर्वक पढ़े..

श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की स्थापना कैसे हुई?

कार्तिकेय से मिलने के लिए माता पार्वती और भगवान शिव जी क्रोंच पर्वत पर पहुंचे तो कार्तिकेय उन्हें देखकर और दूर चले गए। अंत में पुत्र के दर्शन की लालसा में भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग रूप धारण कर लिया और यहीं विराजमान हो गए। तब से ये शिव धाम मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हो गया। विस्तार पूर्वक पढ़े..

श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

श्री मल्लिकार्जुन कि मान्यता क्या है?

महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रीशैल के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं। विस्तार पूर्वक पढ़े..

श्री मल्लिकार्जुन | What Is The Full Story Of Mallikaarjun

दूसरा ज्योतिर्लिंग कौन सा है?

शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में मल्लिकार्जुन के विषय विस्तार पूर्वक बताया गया है। यह 12 ज्योतिर्लिगों मे दुसरा स्थान रखता है। इसे श्री मल्लिकार्जुन अर्थात मल्लिका का अर्थ माँ पार्वती है और अर्जुन शिव जी को कहा जाता है। विस्तार पूर्वक पढ़े..

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