संस्कृत पढ़ना सीखें | Learn Sanskrit

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संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला में आपका स्वागत है। सबसे पहले मैं आपके संस्कृत सीखने के निर्णय का अभिन्नदन करता हुँ।

हम मे से ज़यादातर लोग बचपन में पाठशाला मे संस्कृत का अध्यन करते हैं। लेकिन अच्छी शिक्षा ना पाने की वजह से इस खूबसूरत भाषा को भली प्रकार से सीखने से वंचित रह जाते हैं। मैने देखा है कि पाठशाला या स्कूल मे अध्यापक बिना नियम एवं तर्क बताए ही शिष्यों को पाठ कण्ठ करने के लिए ज़ोर देते हैं। शिष्य केवल परीक्षा उर्तीण करने का प्रयास करते हैं, इससे शिष्यों कि रुची संस्कृत से हट जाती है और फिर कभी ज़िन्दगी मे सीखने का मौका नहीं मिलता।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

लोकमत के विपरीत संस्कृत सीखना सरल है। इसकी वजह ये कि संस्कृत बहुत ही तार्किक और वैज्ञानिक भाषा है। आपको कुछ नियम सीखने होगें, मेहनत करनी होगी और फिर सब सहज लगेगा।

इस साईट के माध्यम से मैं संस्कृत की शिक्षा को सरल बनाने की कोशिश करूँगा।

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संस्कृत वर्णमाला

हम वर्णमाला से शुरुवात करते हैं। वर्णमाला को पूरी तरह से जानना आवश्यक है। आजकल ज्यादातर विघालयों मे पुरी वर्णमाला नहीं सिखाई जाती, कुछ अक्षर छोड दिए जाते है, पर मैं इस ब्लाग पर पुरी वर्णमाला की जानकारी दूगाँ ।हिन्दी वर्णमाला स्वर और व्यञ्जन से मिलकर बनी है।

स्वर

स्वर अपने आप मे पूरे होते हैं। उन्हें उच्चारण किसी और अक्षर की जरूरत नहीं होती। हिन्दीं वर्णमाला में 16 स्वर हैं।

लृअंअः

व्यञ्जन

व्यञ्जन अपने आप में पूरे नहीं होते। उनके उच्चारण के लिए स्वर की आवश्यकता होती है। हिन्दीं वर्णमाला में 35 व्यञ्जन हैं।

जैसे

क=क्+अ (अ से मिलकर पूरा क बनता है)

कण्ठय Gutturals क् ख् ग् घ् ङ्
तालव्य Palatals च् छ् ज् झ् ञ्
मूर्धन्य Linguals ट् ठ् ड् ढ् ण्
दन्तय Dentals त् थ् द् ध् न्
ओष्ठय Labials प्फ् ब् भ् म् 
अन्तःस्थ Semi Vowel य्र् ल् व् 
Sibilantश् ष्स्
Aspirateह्

इसके इलावा 3 प्रकार के ॐ होते है।

संख्याएँ

 0
 ० १२ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ 

अनुस्वार  अं

अनुस्वार को म् की जगह प्रयोग मे लाया जाता है। जैसे अहं या अहम्। 

विसर्ग अः

विसर्ग का उच्चारण कैसे करें – विसर्ग (अः) उससे पहले अक्षर की मात्रा की तरह बोला जाता है। रामः शब्द मे विसर्ग म के बाद आता है और म शब्द म् और अ की मात्रा से मिलकर बना है। इसलिए ह के बाद अ की मात्रा लगाएँ। तो रामः का उच्चारण रामह होगा। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखे।

 शब्द उच्चारण
 रामः रामह
 रामाः रामाहा
 हरिः हरिहि
 गुरुः गुरुहु

हलन्त्

जब भी हलन्त् किसी अक्षर के नीचे लगता है तो उस अक्षर के उच्चारण की सीमा आधी कर देनी चाहिए। जैसे कप्(Cup) कप(Cupa)।

