श्री दुर्गा सप्तशती पाठ – बारहवां अध्याय | Durga Saptashati

दुर्गा सप्तशती पाठ - बारहवां अध्याय

 मुख पृष्ठ  दुर्गा सप्तशती  बारहवां अध्याय 

दुर्गा सप्तशती पाठ - बारहवां अध्याय

॥ 卐 ॥
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ जय माता दी ॥

दान करें 🗳
Pay By UPIName:- Manish Kumar Chaturvedi
Mobile:- +919554988808
Click On UPI Id:-
9554988808@hdfcbank
sirmanishkumar@ybl
9554988808@ybl
9554988808-2@ybl
Pay By App
Pay In Account




दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय

राक्षसों और दैत्यों का संहार कर देवी माँ कैसे जगत और देवताओं की रक्षा करती हैं

॥ध्यानम्॥
ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्‍चक्रगदासिखेटविशिखांश्‍चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥

 अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 6M+ पाठक
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

ध्यान
मैं तीन नेत्रों वाली दुर्गादेवी का ध्यान करता (करती) हूँ। उनके श्रीअंगो की प्रभा बिजली के समान है। हाथों में तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवा में खड़ी हैं। वे अपने हाथों में, चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं। उनका स्वरूप अग्रिमय है तथा वे माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं।
देवी माँ को नमस्कार।

अग्रिमय स्वरूपा, शस्त्र धारण किये हुए, तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवी का ध्यान।

ॐ देव्युवाच॥१॥
एभिः स्तवैश्‍च मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः।
तस्याहं सकलां बाधां नाशयिष्याम्यसंशयम्॥२॥

देवी बोलीं- देवताऒं! जो एकाग्रचित होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा ध्यान करेगा, उसकी सारी बाधा मैं निश्चय ही दूर कर दूंगी। माँ भवानी को नमस्कार। हे देवी माँ, हमारे संकट दूर करो।

राक्षसों के संहार के प्रसंग

मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम्।
कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद् वधं शुम्भनिशुम्भयोः॥३॥

जो मनुष्य निचे दिए हुए प्रसंगों का पाठ करेंगे- मधु-कैटभका नाश (दुर्गा सप्तशती अध्याय- 1) महिषासुरका वध (दुर्गा सप्तशती अध्याय- 3)
शुम्भ-निशुम्भके संहार (दुर्गा सप्तशती अध्याय- 9 और 10 में शुम्भ और निशुंभ का वध) के प्रसंग का

देवी माहात्म्य का श्रवण कौन सी तिथियों को?

अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः।
श्रोष्यन्ति चैव ये भक्त्या मम माहात्म्यमुत्तमम्॥४॥

तथा अष्टमी, चतुर्दशी और नवमी को जो एकाग्रचित भक्तिपूर्वक मेरा माहात्म्य का श्रवण करेंगे,

सप्तशती के श्रवण से आपत्तियां और दरिद्रता नहीं आती है

न तेषां दुष्कृतं किञ्चिद् दुष्कृतोत्था न चापदः।
भविष्यति न दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम्॥५॥

उन्हें कोई पाप नहीं छू सकेगा, उन पर पापजनित आपत्तियां भी नहीं आएंगी, उनके घर में दरिद्रता नहीं होगी तथा उनको कभी प्रेमीजनों के विछोह का कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।
माँ दुर्गा को नमस्कार

लुटेरों से, शत्रु से और शस्त्र से भय नहीं होता

शत्रुतो न भयं तस्य दस्युतो वा न राजतः।
न शस्त्रानलतोयौघात्कदाचित्सम्भविष्यति॥६॥

इतना ही नहीं, उन्हें शत्रु से, लुटेरों से, राजा से, शस्त्र से, अग्नि से तथा जलराशि से भी कभी भय नहीं होगा।
माँ चंडी को नमस्कार।

भक्तिपूर्वक और एकग्रचित्त से, देवी माहात्म्य सुनना और पढ़ना चाहिए

तस्मान्ममैतन्माहात्म्यं पठितव्यं समाहितैः।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या परं स्वस्त्ययनं हि तत्॥७॥

इसलिए सबको एकाग्रचित होकर भक्तिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य को सदा पढना और सुनना चाहिए। यह परम कल्याणकारक है। कल्याणदायिनी शिवा को नमस्कार। हे देवी माँ, हमें सद्बुद्धि दो।

कल्याणकारक देवी माहात्म्य, सभी मुश्किलों और आपत्तियों को दूर करता है

 अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 6M+ पाठक
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

