
मुख पृष्ठ संस्कृत पढ़ना सीखें

॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥

आप से आग्रह है कृपया एक समय सुनिश्चित कर अपने बच्चों को भी सनातन संस्कृति और संस्कार के बिषय मे बिस्तार पूर्वक बताए। हमारी संस्कृति ही हमारी असली पहचान है। इसे कदापि न मिटने दें।
व्यवस्थापक:- मनीष कुमार चतुर्वेदी
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संस्कृत पढ़ना सीखें
संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला में आपका स्वागत है। सबसे पहले मैं आपके संस्कृत सीखने के निर्णय का अभिन्नदन करता हुँ।
हम मे से ज़यादातर लोग बचपन में पाठशाला मे संस्कृत का अध्यन करते हैं। लेकिन अच्छी शिक्षा ना पाने की वजह से इस खूबसूरत भाषा को भली प्रकार से सीखने से वंचित रह जाते हैं। मैने देखा है कि पाठशाला या स्कूल मे अध्यापक बिना नियम एवं तर्क बताए ही शिष्यों को पाठ कण्ठ करने के लिए ज़ोर देते हैं। शिष्य केवल परीक्षा उर्तीण करने का प्रयास करते हैं, इससे शिष्यों कि रुची संस्कृत से हट जाती है और फिर कभी ज़िन्दगी मे सीखने का मौका नहीं मिलता।
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लोकमत के विपरीत संस्कृत सीखना सरल है। इसकी वजह ये कि संस्कृत बहुत ही तार्किक और वैज्ञानिक भाषा है। आपको कुछ नियम सीखने होगें, मेहनत करनी होगी और फिर सब सहज लगेगा।
इस साईट के माध्यम से मैं संस्कृत की शिक्षा को सरल बनाने की कोशिश करूँगा।

संस्कृत वर्णमाला
हम वर्णमाला से शुरुवात करते हैं। वर्णमाला को पूरी तरह से जानना आवश्यक है। आजकल ज्यादातर विघालयों मे पुरी वर्णमाला नहीं सिखाई जाती, कुछ अक्षर छोड दिए जाते है, पर मैं इस ब्लाग पर पुरी वर्णमाला की जानकारी दूगाँ ।हिन्दी वर्णमाला स्वर और व्यञ्जन से मिलकर बनी है।
स्वर
स्वर अपने आप मे पूरे होते हैं। उन्हें उच्चारण किसी और अक्षर की जरूरत नहीं होती। हिन्दीं वर्णमाला में 16 स्वर हैं।
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ॠ | लृ | ॡ | ए | ऐ | ओ | औ | अं | अः |
व्यञ्जन
व्यञ्जन अपने आप में पूरे नहीं होते। उनके उच्चारण के लिए स्वर की आवश्यकता होती है। हिन्दीं वर्णमाला में 35 व्यञ्जन हैं।
जैसे
क=क्+अ (अ से मिलकर पूरा क बनता है)
कण्ठय Gutturals | क् | ख् | ग् | घ् | ङ् |
तालव्य Palatals | च् | छ् | ज् | झ् | ञ् |
मूर्धन्य Linguals | ट् | ठ् | ड् | ढ् | ण् |
दन्तय Dentals | त् | थ् | द् | ध् | न् |
ओष्ठय Labials | प् | फ् | ब् | भ् | म् |
अन्तःस्थ Semi Vowel | य् | र् | ल् | व् | |
Sibilant | श् | ष् | स् | ||
Aspirate | ह् |
इसके इलावा 3 प्रकार के ॐ होते है।
संख्याएँ
0 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 |
० | १ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ |
अनुस्वार अं
अनुस्वार को म् की जगह प्रयोग मे लाया जाता है। जैसे अहं या अहम्।
विसर्ग अः
विसर्ग का उच्चारण कैसे करें – विसर्ग (अः) उससे पहले अक्षर की मात्रा की तरह बोला जाता है। रामः शब्द मे विसर्ग म के बाद आता है और म शब्द म् और अ की मात्रा से मिलकर बना है। इसलिए ह के बाद अ की मात्रा लगाएँ। तो रामः का उच्चारण रामह होगा। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखे।