मात्रा

अब हम स्वर संबंधी मात्राओं को देखेंगे। स्वरों की मात्रा व्यञ्जनों पर उपयोग की जाती है। (अगर रोज़-मर्रा की भाषा मे बोलें तो व्यञ्जनों क उच्चारण बदलने के लिए उपयोग में लाई जाती है।

 स्वरअ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ 
 मात्राा ि ी ु ू ृ े ै ो ौ 
उदाहरणक का कि की कु कू कृ के कै को कौ 

संयुक्त वयञ्जन 

संयुक्त वयञ्जन दो या दो से अधिक वयञ्जन से मिलकर बनते हैं। नीचे दिए गए उदाहरणो को देखें।

क्षक् ष 
क्तक् त 
ग्रग र् 
श्र श् +र 
ह्यह्य 
ह्मह् म 
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संस्कृत प्रथम पाठ

प्रथम पाठ यानि की पहला पाठ।
इस पाठ से आपका संस्कृत से पहली बार साक्षात्कार/भेंट होगी।

इस पाठ में मैं कुछ संस्कृत के वाक्य और उनका हिन्दी मे मतलब बताऊँगा। इन वाक्यों के माध्यम से आप संस्कृत के पहले शब्द सीखेगें। तो फिर बिना विल्मब किए शुरुवात करते हैं।

संस्कृत वाक्य

संस्कृत और उनके हिन्दी समतुल्य वाक्यों को गौर से देखें और पढें। 

संस्कृतहिन्दी
१) अहं रुपा।मैं रुपा।
२) अहं चित्रा।मैं चित्रा।
३) अहं गच्छामि।मैं जाता हूँ।
४) अहं खादामि।मैं खाता हूँ।
५) गच्छामि।मैं जाता हूँ।
६) खादामि।मैं खाता हूँ।
७) अहं वदामि।मैं बोलता हूँ।
८) अहं पठामि।मैं पढता हूँ।
९) वदामि।मैं बोलता हूँ।
१०) पठामि।मैं पढता हूँ।

अहम् या अहं

“अहम्” या “अहं” संस्कृत में “मैं” के लिए इसतेमाल किया जाता है। इसलिए “अहं रुपा” (वाक्य – १) बन गया “मैं रुपा” और “अहं चित्रा” (वाक्य – २) बन गया “मैं चित्रा”।

गच्छामि

गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ। अगर आप ध्यान से पढ रहें हैं तो आपने अवश्य सोचा होगा कि अगर गच्छामि का मतलब “मैं जाता हूँ” हैं तो अहं की जरुरत नहीं है। तो आपने बिलकुल सही सोचा है। अगर आप खाली गच्छामि बोलेगें तो भी उसका अर्थ “मैं जाता हूँ” ही होगा। पर एसा क्यूँ?- इसका खुलासा अगले पाठों में होगा।

खादामि

खादामि मतलब मैं खाता हूँ। जैसे गच्छामि अथवा अहं गच्छामि अर्थात मैं जाता हूँ वैसे ही खादामि अथवा अहं खादामि अर्थात मैं खाता हूँ। तो यहाँ भी अहं की ज़रुरत नहीं है।

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वदामि

वदामि अथवा अहं वदामि अर्थात मैं बोलता हूँ।

पठामि

पठामि अथवा अहं पठामि अर्थात मैं पढता हूँ।

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संस्कृत द्वितीय पाठ

गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमगच्छति  
मध्यमगच्छसि  
उत्तमगच्छामि  
पुरुषएकवचनदिव्वचनबहुवचन
प्रथमसः (पु॰)सा (स्त्री॰)तत् (न॰)  
मध्यमत्वम्  
उत्तमअहम्  

गम् धातु – गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामिगच्छसिगच्छतिआच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।

पुरुष

संस्कृत वाक्य बनाने से पहले मैं आपको उत्तम मध्यम और प्रथम पुरुष की जानकारी देना चाहता हूँ।