उपसर्गानशेषांस्तु महामारीसमुद्भवान्।
तथा त्रिविधमुत्पातं माहात्म्यं शमयेन्मम॥८॥

मेरा महात्म्य महामारीजनित समस्त उपद्रवों एवं तीनों प्रकार के उत्पातोंको शांत करने वाला है। लक्ष्मी माता को प्रणाम

सप्तशती का पाठ, जिस जगह होता है, वहां देवी की कृपा, सदा बनी रहती है

यत्रैतत्पठ्यते सम्यङ्‌नित्यमायतने मम।
सदा न तद्विमोक्ष्यामि सांनिध्यं तत्र मे स्थितम्॥९॥

मेरे जिस मंदिर में प्रतिदिन विधिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य का पाठ किया जाता है, उस स्थान को मैं कभी नहीं छोड़ती। वहां सदा ही मेरा सन्निधान बना रहता है, अर्थात निवास रहता है। कण कण में व्याप्त शक्तिस्वरूपा माँ को नमस्कार

पूजा और उत्सव के समय, देवी माहात्म्य का पाठ

बलिप्रदाने पूजायामग्निकार्ये महोत्सवे।
सर्वं ममैतच्चरितमुच्चार्यं श्राव्यमेव च॥१०॥

पूजा, होम तथा महोत्सव के अवसरों पर मेरे इस चरित्र का पूरा-पूरा पाठ और हवन करना चाहिए।

माँ दुर्गा की प्रसन्नता के लिए, देवी माहत्म्य और सप्तशती का पाठ

जानताऽजानता वापि बलिपूजां तथा कृताम्।
प्रतीच्छिष्याम्यहं प्रीत्या वह्निहोमं तथा कृतम्॥११॥

ऐसा करने पर मनुष्य विधि को जानकर या बिना जाने भी, मेरे लिए जो पूजा या होम आदि करेगा, उसे मैं बड़ी प्रसन्नताके साथ ग्रहण करूंगी।

भक्तिपूर्वक सुनने से, सब बाधाऒं से मुक्ति

शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः॥१२॥

शरद काल में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे इस माहात्म्य को भक्तिपूर्वक सुनेगा,

भक्तिपूर्वक सुनने से, धन धान्य में वृद्धि

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥१३॥

वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाऒं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

देवी के पराक्रम की कथाएं सुनने से, मनुष्य निर्भय होता है

श्रुत्वा ममैतन्माहात्म्यं तथा चोत्पत्तयः शुभाः।
पराक्रमं च युद्धेषु जायते निर्भयः पुमान्॥१४॥

मेरे इस माहात्म्य, मेरे प्रादुर्भाव की सुंदर कथाएं तथा युद्ध में किए हुए मेरे पराक्रम सुनने से मनुष्य निर्भय हो जाता है।

 अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 6M+ पाठक
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

देवी माहात्म्य के पाठ से, भक्त को और उसके कुल को लाभ

रिपवः संक्षयं यान्ति कल्याणं चोपपद्यते।
नन्दते च कुलं पुंसां माहात्म्यं मम शृण्वताम्॥१५॥

मेरे माहात्म्य का श्रवण करने वाले पुरुषों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उहें कल्याण की प्राप्ति होती है, तथा उनका कुल आनंदित रहता है।

देवी माहात्म्य का पाठ, जीवन में शांति लाता है

शान्तिकर्मणि सर्वत्र तथा दुःस्वप्नदर्शने।
ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं शृणुयान्मम॥१६॥

सर्वत्र शांति-कर्म में, बुरे स्वप्न दिखायी देने पर, तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर मेरा माहात्म्य श्रवण करना चाहिए।

सब विघ्न दूर हो जाते है

उपसर्गाः शमं यान्ति ग्रहपीडाश्‍च दारुणाः।
दुःस्वप्नं च नृभिर्दृष्टं सुस्वप्नमुपजायते॥१७॥

इससे सब विघ्न तथा भयंकर ग्रह-पीड़ाएं शांत हो जाती हैं, और मनुष्यों द्वारा देखा हुआ दु:स्वप्र यानी की बुरा स्वप्न भी शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाता है।

देवी माहात्म्य का पाठ शांतिकारक है

बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम्।
संघातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम्॥१८॥

बालग्रहों से आक्रांत हुए बालकों के लिए यह माहात्म्य शांतिकारक है। मनुष्यों के संगठन में फूट होने पर यह मित्रता कराने वाला होता है।

सप्तशती का पाठ कैसे भक्त की रक्षा करता है?

दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम्।
रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम्॥१९॥

यह माहात्म्य समस्त दुराचारियों के बल का नाश कराने वाला है। इसके पाठमात्र से राक्षसों, भूतों और पिशाचों का, नाश हो जाता है।

एक बार सप्तशती श्रवण, कई आराधनाओं से बढ़कर है

सर्वं ममैतन्माहात्म्यं मम सन्निधिकारकम्।
पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्‍च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः॥२०॥

मेरा यह सब माहात्म्य मेरे सामीप्य की प्राप्ति कराने वाला है। पुष्प, अर्घ्य, धूप, दीप, गंध आदि से पूजन करने से, सप्तशती श्रवण कई आराधनाओं से बढ़कर है

विप्राणां भोजनैर्होमैः प्रोक्षणीयैरहर्निशम्।
अन्यैश्‍च विविधैर्भोगैः प्रदानैर्वत्सरेण या॥२१॥

ब्राह्मण भोज से, होम से, प्रतिदिन अभिषेक करने से, नाना प्रकार के भोगों के अर्पण से तथा दान आदि से, एक वर्ष तक मेरी आराधना से मुझे जितनी प्रसन्नता होती है, सप्तशती श्रवण – रोग, दुःख और पापों से मुक्ति

प्रीतिर्मे क्रियते सास्मिन् सकृत्सुचरिते श्रुते।
श्रुतं हरति पापानि तथाऽऽरोग्यं प्रयच्छति॥२२॥

उतनी प्रसन्नता मेरे इस उत्तम चरित्रका एक बार श्रवण करनेमात्रसे हो जाती है। यह माहात्म्य श्रवण करने पर पापोंको हर लेता और आरोग्य प्रदान करता है।

देवी द्वारा, राक्षसों के संहार की कथाएं सुनने से, शत्रु का भय नहीं रहता

रक्षां करोति भूतेभ्यो जन्मनां कीर्तनं मम।
युद्धेषु चरितं यन्मे दुष्टदैत्यनिबर्हणम्॥२३॥

मेरे प्रादुर्भाव का कीर्तन समस्त भूतों से रक्षा करता है, तथा मेरा युद्धविषयक चरित्र दुष्ट दैत्यों का संहार करने वाला है।

भय से मुक्ति

तस्मिञ्छ्रुते वैरिकृतं भयं पुंसां न जायते।
युष्माभिः स्तुतयो याश्‍च याश्‍च ब्रह्मर्षिभिःकृताः॥२४॥

इसके श्रवण करने पर मनुष्यों को शत्रु का भय नहीं रहता। देवताऒं! तुमने और ब्रह्मर्षियों ने जो मेरी स्तुतियां की हैं। देवी चरित्र का स्मरण, स्थान स्थान पर, कैसे रक्षा करता है

सुनसान मार्ग में बुरे लोगों से रक्षा

ब्रह्मणा च कृतास्तास्तु प्रयच्छन्ति शुभां मतिम्।
अरण्ये प्रान्तरे वापि दावाग्निपरिवारितः॥२५॥

तथा ब्रह्माजी ने जो स्तुतियां की हैं, वे सभी कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। वन में, सुने मार्ग में (वीरान मार्ग में), दावानल से घिर जाने पर,

जंगल में, लूटेरों और जंगली जानवरों से रक्षा

दस्युभिर्वा वृतः शून्ये गृहीतो वापि शत्रुभिः।
सिंहव्याघ्रानुयातो वा वने वा वनहस्तिभिः॥२६॥

निर्जन स्थान में लुटेरों के दांव में पड़ जाने पर या शत्रुऒं से पकड़े जाने पर, अथवा जंगल में सिंह, बाघ या जंगली हाथियों के पीछा करने पर मेरे चरित्र का स्मरण करने से कष्टों से रक्षा होती है

महासागर में तूफ़ान और बुरे राजा से रक्षा

राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे॥२७॥

कुपित राजा के आदेशसे वध या बंधन के स्थान में ले जाए जाने पर, महासागरमें नावपर बैठनेके बाद भारी तूफान से नाव के डगमग होने पर,

संकटों से मुक्ति

पतत्सु चापि शस्त्रेषु संग्रामे भृशदारुणे।
सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा॥२८॥

और अत्यंत भयंकर युद्ध में शस्त्रों का प्रहार होनेपर वेदना से पीडि़त होने पर, अथवा सभी भयानक बाधाओं के उपस्थित होने पर

शत्रुओं से और हिंसक पशुओं से रक्षा

स्मरन्ममैतच्चरितं नरो मुच्येत संकटात्।
मम प्रभावात्सिंहाद्या दस्यवो वैरिणस्तथा॥२९॥
दूरादेव पलायन्ते स्मरतश्‍चरितं मम॥३०॥