शब्द | उच्चारण |
रामः | रामह |
रामाः | रामाहा |
हरिः | हरिहि |
गुरुः | गुरुहु |
हलन्त्
जब भी हलन्त् किसी अक्षर के नीचे लगता है तो उस अक्षर के उच्चारण की सीमा आधी कर देनी चाहिए। जैसे कप्(Cup) कप(Cupa)।
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मात्रा
अब हम स्वर संबंधी मात्राओं को देखेंगे। स्वरों की मात्रा व्यञ्जनों पर उपयोग की जाती है। (अगर रोज़-मर्रा की भाषा मे बोलें तो व्यञ्जनों क उच्चारण बदलने के लिए उपयोग में लाई जाती है।
स्वर | अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
मात्रा | ा | ि | ी | ु | ू | ृ | े | ै | ो | ौ | |
उदाहरण | क | का | कि | की | कु | कू | कृ | के | कै | को | कौ |
संयुक्त वयञ्जन
संयुक्त वयञ्जन दो या दो से अधिक वयञ्जन से मिलकर बनते हैं। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखें।
क्ष | = | क् | + | ष |
क्त | = | क् | + | त |
ग्र | = | ग | + | र् |
श्र | = | श् | + | र |
ह्य | = | ह् | + | य |
ह्म | = | ह् | + | म |

संस्कृत प्रथम पाठ
प्रथम पाठ यानि की पहला पाठ।
इस पाठ से आपका संस्कृत से पहली बार साक्षात्कार/भेंट होगी।
इस पाठ में मैं कुछ संस्कृत के वाक्य और उनका हिन्दी मे मतलब बताऊँगा। इन वाक्यों के माध्यम से आप संस्कृत के पहले शब्द सीखेगें। तो फिर बिना विल्मब किए शुरुवात करते हैं।
संस्कृत वाक्य
संस्कृत और उनके हिन्दी समतुल्य वाक्यों को गौर से देखें और पढें।
संस्कृत | हिन्दी |
१) अहं रुपा। | मैं रुपा। |
२) अहं चित्रा। | मैं चित्रा। |
३) अहं गच्छामि। | मैं जाता हूँ। |
४) अहं खादामि। | मैं खाता हूँ। |
५) गच्छामि। | मैं जाता हूँ। |
६) खादामि। | मैं खाता हूँ। |
७) अहं वदामि। | मैं बोलता हूँ। |
८) अहं पठामि। | मैं पढता हूँ। |
९) वदामि। | मैं बोलता हूँ। |
१०) पठामि। | मैं पढता हूँ। |
अहम् या अहं
“अहम्” या “अहं” संस्कृत में “मैं” के लिए इसतेमाल किया जाता है। इसलिए “अहं रुपा” (वाक्य – १) बन गया “मैं रुपा” और “अहं चित्रा” (वाक्य – २) बन गया “मैं चित्रा”।
गच्छामि
गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ। अगर आप ध्यान से पढ रहें हैं तो आपने अवश्य सोचा होगा कि अगर गच्छामि का मतलब “मैं जाता हूँ” हैं तो अहं की जरुरत नहीं है। तो आपने बिलकुल सही सोचा है। अगर आप खाली गच्छामि बोलेगें तो भी उसका अर्थ “मैं जाता हूँ” ही होगा। पर एसा क्यूँ?- इसका खुलासा अगले पाठों में होगा।

खादामि
खादामि मतलब मैं खाता हूँ। जैसे गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ वैसे ही खादामि अथवा अहं खादामि अर्थात मैं खाता हूँ। तो यहाँ भी अहं की ज़रुरत नहीं है।
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वदामि
वदामि अथवा अहं वदामि अर्थात मैं बोलता हूँ।

पठामि
पठामि अथवा अहं पठामि अर्थात मैं पढता हूँ।


संस्कृत द्वितीय पाठ
गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम | गच्छति | ||
मध्यम | गच्छसि | ||
उत्तम | गच्छामि |
पुरुष | एकवचन | दिव्वचन | बहुवचन |
प्रथम | सः (पु॰)सा (स्त्री॰)तत् (न॰) | ||
मध्यम | त्वम् | ||
उत्तम | अहम् |
गम् धातु – गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामि, गच्छसि, गच्छति, आच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।
पुरुष
संस्कृत वाक्य बनाने से पहले मैं आपको उत्तम मध्यम और प्रथम पुरुष की जानकारी देना चाहता हूँ।
प्रथम पुरुष
जब श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के लिए बात करी जा रही हो तो उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। जैसे- वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आदि। जैसे – वह लडका जा रहा है, वह 2 चीज़े वहाँ पड़ी हैं, उसन सब ने हाथ में फल लिए हुएँ हैं।
मध्यम पुरुष
जब बोलने वाला श्रोता के लिए बात कर रहा हो, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे – तू, तुम, तुझे, तुम्हारा आदि। जैसे – तुम क्या करते हो, तुम कहाँ जाते हो, तुम्हारा क्या नाम है, तुम दोनो क्या कर रहे हो, तुम सब भागते हो।
उत्तम पुरुष
जब बोलने वाला अपने लिए बोल रहा हो उसे उत्तम पुरुष कहते है। जैसे – मैं, हम, मुझे, हमारा आदि। जैसे – मैं खाता हूँ, मैं वहाँ जाता हूँ, मैं सोता हूँ, हम सब लिखते हैं, हम दोनो खुश हैं।
संस्कृत वाक्य
हमने पिछले पाठ मे सीखा था कि “अहम् गच्छामि” का मतलब “मै जाता हूँ” है। आप ऊपर की तालिकाँओ (Tables) मै देखें कि दोनों (“अहम्” और “गच्छामि”) ही शब्द उत्तम पुरुष कि श्रेणि में आते हैं। उत्तम पुरुष को अग्रेंज़ी में First Person भी कहते हैं।
नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से पढें।
1) अहं गच्छामि
2) त्वं गच्छसि
3) सः गच्छति
4) सा गच्छति
5) तत् गच्छति
स्पष्टीकरण
1) अहं गच्छामि
मै जाता हूँ।
2) त्वं गच्छसि
“त्वं” अर्थात तू , तुम या आप। “गच्छसि” अर्थात “तू जाता है”। एक बार फिर ऊपर की तालिकाँओ में देखें कि दोनो (“ त्वं ” और “ गच्छसि ”) ही मध्यमपुरुष की श्रेणि मे आते है। आप मध्यमपुरुष (Second Person) का प्रयोग अपने सम्मुख व्यक्ति के लिए करते है। स्वयं लिए “अहं” का प्रयोग करें।
यह भी ध्यान रहे कि उत्तम पुरुष क्रिया (Verb) को उत्तम पुरुष सर्वनाम/ संज्ञा (Pronoun/Noun) के साथ ही प्रयोग करें, यानि
गलत | सही |
अहं गच्छसि | अहं गच्छामि |
त्वं गच्छामि | त्वं गच्छसि |
3) सः गच्छति
“सः” (He) अर्थात वह या वो। “गच्छति” अर्थात “वह जाता है”। सः को पुलिङ्ग के लिए ही उपयोग किया जाता है। कोई लडका या आदमी जाता हो तो ही आप सः गच्छति का उपयोग कर सकते हैं।
4) सा गच्छति
स्त्रीलिङ्ग के लिए सा (She) का प्रयोग किया जाता है। सा गच्छति अर्थात वह जाती है।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
5) तत् गच्छति
नपुसंकलिङ्ग के लिए तत् (It) का उपयोग किया जाता है। तत् गच्छति।
इस पाठ मे हमने केवल एकवचन पर ध्यान केन्द्रित किया। अगले पाठ मे हम द्विवचन और बहुवचन पर गौर करेंगें।

संस्कृत तृतीय पाठ
गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम | गच्छति | गच्छतः | गच्छन्ति |
मध्यम | गच्छसि | गच्छथः | गच्छथ |
उत्तम | गच्छामि | गच्छावः | गच्छामः |
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | बहुवचन |
प्रथम | सः (पु॰)सा (स्त्री॰)तत् (न॰) | तौ (पु॰)ते (स्त्री॰)ते (न॰) | ते (पु॰)ताः (स्त्री॰)तानि (न॰) |
मध्यम | त्वम् | युवाम् | युयम् |
उत्तम | अहम् | आवाम् | वयम् |
गम् धातु – गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामि, गच्छसि, गच्छति, आच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।
वचन
संस्कृत वाक्य बनाने से पहले हम एक बार वचनो को देखते हैं।
एकवचन
जब बात 1 जन या चीज़ कि की जा रही हो तो एकवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ वह जाता है।“ , “ यह खाता है।“ , “ बालिका पढती है।“ , “ गाड़ी चलती है।“
द्विवचन
जब बात 2 जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो द्विवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ दो लोग जाते हैं।“ , “ दो लोग खाते हैं।“ , “ दो बालिका पढती हैं।“ , “ दो गाड़ियाँ चलती हैं।“
“तौ” द्विवचन है, यह 2 का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। “तौ गच्छतः” अर्थात वह दोनो जाते हैं।
बहुवचन
जब बात 2 से अधिक जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ बहुत लोग जाते हैं।“ , “ बहुत लोग खाते हैं।“ , “ बहुत बालिका पढती हैं।“ , “ बहुत गाड़ियाँ चलती हैं।“
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“ते” बहुवचन है, यह 2 से अधिक का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। “ते गच्छतः” अर्थात वह सब जाते हैं।
संस्कृत वाक्य
एक बर फिर पिछले पाठ की तरह ऊपर की तालिकाओं को देखकर रंग से रंग मिलाइए।
आवां गच्छावः
हम दो जाते हैं। आवां और गच्छावः दोनो ही द्विवचन और उत्तम पुरुष मे आते हैं। (उपर की तालिकाओं को देखें।) सर्वनाम और क्रिया, वचन और पुरुष दोनो एक दूसरे के लिए संगत या अनुकूल होने चाहिएँ।
वयं गच्छामः
हम सब जाते हैं। यह दोनो वयं और गच्छामः बहुवचन हैं।
युवां गच्छथः
तुम दोनो जाते हो।
युयं गच्छथ
तुम सब जाते हो।
तौ गच्छतः
तुम दोनो (पुलिङ्ग) जाते हो।
ते गच्छतः
तुम दोनो (स्त्रीलिङ्ग / नपुसंकलिङ्ग) जाते हो। उपर की तालिकाओं में देखें कि “ते” दोनो स्त्रीलिङ्ग और नपुसंकलिङ्ग में द्विवचन के लिए इस्तेमाल होता है। या बहुवचन में पुलिङ्ग के लिए भी इसतेमाल होता है।
ते गच्छन्ति
वह सब(पुलिङ्ग) जाते हैं।
ताः गच्छन्ति
वह सब (स्त्रीलिङ्ग) जातीं हैं।
तानि गच्छन्ति
वह सब(नपुसंकलिङ्ग) जाते हैं।

संस्कृत चतुर्थ पाठ
संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला पिछले पाठ में हम ने गम् धातु के बारे मे पढा और उसका प्रयोग सीखा। इस पाठ मे हम कुछ और धातुओं का उदाहरण लेकर वाक्य बनाएँगे। नीचे दी गई तालिका मे धातु और उसका (उत्तम पुरुष – एकवचन), (प्रथम पुरुष – एकवचन) में प्रयोग करना दिखाया गया है। इन को पढें ओर व्यक्तिगत शब्दावली(Vocabulary) या परिभाषिकी(Vocabulary) में उतारें।