प्रथम पुरुष

जब श्रोता के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के लिए बात करी जा रही हो तो उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। जैसे- वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आदि। जैसे – वह लडका जा रहा है, वह 2 चीज़े वहाँ पड़ी हैं, उसन सब ने हाथ में फल लिए हुएँ हैं।

मध्यम पुरुष

जब बोलने वाला श्रोता के लिए बात कर रहा हो, उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। जैसे – तू, तुम, तुझे, तुम्हारा आदि। जैसे – तुम क्या करते हो, तुम कहाँ जाते हो, तुम्हारा क्या नाम है, तुम दोनो क्या कर रहे हो, तुम सब भागते हो।

उत्तम पुरुष

जब बोलने वाला अपने लिए बोल रहा हो उसे उत्तम पुरुष कहते है। जैसे – मैं, हम, मुझे, हमारा आदि। जैसे – मैं खाता हूँ, मैं वहाँ जाता हूँ, मैं सोता हूँ, हम सब लिखते हैं, हम दोनो खुश हैं।

संस्कृत वाक्य

हमने पिछले पाठ मे सीखा था कि “अहम् गच्छामि” का मतलब “मै जाता हूँ” है। आप ऊपर की तालिकाँओ (Tables) मै देखें कि दोनों (“अहम्” और “गच्छामि”) ही शब्द उत्तम पुरुष कि श्रेणि में आते हैं। उत्तम पुरुष को अग्रेंज़ी में First Person भी कहते हैं।

नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से पढें।

1) अहं गच्छामि

2) त्वं गच्छसि

3) सः  गच्छति

4) सा गच्छति

5) तत् गच्छति

स्पष्टीकरण

1) अहं गच्छामि

मै जाता हूँ।

2) त्वं गच्छसि

“त्वं” अर्थात तू , तुम या आप। “गच्छसि” अर्थात “तू जाता है”। एक बार फिर ऊपर की तालिकाँओ में देखें कि दोनो (“ त्वं ” और “ गच्छसि ”) ही मध्यमपुरुष की श्रेणि मे आते है। आप मध्यमपुरुष (Second Person) का प्रयोग अपने सम्मुख व्यक्ति के लिए करते है। स्वयं लिए “अहं” का प्रयोग करें।

यह भी ध्यान रहे कि उत्तम पुरुष क्रिया (Verb) को उत्तम पुरुष सर्वनाम/ संज्ञा  (Pronoun/Noun) के साथ ही प्रयोग करें, यानि

गलतसही
अहं गच्छसिअहं गच्छामि
त्वं गच्छामित्वं गच्छसि

3) सः गच्छति

“सः” (He) अर्थात वह या वो। “गच्छति” अर्थात “वह जाता है”। सः को पुलिङ्ग के लिए ही उपयोग किया जाता है। कोई लडका या आदमी जाता हो तो ही आप सः  गच्छति का उपयोग कर सकते हैं।

4) सा गच्छति

स्त्रीलिङ्ग के लिए सा (She) का प्रयोग किया जाता है। सा गच्छति अर्थात वह जाती है।

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5) तत् गच्छति

नपुसंकलिङ्ग के लिए तत् (It) का उपयोग किया जाता है। तत् गच्छति।

 इस पाठ मे हमने केवल एकवचन पर ध्यान केन्द्रित किया। अगले पाठ मे हम द्विवचन और बहुवचन पर गौर करेंगें।

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संस्कृत तृतीय पाठ

गम् (Go) लट् लकार (Present Tense)

पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमगच्छतिगच्छतःगच्छन्ति
मध्यमगच्छसिगच्छथःगच्छथ
उत्तमगच्छामिगच्छावःगच्छामः
पुरुषएकवचनद्विवचनबहुवचन
प्रथमसः (पु॰)सा (स्त्री॰)तत् (न॰)तौ (पु॰)ते (स्त्री॰)ते (न॰)ते (पु॰)ताः (स्त्री॰)तानि (न॰)
मध्यमत्वम्युवाम्युयम्
उत्तमअहम्आवाम्वयम्

