सुख-शान्ति प्राप्ति हेतु मंत्रों का जाप | Chanting Of Mantra

मंत्रों का जाप

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 (साप्ताहिक अपडेट)

मंत्रों का जाप

मंत्रों का जाप

सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) में मंत्रों को बहुत महत्व दिया जाता है। शास्त्रों, पुराणों और धर्म के अनुसार मंत्रों में बहुत शक्ति होती है। किसी भी मंत्र का उच्चारण यदि सही ढंग और सही तरीके से किया जाए तो उसका प्रभाव पूरे ब्रह्माण्ड में सकारात्मक ही पड़ता है, मंत्रों का उच्चारण अपने आस-पास सकारात्मक प्रभाव का संचार करता है।

माना जाता है कि हर एक मंत्र से अलग-अलग तरह का प्रभाव और शक्ति उत्पन्न होती है। मंत्रों की शक्ति से व्यक्ति अपने जीवन को बदल सकता है। मंत्र के जाप से मानसिक शान्ति भी मिलती है। हिन्दू धर्म धर्म में कोई भी शुभ कार्य बिना मंत्रों के नहीं किया जाता। अधिकतर लोग पूजा के समय गायत्री मत्र और महामृत्युंजय मंत्र का लगभग नित्य जाप करते हैं। कोई भी मंत्र घर या मंदिर कहीं भी, यदि सच्ची श्रद्धा के साथ किया जाए, तो यह विशेष फलदायी होता है।

शास्त्रों मे वर्णित है कि यदि मंत्रों का जाप पूर्ण तरीके से किया जाए तो श्रद्धा और भी बढ़ जाती है। मंत्र का जाप करने के लिए विशेष माला का प्रयोग किया जाता है लेकिन आज के समय में शुद्ध माला का मिलना या सभी जगह उसे लेकर घूमना उचित नही होता। इस समस्या को ध्यान मे रखते हुए हमने (कभी भी और कही भी मंत्रो का जाप करने के लिए) यह पेज तैयार किया है। आप इसका सरलतापूर्वक उपयोग कर सकते है।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

यदि आप आत्मिक चक्र से संबंधित मंत्रों का जाप करना चाहते है तब यहाँ खोजें और फिर नीचें बॉक्स मे जाकर मंत्र का चयन कर जाप प्रारंभ करें:

  1. मूलाधार चक्र:- इसका मन्त्र ”लं” है।
  2. स्वाधिष्ठान चक्र:- इसका मन्त्र ”वं“ है।
  3. मणिपुर चक्र:- इसका मन्त्र “रं” है।
  4. अनाहत चक्र:- इसका मन्त्र “यं“ है।
  5. विशुद्धि चक्र:- इसका मन्त्र “हं“ है।
  6. आज्ञा चक्र:- इसका मन्त्र “ॐ” है।
  7. सहस्रार चक्र:- इसका मन्त्र “ङ” है।

संकल्प मंत्र:

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ॐ तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य ….. (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2080, तमेऽब्दे प्लवंग नाम संवत्सरे दक्षिणायने ….. ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे ….. मासे ….. पक्षे ….. तिथौ ….. वासरे  ….. (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा ….. (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्योक्तफलप्राप्त्यर्थं मनेप्सित कार्य सिद्धयर्थं श्री …… (जिस देवी/देवता के मंत्र का जाप करने जा रहे हैं उनका नाम ले) मंत्र जापं अहं क​रिष्ये। तत्पूर्वागंत्वेन ​निर्विघ्नतापूर्वक कार्य ​सिद्धयर्थं यथा​मिलितोपचारे गणप​ति पूजनं क​रिष्ये।

मंत्र जाप के कुछ नियम:

-मंत्र जाप करते समय मंत्र जाप करने वाले के मुद्रा पद्मासन या सुखासन (अर्थात जिस मुद्रा से आपके शरीर को सुख मिले) में होनी चाहिए।

-कोशिश करें जाप शुद्ध उच्चारित और सही संख्या में किया जाए, क्योंकि जाप हमेशा एक निश्चित संख्या में ही किया जाता है। जैसे:- 11, 21, 51, 108, 1008, संख्या में ही हो। शास्त्रों में 108 संख्या शुभ माना गया है।

-जाप करते समय पूर्व दिशा की तरफ अपना मुख रखें। जाप बटन को हमेशा दायें हाथ के अंगुठे से ही दबाए। यह भी ध्यान रखें कि आपने अंगुठे के नाखून का स्पर्श न करें।

-मंत्र जाप एकाग्रचित मन से करना अधिक फलदायी और संतुष्टि प्रदान करने वाला होता है। एकाग्रता बनाए रखने के लिए जाप करते समय लाल बिन्दु को ध्यान पूर्वक देखते रहें।


लाल-बिन्दु



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