धातु | उत्तम पुरुष – एकवचन | प्रथम पुरुष – एकवचन |
वद् | वदामि – मैं बोलता हूँ। | वदति – वह बोलता है। |
पठ् | पठामि – मैं पढता हूँ। | पठति – वह पढता है। |
खाद् | खादामि – मै खाता हूँ। | खादति – वह खाता है। |
लिख् | लिखामि – मैं लिखता हूँ। | लिखति – वह लिखता है। |
हस् | हसामि – मैं हसता हूँ। | हसति – वह हसता है। |
रक्ष् | रक्षामि – मैं रक्षा करता हूँ। | रक्षति – वह रक्षा करता है। |
नम् | नमामि – मैं नमता हूँ। | नमति – वह नमता है। |
पा (पिब) | पिबामि – मैं पीता हूँ। | पिबति – वह पीता है। |
दृश् (पश्य) | पश्यामि – मैं देखता हूँ। | पश्यति – वह देखता है। |
संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला नीचे दी गई तालिका में कुछ ओर वाक्य सिखाए गऐ हैं। यह वाक्य उपर दी गई धातुओं के इसतेमाल करके ही बनाए गए हैं। आप खुद भी एसे ही क्रमरहित वाक्य बनाने का प्रयास करें। यह करने से आपकी संस्कृत भाषा पर पकड़ मज़बूत होगी।
संस्कृत | हिन्दी |
त्वम् वदसि | तुम बोलते हो। |
तै वदन्ति | वह सब बोलते है। |
सा वदति | वह बोलती है। (स्त्रीलिङ्ग) |
युयम् वदथ | तुम सब बोलते हो। |
त्वम् पठसि | तुम पढते हो। |
युवाम् पठथः | तुम दोनो पढते हो। |
ते पठतः | वह दोनो पढतीं हैं। (स्त्रीलिङ्ग) |
युयम् पठथ | तुम सब पढते हो। |
तत् खादति | वह खाता है। (नपुसंकलिङ्ग) |
तानि खादन्ति | वह सब खातें हैं। (नपुसंकलिङ्ग) |
वयम् लिखामः | हम सब लिखते हैं। |
आवाम् लिखावः | हम दोनो लिखते हैं। |
ते हसन्ति | वह सब हसते हैं। |
ताः हसन्ति | वह सब हंसती हैं।(स्त्रीलिङ्ग) |
सः रक्षति | वह रक्षा करता है। |
युयम् रक्षथ | तुम सब रक्षा करते हो। |
तानि रक्षन्ति | वह सब रक्षा करते हैं। (नपुसंकलिङ्ग) |
त्वम् रक्षसि | तुम रक्षा करते हो। |
आवाम् नामावः | हम दोनो नमते हैं। |
युवाम् नमथः | तुम दोनो नमते हो। |
सा पिबति | वह पीती है। (स्त्रीलिङ्ग) |
ते पिबतः | वह दोनो पीती हैं। |
तानि पश्यन्ति | वह सब देखते है। (नपुसंकलिङ्ग) |
तत् पश्यति | वह देखता है। (नपुसंकलिङ्ग) |
इसी तरह हम कुछ – कुछ धातुओं को लेकर वाक्य भी बनाते जाएँगे और नए शब्द भी सीखते जाएँगे। निरंतर अभ्यास करें चाहे हर दिन कम सम्य के लिए ही, ध्यान रहे कि किसी भी भाषा के शुरुवात मे आपको रोज़ अभ्यास करना होगा, अगर ज्यादा अन्तराल तक अभ्यास ना किया गया तो आप सब भूल जाएँगे, और फिर से शुरू से शुरुवात करनी होगी। ध्यान रहे कि मेहनत का फल मीठा होता है।

संस्कृत बोलने से भाषा का अभ्यास शीघ्र हो जाता है। किसी भी भाषा में बोलने का अभ्यास सुन सुनकर बोल बोलकर ही होता है। पुस्तक पड़े बिना व्याकरण के नियमो को जाने बिना मौखिक अभ्यास से ही संस्कृती भाषा को सीख सकते है। इसलिए संस्कृत में ही बोलना चाहिए।
संस्कृतं वदतु हिंदी में
- पञ्चवादने। पाँच बजे ।
- आवश्यक न आसीत् । नहीं चाहिये था।
- महान् आनन्दः। बहुत अच्छा ।
- प्रयत्नं करोमि । कोशिश करूँगा/करुँगी। नहीं हो सकता।
- तथा न वदतु । ऐसा मत कहिये।
- कदा ददाति ? कब दोगे ?