गम् धातु – गम् एक धातु है। धातु को आप एक मूल शब्द की तरह समझिए। इस एक गम् शब्द से बहुत सारे शब्द बनाए जा सकते हैं। जैसे गच्छामिगच्छसिगच्छतिआच्छामि आदि। ये सब शब्द धातु के पहले उपसर्ग (Prefix) और प्रत्यय (Suffix) लगाने से बने हैं। इसी प्रकार हम दो या दो से अधिक धातुओं को मिलाकर और फिर उपसर्ग और प्रत्यय लगाकर अनेकोंअनेक शब्द बना सकते हैं। फिलहाल के लिए इस स्पष्टीकरण को समझें, धातु के ऊपर हम फिर विसतार से चर्चा करेंगे।

वचन

संस्कृत वाक्य बनाने से पहले हम एक बार वचनो को देखते हैं।

एकवचन

जब बात 1 जन या चीज़ कि की जा रही हो तो एकवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ वह जाता है।“ , “ यह खाता है।“ , “ बालिका पढती है।“ , “ गाड़ी चलती है।“ 

द्विवचन

जब बात 2 जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो द्विवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ दो लोग जाते हैं।“ , “ दो लोग खाते हैं।“ , “ दो बालिका पढती हैं।“ , “ दो गाड़ियाँ चलती हैं।“ 

“तौ” द्विवचन है, यह 2 का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। “तौ गच्छतः” अर्थात वह दोनो जाते हैं।

बहुवचन

जब बात 2 से अधिक जनो या चीज़ों कि की जा रही हो तो बहुवचन का प्रयोग किया जाता है। जैसे “ बहुत लोग जाते हैं।“ , “ बहुत लोग खाते हैं।“ , “ बहुत बालिका पढती हैं।“ , “ बहुत गाड़ियाँ चलती हैं।“ 

“ते” बहुवचन है, यह 2 से अधिक का अभिप्राय प्रकट करता है। यह प्रथम पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है। “ते गच्छतः” अर्थात वह सब जाते हैं।

संस्कृत वाक्य

एक बर फिर पिछले पाठ की तरह ऊपर की तालिकाओं को देखकर रंग से रंग मिलाइए।

आवां गच्छावः

हम दो जाते हैं। आवां और गच्छावः दोनो ही द्विवचन और उत्तम पुरुष मे आते हैं। (उपर की तालिकाओं को देखें।) सर्वनाम और क्रिया, वचन और पुरुष दोनो एक दूसरे के लिए संगत या अनुकूल होने चाहिएँ।

वयं गच्छामः

हम सब जाते हैं। यह दोनो वयं और गच्छामः बहुवचन हैं।

युवां गच्छथः

तुम दोनो जाते हो।

युयं गच्छथ

तुम सब जाते हो।

तौ गच्छतः

तुम दोनो (पुलिङ्ग) जाते हो।

ते गच्छतः

तुम दोनो (स्त्रीलिङ्ग / नपुसंकलिङ्ग) जाते हो। उपर की तालिकाओं में देखें कि “ते” दोनो स्त्रीलिङ्ग और नपुसंकलिङ्ग में द्विवचन के लिए इस्तेमाल होता है। या बहुवचन में पुलिङ्ग के लिए भी इसतेमाल होता है।

ते गच्छन्ति

वह सब(पुलिङ्ग) जाते हैं।

ताः गच्छन्ति

वह सब (स्त्रीलिङ्ग) जातीं हैं।

तानि गच्छन्ति

वह सब(नपुसंकलिङ्ग) जाते हैं।

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संस्कृत चतुर्थ पाठ

संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला पिछले पाठ में हम ने गम् धातु के बारे मे पढा और उसका प्रयोग सीखा। इस पाठ मे हम कुछ और धातुओं का उदाहरण लेकर वाक्य बनाएँगे। नीचे दी गई तालिका मे धातु और उसका (उत्तम पुरुष – एकवचन), (प्रथम पुरुष – एकवचन) में प्रयोग करना दिखाया गया है। इन को पढें ओर व्यक्तिगत शब्दावली(Vocabulary) या परिभाषिकी(Vocabulary) में उतारें।