जो मेरे चरित्र का स्मरण करता है, वह संकटमुक्त हो जाता है। मेरे प्रभाव से सिंह आदि हिंसक जंतु नष्ट हो जाते हैं, तथा लुटेरे और शत्रु भी मेरे चरित्र का स्मरण करने वाले पुरुष से दूर भागते हैं।

भगवती देवी की कृपा से, देवता निर्भय हो गए

ऋषिरुवाच॥३१॥
इत्युक्त्वा सा भगवती चण्डिका चण्डविक्रमा॥३२॥

ऋषि कहते हैं- ऐसा कहकर, प्रचंड पराक्रम वाली भगवती चंडिका

भगवती देवी की कृपा से, देवता निर्भय हो गए

पश्यतामेव देवानां तत्रैवान्तरधीयत।
तेऽपि देवा निरातङ्‌काः स्वाधिकारान् यथा पुरा॥३३॥

सब देवताऒं के देखते-देखते अंतर्धान हो गईं। फिर समस्त देवता भी शत्रुऒं के मारे जाने से निर्भय हो

देवी की कृपा से देवताओं को उनके अधिकार वापस मिल गए

यज्ञभागभुजः सर्वे चक्रुर्विनिहतारयः।
दैत्याश्‍च देव्या निहते शुम्भे देवरिपौ युधि॥३४॥

पहले की ही भांति यज्ञभागका उपभोग करते हुए अपने-अपने अधिकार का पालन करने लगे। संसार का विध्वंस करने वाले, महाभयंकर पराक्रमी देवशत्रु शुम्भ तथा

सभी असुर पाताल चले गए

जगद्विध्वंसिनि तस्मिन् महोग्रेऽतुलविक्रमे।
निशुम्भे च महावीर्ये शेषाः पातालमाययुः॥३५॥

महाबली निशुम्भ के युद्ध में देवी द्वारा मारे जाने पर शेष दैत्य पाताल लोक में चले आए।

माँ भगवती द्वारा जगत की रक्षा

एवं भगवती देवी सा नित्यापि पुनः पुनः।
सम्भूय कुरुते भूप जगतः परिपालनम्॥३६॥

राजन्! इस प्रकार भगवती अम्बिका देवी नित्य होती हुई भी पुन:-पुन: प्रकट होकर जगत की रक्षा करती हैं।

माँ भगवती कैसे जगत का संचालन करती है

तयैतन्मोह्यते विश्‍वं सैव विश्‍वं प्रसूयते।
सा याचिता च विज्ञानं तुष्टा ऋद्धिं प्रयच्छति॥३७॥

वे ही इस विश्व को मोहित करतीं, वे ही जगत को जन्म देतीं, तथा वे ही प्रार्थना करने पर संतुष्ट हो समृद्धि प्रदान करती हैं।

सर्वव्यापी देवी महाकाली को प्रणाम

व्याप्तं तयैतत्सकलं ब्रह्माण्डं मनुजेश्‍वर।
महाकाल्या महाकाले महामारीस्वरूपया॥३८॥

राजन! महाप्रलय के समय महामारी का स्वरूप धारण करने वाली, वे महाकाली ही इस समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।

देवी द्वारा सृष्टि का निर्माण और प्रलय

सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा।
स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी॥३९॥

वे ही समय-समय पर महामारी का रूप बनाती हैं और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती हैं। वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती हैं।

मनुष्य के घर धन या दरिद्रता कब आती है?

भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीर्वृद्धिप्रदा गृहे।
सैवाभावे तथाऽलक्ष्मीर्विनाशायोपजायते॥४०॥

मनुष्यों के अभ्युदयके समय वे ही घर में लक्ष्मी के रूप में स्थित हो उन्नति प्रदान करती हैं और वे ही अभाव के समय दरिद्रता बनकर विनाश का कारण होती हैं।

देवी की भक्ति से भक्त को क्या लाभ?

स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्धूपगन्धादिभिस्तथा।
ददाति वित्तं पुत्रांश्‍च मतिं धर्मे गतिं शुभाम्॥ॐ॥४१॥

पुष्प, धूप और गंध आदि से पूजन करके उनकी स्तुति करने पर वे धन, पुत्र, धार्मिक बुद्धि तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं।

फलस्तुति नामक बारहवां अध्याय समाप्त

इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये फलस्तुतिर्नाम द्वादशोऽध्यायः॥१२॥

इस प्रकार श्रीमार्कंडेयपुराण में सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत देवीमाहाम्य में फलस्तुति नामक बारहवां अध्याय पूरा हुआ।

दुर्गा सप्तशती पाठ - छठा अध्याय

ग्यारहवां अध्याय तेरहवां अध्याय

दुर्गा सप्तशती पाठ - बारहवां अध्याय

अपना बिचार व्यक्त करें।

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.