- कति जनाः सन्ति ? कितने लोग हैं
- पुनः आगच्छतु । फिर से आइये।
- अवश्यम् आगच्छामि । जरूर आऊँगा।
- भवान् कथम् अस्ति ? आप कैसे हैं ?
- गृहे सर्वं कुशलम् । घर में सब कुशल हैं
- आम्, सर्व कुशलम् । जी हाँ, सब कुशल है।
- भवतः का वार्ता ? आप का क्या समाचार है ?
- भवान् एव श्रावयतु । आप ही सुनाइये।
- किं मेलनं बहु विरलं जातम् ? क्या बात है? मिलते कम हैं ?
- आगच्छतु, उपविशतु। आइये, बैठिये।
- जलम् आनयामि ? पानी लाऊँ ? नहीं।
- मास्तु नैव। नहीं।
- कथम् आगमनम् अभवत् ? कैसे आना हुआ ?
- मार्गः विस्मृतः किम् ? रास्ता भूल गये क्या ?
- चायं पिबति किम् ? चाय पीयेगें, क्या ?
- नैव, इदानीमेव पीत्वा आगच्छामि। नहीं, इस समय पीकर आ रहा हूँ?
- शैत्यम् अस्ति, स्वल्पं चायं भवेत्। ठण्डक है, थोड़ी सी चाय चलेगी।
- इदानीं मया गन्तव्यम् । इस समय मुझे जाना है।
- तिष्ठतु, भोजनं कृत्वा गच्छतु। रुकिये, भोजन करके जाइये।
- न, इदानीं भोजनं न करोमि। नहीं, इस समय भोजन नहीं करूँगा।
- भोजनस्य समयः अस्ति खलु । भोजन का समय है न।
- पुनः कदा मेलिष्यामः ? फिर कब मिलेगें ?
- भवान् किं करोति ? आप क्या करते हैं ?
- अहम् ‘शिक्षकः’ अस्मि । मैं आचार्य हूँ।
- अहं तु ‘यन्त्रागारे’ कार्य करोमि । मैं तो कारखाने में काम करता हूँ।
- कृपया पुस्तकं ददातु । कृपया पुस्तक दीजिये।
- राकेशः अस्ति किम् ? क्या राकेश जी हैं ?
- मम वचनं शृणोतु। मेरी बात सुनिये।
- भवतः का हानिः ? आपका क्या बिगड़ा
- किमपि न भवति। कुछ नहीं होगा।
- स्वीकरोतु । लीजिए।
- भोजनं सिद्धम् । भोजन तैयार है।

संस्कृत में 1 से 100 तक गिनती
Numbers | संस्कृत गिनती | English Ginti |
---|---|---|
01 | एकः | One |
02 | द्वौ | Two |
03 | त्रयः | Three |
04 | चत्वारः | Four |
05 | पञ्च | Five |
06 | षट् | Six |
07 | सप्त | Seven |
08 | अष्ट | Eight |
09 | नव | Nine |
10 | दस | Ten |
11 | एकादश | Eleven |
12 | द्वादश | Twelve |
13 | त्रयोदश | Thirteen |
14 | चतुर्दश | Fourteen |
15 | पञ्चदश | Fifteen |
16 | षोडश | Sixteen |
17 | सप्तदश | Seventeen |
18 | अष्टादश | Eighteen |
19 | नवदश | Nineteen |
20 | विंशति: | Twenty |
21 | एकविंशति: | Twenty One |
22 | द्वाविंशति: | Twenty Two |
23 | त्रयोविंशति: | Twenty Three |
24 | चतुर्विंशतिः | Twenty Four |
25 | पञ्चविंशति: | Twenty Five |
26 | षड् विंशति: | Twenty Six |
27 | सप्तविंशति: | Twenty Seven |
28 | अष्टाविंशति: | Twenty Eight |
29 | नवविंशति: | Twenty Nine |
30 | त्रिंशत् | Thirty |
31 | एकत्रिंशत् | Thirty One |