धातुउत्तम पुरुष – एकवचनप्रथम पुरुष – एकवचन
वद्वदामि – मैं बोलता हूँ।वदति – वह बोलता है।
पठ्पठामि – मैं पढता हूँ।पठति – वह पढता है।
खाद्खादामि – मै खाता हूँ।खादति – वह खाता है।
लिख्लिखामि – मैं लिखता हूँ।लिखति – वह लिखता है।
हस्हसामि – मैं हसता हूँ।हसति – वह हसता है।
रक्ष्रक्षामि – मैं रक्षा करता हूँ।रक्षति – वह रक्षा करता है।
नम्नमामि – मैं नमता हूँ।नमति – वह नमता है।
पा (पिब)पिबामि – मैं पीता हूँ।पिबति – वह पीता है।
दृश् (पश्य)पश्यामि – मैं देखता हूँ।पश्यति – वह देखता है।

संस्कृत पाठ की इस श्रृंखला नीचे दी गई तालिका में कुछ ओर वाक्य सिखाए गऐ हैं। यह वाक्य उपर दी गई धातुओं के इसतेमाल करके ही बनाए गए हैं। आप खुद भी एसे ही क्रमरहित वाक्य बनाने का प्रयास करें। यह करने से आपकी संस्कृत भाषा पर पकड़ मज़बूत होगी।

संस्कृतहिन्दी
त्वम् वदसितुम बोलते हो।
तै वदन्तिवह सब बोलते है।
सा वदतिवह बोलती है।  (स्त्रीलिङ्ग)
युयम् वदथतुम सब बोलते हो।
त्वम् पठसितुम पढते हो।
युवाम् पठथःतुम दोनो पढते हो।
ते पठतःवह दोनो पढतीं हैं। (स्त्रीलिङ्ग)
युयम् पठथतुम सब पढते हो।
तत् खादतिवह खाता है। (नपुसंकलिङ्ग)
तानि खादन्तिवह सब खातें हैं। (नपुसंकलिङ्ग)
वयम् लिखामःहम सब लिखते हैं।
आवाम् लिखावःहम दोनो लिखते हैं।
ते हसन्तिवह सब हसते हैं।
ताः हसन्तिवह सब हंसती हैं।(स्त्रीलिङ्ग)
सः रक्षतिवह रक्षा करता है।
युयम् रक्षथतुम सब रक्षा करते हो।
तानि रक्षन्तिवह सब रक्षा करते हैं। (नपुसंकलिङ्ग)
त्वम् रक्षसितुम रक्षा करते हो।
आवाम् नामावःहम दोनो नमते हैं।
युवाम् नमथःतुम दोनो नमते हो।
सा पिबतिवह पीती है। (स्त्रीलिङ्ग)
ते पिबतःवह दोनो पीती हैं।
तानि पश्यन्तिवह सब देखते है। (नपुसंकलिङ्ग)
तत् पश्यतिवह देखता है। (नपुसंकलिङ्ग)

इसी तरह हम कुछ – कुछ धातुओं को लेकर वाक्य भी बनाते जाएँगे और नए शब्द भी सीखते जाएँगे। निरंतर अभ्यास करें चाहे हर दिन कम सम्य के लिए ही, ध्यान रहे कि किसी भी भाषा के शुरुवात मे आपको रोज़ अभ्यास करना होगा, अगर ज्यादा अन्तराल तक अभ्यास ना किया गया तो आप सब भूल जाएँगे, और फिर से शुरू से शुरुवात करनी होगी। ध्यान रहे कि मेहनत का फल मीठा होता है।

