श्री रामेश्वरम कथा | What Is The Full Story Of Rameshwaram
राम के इश्वर श्री रामेश्वरम, जिसके आगे भी राम जिसके पीछे भी राम।

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श्री रामेश्वरम कथा
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
ज्योतिर्लिंग की स्थापना का वर्णन
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामंद्रजी ने किया था। स्कंदपुराण में इसकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो मे यह ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग है इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह कथा कही जाती है कि जब भगवान श्रीरामंद्रजी लंका पर चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था।
स्थापना की पहली कथा
और कही-कही ऐसा भी वर्णन मिलता है कि इस स्थान पर ठहरकर भगवान श्रीराम जल पी रहे थे कि तभी आकाशवाणी हुई कि मेरी पूजा किए बिना ही जल पीते हो? इस वाणी को सुनकर भगवान श्रीराम ने बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वरदान मांगा। उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वरदान भगवान श्रीराम को दे दिया। भगवान शिव ने लोक-कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहॉं निवास करने की प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है।
स्थापना की दूसरी कथा
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में एक-दूसरी कथा इस प्रकार है कि जब भगवान श्रीराम रावण का वध करके लौट रहे थे तब उन्होंने अपना पहला पड़ाव समुद्र के उस पार गन्धमादन पर्वत पर डाला था। वहाँ बहुत से ऋषि और मुनिगण भगवान श्रीराम के दर्शन के लिए उनके पास आए।
उन सभी का आदर-सत्कार करते हुए भगवान श्रीराम ने उनसे कहा कि पुलस्य के वंशज रावण का वध करने के कारण मुझ पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया है, आप लोग मुझे इससे निवृत्ति का कोई उपाय बताइए। यह बात सुनकर वहाँ उपस्थित सारे ऋषियों-मुनियों ने एक स्वर से कहा कि आप यहॉं शिवलिंग की स्थापना कीजिए। और विधिवत पूजन कीजिए। इससे आप ब्रह्महत्या के पाप से कुछ समय के लिए छुटकारा पा सकते है।
ब्रह्महत्या:- जिसका शास्त्रों मे विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता, ब्रह्महत्या करने पर मनुष्य को सात पुश्त और सात जन्म तक इसका दण्ड भोगना ही पड़ता है। इसका पुर्णतः किसी भी शास्त्र, पुराण या ग्रन्थ आदि मे कोई भी निवारण नही दिया गया है। कुछ समय के लिए छुटकारा पाने का वर्णन अवस्य मिलता गया है। ब्रह्महत्या पाप से मनुष्य तो क्या बल्कि भगवान श्रीराम को भी कई अवतारो तक मे भी भोगना पड़ा था। इस हत्या के प्रभाव का ही कारण है जो आज श्रीराम तो क्या बल्कि श्रीकृष्ण अवतार के वंशजो का भी कोई अता-पता नही है।
चलिये अब हम श्री रामेश्वरम कथा को आगे बढ़ाते है।
शीघ्र ही हम ब्रह्महत्या पर विस्तार पूर्वक एक लेख आपके लिए पोस्ट करेंगे।
श्री रामेश्वरम की संक्षिप्त कथा
हनुमानजी का कैलाश से शिवलिंग का लाना
तब भगवान श्रीराम ने उनकी यह बात स्वीकार कर हनुमानजी को काशी जाकर वहाँ से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। हनुमानजी तत्काल ही काशी जा पहुंचे किंतु उन्हें उस समय वहाँ भगवान शिव के दर्शन नहीं हुए। अतः वे उनका दर्शन प्राप्त करने के लिए वहीं पर बैठकर तपस्या करने लगे। कुछ काल पश्चात् शिवजी के दर्शन प्राप्त कर हनुमानजी शिवलिंग लेकर लौटे किंतु तब तक शुभ मुहूर्त्त बीत जाने की आशंका से यहाँ सीताजी द्वारा बालू से शिवलिंग की स्थापना का कार्य कराया जा चुका था।
हनुमानजी को यह सब देखकर अत्यंत ही दुःख हुआ। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान श्रीराम से कह सुनाई। भगवान ने पहले ही शिवलिंग स्थापित किए जाने का कारण हनुमानजी को बताते हुए कहा कि यदि तुम चाहो तो इस शिवलिंग को यहाँ से हटा दो और अपने द्वारा लाए शिवलिंग को वहॉं पर स्थापित कर दो। तब हनुमानजी अत्यंत ही प्रसन्न होकर उस शिवलिंग को उखाड़ने लगे, किंतु बहुत प्रत्यन करने के पश्चात भी वह शिवलिंग वहॉं से टस-से मस नहीं हुआ।
हनुमानजी का शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयत्न
अंत में हनुमानजी ने उस शिवलिंग को अपनी पूँछ में लपेटकर उखाड़ने का प्रयत्न किया, फिर भी वह ज्यों का त्यों ही अडिग बना रहा। उलटा हनुमानजी ही धक्का खाकर एक कोस दूर मूर्च्छित होकर जा गिरे। उनके शरीर से रक्त बहने लगा यह सब देखकर सभी लोग अत्यंत ही व्याकुल हो उठे। तब माता सीताजी पुत्र से भी प्यारे अपने हनुमान के शरीर पर हाथ फेरती हुई विलाप करने लगीं।
मूर्च्छा दूर होने पर हनुमानजी ने भगवान श्रीराम को परम ब्रह्म के रूप में सामने देखा। भगवान ने उन्हें शिवजी की महिमा बताकर उनका प्रबोध किया। और हनुमानजी द्वारा काशी से लाए गए शिवलिंग की स्थापना भी वहीं पास में करा दी। छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ स्वामी भी कहलाता है। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। यही मुख्य शिवलिंग ज्योतिर्लिंग है।
रामेश्वरम मंदिर का निर्माण-कला और शिल्पकला