32 | द्वात्रिंशत् | Thirty Two |
33 | त्रयस्त्रिंशत् | Thirty Three |
34 | चतुस्त्रिंशत् | Thirty Four |
35 | पञ्चत्रिंशत् | Thirty Five |
36 | षट् त्रिंशत् | Thirty Six |
37 | सप्तत्रिंशत् | Thirty Seven |
38 | अष्टत्रिंशत् | Thirty Eight |
39 | नवत्रिंशत् | Thirty Nine |
40 | चत्वारिंशत् | Forty |
41 | एकचत्वारिंशत् | Forty One |
42 | द्विचत्वारिंशत् | Forty two |
43 | त्रिचत्वारिंशत् | Forty Three |
44 | चतुश्चत्वारिंशत् | Forty Four |
45 | पञ्चचत्वारिंशत् | Forty Five |
46 | षट्चत्वारिंशत् | Forty Six |
47 | सप्तचत्वारिंशत् | Forty Seven |
48 | अष्टचत्वारिंशत् | Forty Eight |
49 | नवचत्वारिंशत् | Forty Nine |
50 | पञ्चाशत् | Fifty |
51 | एकपञ्चाशत् | Fifty one |
52 | द्विपञ्चाशत् | Fifty Two |
53 | त्रिपञ्चाशत् | Fifty Three |
54 | चतुःपञ्चाशत् | Fifty Four |
55 | पञ्चपञ्चाशत् | Fifty Five |
56 | षट्पञ्चाशत् | Fifty Six |
57 | सप्तपञ्चाशत् | Fifty Seven |
58 | अष्टपञ्चाशत् | Fifty Eight |
59 | नवपञ्चाशत् | Fifty Nine |
60 | षष्टिः | Sixty |
61 | एकषष्टिः | Sixty One |
62 | द्विषष्टिः | Sixty two |
63 | त्रिषष्टिः | Sixty Three |
64 | चतुःषष्टिः | Sixty Four |
65 | पञ्चषष्टिः | Sixty Five |
66 | षट्षष्टिः | Sixty Six |
67 | सप्तषष्टिः | Sixty Seven |
68 | अष्टषष्टिः | Sixty Eight |
69 | नवषष्टिः | Sixty Nine |
70 | सप्ततिः | Seventy |
71 | एकसप्ततिः | Seventy One |
72 | द्विसप्ततिः | Seventy Two |
73 | त्रिसप्ततिः | Seventy Three |
74 | चतुःसप्ततिः | Seventy Four |
75 | पञ्चसप्ततिः | Seventy Five |
76 | षट्सप्ततिः | Seventy Six |
77 | सप्तसप्ततिः | Seventy Seven |
78 | अष्टसप्ततिः | Seventy Eight |
79 | नवसप्ततिः | Seventy Nine |
80 | अशीतिः | Eighty |
81 | एकाशीतिः | Eighty One |
82 | द्वयशीतिः | Eighty Two |
83 | त्र्यशीतिः | Eighty Three |
84 | चतुरशीतिः | Eighty Four |
85 | पञ्चाशीतिः | Eighty Five |
86 | षडशीतिः | Eighty Six |
87 | सप्ताशीतिः | Eighty Seven |
88 | अष्टाशीतिः | Eighty Eight |
89 | नवाशीतिः | Eighty Nine |
90 | नवतिः | Ninety |
91 | एकनवतिः | Ninety One |
92 | द्विनवतिः | Ninety Two |
93 | त्रिनवतिः | Ninety Three |
94 | चतुर्नवतिः | Ninety Four |
95 | पञ्चनवतिः | Ninety Five |
96 | षण्णवतिः | Ninety Six |
97 | सप्तनवतिः | Ninety Seven |
98 | अष्टनवतिः | Ninety Eight |
99 | नवनवतिः | Ninety Nine |
100 | शतम् | One Hundred |