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संस्कृत बोलने से भाषा का अभ्यास शीघ्र हो जाता है। किसी भी भाषा में बोलने का अभ्यास सुन सुनकर बोल बोलकर ही होता है। पुस्तक पड़े बिना व्याकरण के नियमो को जाने बिना मौखिक अभ्यास से ही संस्कृती भाषा को सीख सकते है। इसलिए संस्कृत में ही बोलना चाहिए।

संस्कृतं वदतु                      हिंदी में 

  • पञ्चवादने।                        पाँच बजे ।
  • आवश्यक न आसीत् ।         नहीं चाहिये था।
  • महान् आनन्दः।                बहुत अच्छा ।
  • प्रयत्नं करोमि ।              कोशिश करूँगा/करुँगी। नहीं हो सकता।
  • तथा न वदतु ।               ऐसा मत कहिये। 
  • कदा ददाति ?                कब दोगे ?
  • कति जनाः सन्ति ?          कितने लोग हैं
  • पुनः आगच्छतु ।             फिर से आइये।
  • अवश्यम् आगच्छामि ।      जरूर आऊँगा।
  • भवान् कथम् अस्ति ?       आप कैसे हैं ?
  • गृहे सर्वं कुशलम् ।            घर में सब कुशल हैं
  • आम्, सर्व कुशलम् ।         जी हाँ, सब कुशल है।   
  • भवतः का वार्ता ?            आप का क्या समाचार है ?
  • भवान् एव श्रावयतु ।        आप ही सुनाइये।
  • किं मेलनं बहु विरलं जातम् ?    क्या बात है? मिलते कम हैं ?
  • आगच्छतु, उपविशतु।                 आइये, बैठिये।
  • जलम् आनयामि ?                      पानी लाऊँ ? नहीं।
  • मास्तु नैव।                                नहीं।
  • कथम् आगमनम् अभवत् ?           कैसे आना हुआ ?
  • मार्गः विस्मृतः किम् ?                  रास्ता भूल गये क्या ?
  • चायं पिबति किम् ?                    चाय पीयेगें, क्या ?
  • नैव, इदानीमेव पीत्वा आगच्छामि।     नहीं, इस समय पीकर आ रहा हूँ?
  • शैत्यम् अस्ति, स्वल्पं चायं भवेत्।      ठण्डक है, थोड़ी सी चाय चलेगी।
  • इदानीं मया गन्तव्यम् ।                    इस समय मुझे जाना है।
  • तिष्ठतु, भोजनं कृत्वा गच्छतु।             रुकिये, भोजन करके जाइये।
  • न, इदानीं भोजनं न करोमि।               नहीं, इस समय भोजन नहीं करूँगा।
  • भोजनस्य समयः अस्ति खलु ।               भोजन का समय है न।
  • पुनः कदा मेलिष्यामः ?                         फिर कब मिलेगें ?
  • भवान् किं करोति ?                            आप क्या करते हैं ? 
  • अहम् ‘शिक्षकः’ अस्मि ।                     मैं आचार्य हूँ।
  • अहं तु ‘यन्त्रागारे’ कार्य करोमि ।          मैं तो कारखाने में काम करता हूँ।
  • कृपया पुस्तकं ददातु ।                कृपया पुस्तक दीजिये।
  • राकेशः अस्ति किम् ?                 क्या राकेश जी हैं ?
  • मम वचनं शृणोतु।                      मेरी बात सुनिये।
  • भवतः का हानिः ?                    आपका क्या बिगड़ा 
  • किमपि न भवति।                    कुछ नहीं होगा।
  • स्वीकरोतु ।                          लीजिए।
  • भोजनं सिद्धम् ।                  भोजन तैयार है।
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संस्कृत में 1 से 100 तक गिनती

