श्री सोमनाथ कथा | What Is The Full Story Of Shri Somnath
ब्रह्माण्ड के जनक और सोम के नाथ बाबा श्री सोमनाथ

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श्री सोमनाथ कथा
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
ज्योतिर्लिंग का वर्णन
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग स्थानों में स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। उन सभी ज्योतिर्लिंगो मे जिस प्रथम ज्योतिर्लिंग का नाम आता है वह बाबा श्री सोमनाथ का ही आता है। शिवपुराण के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने किया था।
दक्ष प्रजापति की कन्याओ का विवाह
शास्त्रों मे वर्णित एक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रदेव का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं।
एक दिन दक्ष प्रजापति अपनी कन्याओं का कुशल-मंगल जानने के लिए उनके घर गये। तब दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याओं ने अपनी यह व्यथा और कथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।
चंद्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप
किंतु रोहिणी के वशीभूत चंद्रदेव के हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष प्रजापति ने कुद्ध होकर चंद्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल ही क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। इससे चंद्रमा भी अत्यंत दुखी और चिंतित थे।
उनकी करुणामय प्रर्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सभी बातों को विस्तार पूर्वक सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ‘चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य सभी देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही चंद्रदेव का शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
चंद्रदेव द्वारा मृत्युंजय भगवान की आराधना
उनके कथनानुसार चंद्रदेव ने अन्य देवो के साथ मृत्युंजय भगवान की आराधना का सारा कार्य पूर्ण किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय- भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया। भगवान शिव ने कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वरदान से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
चंद्रदेव का शाप मुक्त होना
किन्तु स्मरण रहे, कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रदेव को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत करने लगे।
तब शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य सभी देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान शिव से प्रार्थना की, कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहाँ पर निवास करें। भगवान शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ विराजमान हो गए।
श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा
पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ- ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार पूर्वक से बताई गई है। चंद्रदेव का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी।
अतः इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु का नाश हो जाता हैं। वह भगवान शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। और उनके लौकिक व पारलौकिक सारे कृत्य स्वयं ही सफल हो जाते हैं।
श्री सोमनाथ मंदिर का वर्णन
भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराणम, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराणम आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।
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यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। इसके अबाधित समुद्री मार्ग- त्रिष्टांभ के विषय में ऐसा माना जाता है कि यह समुद्री मार्ग परोक्ष रूप से दक्षिणी ध्रुव में समाप्त होता है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है।
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श्री सोमनाथ FAQ?
श्री सोमनाथ की कहानी क्या है?
दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रदेव का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। अंततः दक्ष प्रजापति ने कुद्ध होकर चंद्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप दे दिया। तब चंद्रदेव ने दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय- भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान प्रदान किया। विस्तार पूर्वक पढ़े..
श्री सोमनाथ कथा | What Is The Full Story Of Shri Somnath
श्री सोमनाथ मंदिर की क्या मान्यता है?
पौराणिक कथाओं मे मान्यता है कि इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु का नाश हो जाता हैं। वह भगवान शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। और उनके लौकिक व पारलौकिक सारे कृत्य स्वयं ही सफल हो जाते हैं। विस्तार पूर्वक पढ़े..
श्री सोमनाथ कथा | What Is The Full Story Of Shri Somnath
पहला ज्योतिर्लिंग कौन सा है?
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग देश के अलग-अलग स्थानों में स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। उन सभी ज्योतिर्लिंगो मे जिस प्रथम ज्योतिर्लिंग का नाम आता है वह बाबा श्री सोमनाथ का ही आता है। विस्तार पूर्वक पढ़े..
श्री सोमनाथ कथा | What Is The Full Story Of Shri Somnath
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
श्री सोमनाथ का अर्थ क्या है?
चंद्रदेव का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। विस्तार पूर्वक पढ़े..
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