रामेश्वरम का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। मंदिर के प्रवेशद्वार का गोपुरम 38.4 मी. ऊंचा है। यह मंदिर लगभग 6 हेक्टेयर में बना हुआ है। इसके प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा है। प्राकार में और मंदिर के अंदर सैकड़ौ विशाल खंभें है, जो देखने में एक-जैसे लगते है परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है।
रामनाथ के मंदिर के चारों और दूर तक कोई पहाड़ नहीं है, जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें। गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है। यह वास्तव में एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरूरी पत्थर नहीं निकल सकते। रामेश्वरम् के मंदिर में जो कई लाख टन के पत्थर लगे है, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों में लादकर लाये गये है। रामनाथ जी के मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है। कहते है, ये सब पत्थर लंका से लाये गये थे।
श्री रामेश्वरम की यात्रा
रामेश्वरम हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी के चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार का द्वीप है। रामेश्वरम के समुद्र में तरह-तरह की कोड़ियां, शंख और सीपें मिलती है। कहीं-कहीं पर सफेद रंग का बड़ियास मूंगा भी मिलता है। रामेश्वरम केवल धार्मिक महत्व का तीर्थ ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है।
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रामेश्वरम शहर से करीब डेढ़ मील उत्तर-पूर्व में गंधमादन पर्वत नाम की एक छोटी-सी पहाड़ी है। हनुमानजी ने इसी पर्वत से ही समुद्र को लांघने के लिए छलांग मारी थी। बाद में राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए यहीं पर ही विशाल सेना संगठित की थी। इस पर्वत पर एक सुंदर मंदिर भी बना हुआ है, जहाँ श्रीराम के चरण-चिन्हों की पूजा की जाती है। इसे ही पादुका मंदिर कहते हैं।
श्रीराम कहानियो की गूंज
रामेश्वरम् की यात्रा करने वालों को हर जगह राम-कहानी की गूंज सुनाई देती है। रामेश्वरम् के विशाल टापू का चप्पा-चप्पा भूमि राम की कहानी से जुड़ी हुई है। किसी जगह पर राम ने सीता जी की प्यास बुझाने के लिए धनुष की नोंक से कुआं खोदा था, तो कहीं पर उन्होनें सेनानायकों से सलाह की थी। कहीं पर सीताजी ने अग्नि-प्रवेश किया था तो किसी अन्य स्थान पर श्रीराम ने जटाओं से मुक्ति पायी थी। ऐसी सैकड़ों कहानियां प्रचलित है।
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श्री रामेश्वरम FAQ?
श्री रामेश्वरम की कहानी क्या है?
इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह कथा कही जाती है कि जब भगवान श्रीरामंद्रजी लंका पर चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। विस्तार पूर्वक पढ़े..
श्री रामेश्वरम कथा | What Is The Full Story Of Rameshwaram
रामेश्वरम क्यों प्रसिद्ध है?
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने किया था। भगवान श्रीराम ने बालू से शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की तथा भगवान शिव से रावण पर विजय प्राप्त करने का वरदान मांगा। उन्होंने प्रसन्नता के साथ यह वरदान भगवान श्रीराम को दे दिया। भगवान शिव ने लोक-कल्याणार्थ ज्योतिर्लिंग के रूप में वहॉं निवास करने की प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है। विस्तार पूर्वक..
श्री रामेश्वरम कथा | What Is The Full Story Of Rameshwaram
रामेश्वरम में किसकी पूजा की जाती है?
जब भगवान श्रीरामंद्रजी लंका पर चढ़ाई करने के लिए जा रहे थे तब इसी स्थान पर उन्होंने समुद्र की बालू से शिवलिंग बनाकर उसका पूजन किया था। और लोक-कल्याणा के लिए यहॉं भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने की प्रार्थना भी स्वीकार कर ली। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहाँ विराजमान है। विस्तार पूर्वक पढ़े..
अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 8M+ Viewers
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
श्री रामेश्वरम कथा | What Is The Full Story Of Rameshwaram
हनुमानजी ने क्यो उखाड़ना चाहा रामेश्वरम का ज्योतिर्लिंग?
भगवान श्रीराम ने उनकी यह बात स्वीकार कर हनुमानजी को काशी जाकर वहाँ से शिवलिंग लाने का आदेश दिया। हनुमानजी शिवलिंग लेकर लौटे किंतु तब तक यहाँ सीताजी द्वारा बालू से शिवलिंग की स्थापना का कार्य कराया जा चुका था। भगवान ने पहले ही शिवलिंग स्थापित किए जाने का कारण हनुमानजी को बताते हुए कहा कि यदि तुम चाहो तो इस शिवलिंग को यहाँ से हटा दो और अपने द्वारा लाए शिवलिंग को वहॉं पर स्थापित कर दो। विस्तार पूर्वक पढ़े..
श्री रामेश्वरम कथा | What Is The Full Story Of Rameshwaram
ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग कौन सा है?
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामंद्रजी ने किया था। स्कंदपुराण में इसकी महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो मे यह ग्यारहवां ज्योतिर्लिंग है। विस्तार पूर्वक पढ़े..
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