Numbersसंस्कृत गिनतीEnglish Ginti
01एकःOne
02द्वौTwo
03त्रयःThree
04चत्वारःFour
05पञ्चFive
06षट्Six
07सप्तSeven
08अष्टEight
09नवNine
10दसTen
11एकादशEleven
12द्वादशTwelve
13त्रयोदशThirteen
14चतुर्दशFourteen
15पञ्चदशFifteen
16षोडशSixteen
17सप्तदशSeventeen
18अष्टादशEighteen
19नवदशNineteen
20विंशति:Twenty
21एकविंशति:Twenty One
22द्वाविंशति:Twenty Two
23त्रयोविंशति:Twenty Three
24चतुर्विंशतिःTwenty Four
25पञ्चविंशति:Twenty Five
26षड् विंशति:Twenty Six
27सप्तविंशति:Twenty Seven
28अष्टाविंशति:Twenty Eight
29नवविंशति:Twenty Nine
30त्रिंशत्Thirty
31एकत्रिंशत्Thirty One
32द्वात्रिंशत्Thirty Two
33त्रयस्त्रिंशत्Thirty Three
34चतुस्त्रिंशत्Thirty Four
35पञ्चत्रिंशत्Thirty Five
36षट् त्रिंशत्Thirty Six
37सप्तत्रिंशत्Thirty Seven
38अष्टत्रिंशत्Thirty Eight
39नवत्रिंशत्Thirty Nine
40चत्वारिंशत्Forty
41एकचत्वारिंशत्Forty One
42द्विचत्वारिंशत्Forty two
43त्रिचत्वारिंशत्Forty Three
44चतुश्चत्वारिंशत्Forty Four
45पञ्चचत्वारिंशत्Forty Five
46षट्चत्वारिंशत्Forty Six
47सप्तचत्वारिंशत्Forty Seven
48अष्टचत्वारिंशत्Forty Eight
49नवचत्वारिंशत्Forty Nine
50पञ्चाशत्Fifty
51एकपञ्चाशत्Fifty one
52द्विपञ्चाशत्Fifty Two
53त्रिपञ्चाशत्Fifty Three
54चतुःपञ्चाशत्Fifty Four
55पञ्चपञ्चाशत्Fifty Five
56षट्पञ्चाशत्Fifty Six
57सप्तपञ्चाशत्Fifty Seven
58अष्टपञ्चाशत्Fifty Eight
59नवपञ्चाशत्Fifty Nine
60षष्टिःSixty
61एकषष्टिःSixty One
62द्विषष्टिःSixty two
63त्रिषष्टिःSixty Three
64चतुःषष्टिःSixty Four
65पञ्चषष्टिःSixty Five
66षट्षष्टिःSixty Six
67सप्तषष्टिःSixty Seven
68अष्टषष्टिःSixty Eight
69नवषष्टिःSixty Nine
70सप्ततिःSeventy
71एकसप्ततिःSeventy One
72द्विसप्ततिःSeventy Two
73त्रिसप्ततिःSeventy Three
74चतुःसप्ततिःSeventy Four
75पञ्चसप्ततिःSeventy Five
76षट्सप्ततिःSeventy Six
77सप्तसप्ततिःSeventy Seven
78अष्टसप्ततिःSeventy Eight
79नवसप्ततिःSeventy Nine
80अशीतिःEighty
81एकाशीतिःEighty One
82द्वयशीतिःEighty Two
83त्र्यशीतिःEighty Three
84चतुरशीतिःEighty Four
85पञ्चाशीतिःEighty Five
86षडशीतिःEighty Six
87सप्ताशीतिःEighty Seven
88अष्टाशीतिःEighty Eight
89नवाशीतिःEighty Nine
90नवतिःNinety
91एकनवतिःNinety One
92द्विनवतिःNinety Two
93त्रिनवतिःNinety Three
94चतुर्नवतिःNinety Four
95पञ्चनवतिःNinety Five
96षण्णवतिःNinety Six
97सप्तनवतिःNinety Seven
98अष्टनवतिःNinety Eight
99नवनवतिःNinety Nine
100शतम्One Hundred
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