१०. सौप्तिकपर्व- महाभारत


॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥
दान करें

Paytm-1

Paytm-2

PayPal

 अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 8M+ Viewers
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-





मुख पृष्ठमहाभारत१०. सौप्तिकपर्व

१०. सौप्तिकपर्व- महाभारत

महाभारत
(हिन्दी में)
सब एक ही स्थान पर

सौप्तिकपर्व का वर्णन

सौप्तिकपर्व में ऐषीक पर्व नामक मात्र एक ही उपपर्व है। इसमें 18 अध्याय हैं। अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य- कौरव पक्ष के शेष इन तीन महारथियों का वन में विश्राम करना, तीनों की आगे के कार्य के विषय में विस्तार पूर्वक मत्रणा करना, अश्वत्थामा द्वारा अपने क्रूर निश्चय के लिए कृपाचार्य और कृतवर्मा को अवगत कराना, तीनों का पाण्डवों के शिविर की ओर प्रस्थान करना, अश्वत्थामा द्वारा रात्रि चोरी से पाण्डवों के शिविर में घुसकर समस्त सोये हुए पांचाल वीरों का संहार करना,

द्रौपदी के पुत्रों का वध करना, द्रौपदी का विलाप तथा द्रोणपुत्र के वध का आग्रह करना, भीम द्वारा अश्वत्थामा को मारने के लिए प्रस्थान करना और श्रीकृष्ण, अर्जुन तथा युधिष्ठिर का भी भीम के पीछे जाना, गंगातट पर बैठे अश्वत्थामा को भीम द्वारा ललकारना, अश्वत्थामा द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना, अर्जुन द्वारा भी उस ब्रह्मास्त्र के निवारण के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना, व्यास की आज्ञा से अर्जुन द्बारा ब्रह्मास्त्र का उपशमन करना, अश्वत्थामा की मणि को निकाल लेना और अश्वत्थामा का मानमर्दित होकर वन की ओर प्रस्थान आदि विषय इस पर्व में वर्णित है।

धृष्टद्युम्न और द्रौपदी के पुत्रों का वध 

युद्ध के बाद कृष्ण पांडवों को लेकर किसी दूसरी जगह की ओर चले गए। फिर रात्रि मे कृपाचार्य, कृतवर्मा तथा अश्वत्थामा तीनों वीर पांडवों के शिविर के पास पहुँचकर एक पेड़ के नीचे रुक जाते है। अश्वत्थामा ने देखा कि रात के अँधेरे में उल्लू जैसा एक पक्षी उड़कर आया तथा सोते हुए कौओं को एक-एक करके मार डाला। 

फिर अश्वत्थामा ने भी निश्चय किया कि अब रात के समय ही शत्रु का संहार करना ठीक होगा। उसने कृतवर्मा तथा कृपाचार्य से अपने मन की बात कही। परन्तु उन्होंने इसे अन्याय कहकर मना किया, लेकिन अश्वत्थामा अपने पिता के हत्यारे धृष्टद्युम्न का वध करना चाहता था। वह उठा और पांचालों के शिविर में घुस पड़ा। विवश होकर कृतवर्मा और कृपाचार्य को भी अपने सेनापति का साथ देने के लिए तैयार होना पड़ा।

अश्वत्थामा ने दोनों से कहा, आप यही द्वार पर ही रुकें तथा जो भी निकले उसे जीन्दा न छोड़ें। फिर अश्वत्थामा ने सोए हुए धृष्टद्युम्न पर तलवार से कई वार किया तथा कोलाहल सुनकर वहॉं से जो भी बाहर भागा, उसे कृतवर्मा और कृपाचार्य ने द्वार पर ही मार डाला। फिर अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में गया तथा द्रौपदी के सोये हुए पाँचों पुत्रों के सिर काट डाले तथा शिविर में आग लगा दी। 

दुर्योधन की मृत्यु

फिर अश्वत्थामा ने सोचा कि ये पांडवों के सिर हैं। तब वह दुर्योधन के पास पहुँचा तथा बताया कि उसने सभी पांचालों तथा पांडवों का वध कर दिया है। दुर्योधन ने उससे भीम का सिर माँगा तथा उस पर जैसे ही एक मुक्का मारा तो पता चला कि यह भीम का सिर नहीं है। प्रातःकाल दुर्योधन ने देखा कि वे सभी सिर द्रौपदी के पुत्रों के हैं तो उन्होंने कहा कि अब पांडव के कुल में तर्पण करने वाला भी कोई नहीं बचा। इस प्रकार बिलखते हुए महाराज दुर्योधन का देहावसान हो गया। 

अश्वत्थामा का मणि-हरण 

प्रातःकाल होते ही जब पांडव अपने शिविर में आए तथा वहाँ हुई विनाश-लीला देखी। भीम क्रोध से भर गए तथा अश्वत्थामा की खोज के लिए निकल पड़े। फिर कृष्ण को चिंता हुई, क्योंकि वे जानते थे कि अश्वत्थामा के पास ‘ब्रह्मशिरा’ नाम का एक महास्त्र है जिसका प्रयोग किए जाने पर भीम कभी नहीं बच सकते। तब कृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर भी उसके पीछे हो लिये।

अश्वत्थामा ने पांडवों को देखकर शीघ्र ही ब्रह्मशिरा अस्त्र छोड़ा और कहा की सभी पांडवों का नाश हो। तभी अर्जुन ने भी पाशुपत महास्त्र छोड़ा। चारों ओर आग निकलने लगी। सृष्टि का नाश होता देखकर वेदव्यास तथा नारद जी उन अस्त्रों के बीच में आकर खड़े हो गए तथा दोनों से प्रार्थना की अपने-अपने अस्त्रों को वापस ले लें। अर्जुन ने उनका कहना मान लिया, पर अश्वत्थामा ने कहा कि मुझे अपना अस्त्र रोकना नहीं आता।

इन दोनों ऋषियों ने कहा कि अश्वत्थामा के अस्त्र प्रभाव से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का गर्भ नष्ट हो जाएगा और अर्जुन के अस्त्र के बदले अश्वत्थामा को अपनी कोई बहुमूल्य वस्तु अर्जुन को देनी होगी। इस बात पर अश्वत्थामा को अपने मस्तक की मणि अर्जुन को देनी पड़ी। मणि देते ही वह निस्तेज हो गया तथा वेदव्यास के आश्रम में ही रहकर तपस्वी का जीवन बिताने लगा।

Today’s Top View Story:

मुख पृष्ठ / महाभारत

MNSPandit

चलो चले संस्कृति और संस्कार के साथ

6 thoughts on “१०. सौप्तिकपर्व- महाभारत

अपना बिचार व्यक्त करें।

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.