
मुख पृष्ठ श्री दुर्गा सप्तशती सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर है। इस स्तोत्र के मूल मन्त्र नवाक्षरी मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) के साथ प्रारम्भ होते है। कुंजिका का अर्थ है चाबी🗝 अर्थात कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है जो महेश्वर शिव के द्वारा गुप्त कर दी गयी है। इस स्तोत्र के पाठ के उपरान्त किसी और जप या पूजा की आवश्यकता नहीं होती, कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से सभी जाप सिद्ध हो जाते है। कुंजिका स्तोत्र में आए बीजों (बीज मन्त्रो) का अर्थ जानना न संभव है, और न ही अतिआवश्यक, अर्थात केवल जप पर्याप्त है।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है:-
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
शिव उवाच-
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥२॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥
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चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥७॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
॥इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
॥हरि ॐ तत्सत्॥
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शिव जी बोले..
देवी! सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है॥१॥
कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है॥२॥
केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुंजिका) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है॥३॥
हे पार्वती! स्वयोनि की भांति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है॥४॥
मंत्र..
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और न ही वांछनीय। केवल जप पर्याप्त है।
हे रुद्ररूपिणी! तुम्हे नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारने वाली तुम्हे नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी! तुम्हे नमस्कार है॥१॥
शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली! तुम्हे नमस्कार है॥२॥
हे महादेवी ! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। ‘ऐंकार’ के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली॥३॥
क्लीं के रूप में कामरूपिणी (तथा अखिल ब्रह्माण्ड) की बीजरूपिणी देवी! तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली हो॥४॥
‘विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। (इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मन्त्र का स्वरुप हो॥५॥
‘धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा कल्याण करो॥६॥
‘हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं जं’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी! तुम्हे बार बार प्रणाम॥७॥
‘अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा। ‘पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो॥८॥
‘सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो। यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
(इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ)
इस पाठ को करने के बाद आपको किसी अन्य पाठ की आवश्यकता नहीं होगी। यह पाठ है.. सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्। समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें। श्री दुर्गा सप्तशती में यह अध्याय सम्मिलित है। यदि समय कम है तो आप इसका पाठ करके भी श्रीदुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ जैसा ही पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। नाम के अनुरूप यह सिद्ध कुंजिका है। जब किसी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा हो, समस्या का समाधान नहीं हो रहा हो, तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करिए। भगवती आपकी रक्षा करेंगी।
पाठ कैसे करें..
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।
संकल्प..
सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
जितने पाठ एक साथ (१, ५, ७, ११, २१, ५१, १०८) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला समाने रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें।
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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।
आसन..
लाल आसन पर बैठकर पाठ करें
दीपक..
घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं
सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय..
रात्रि ९ बजे करें तो अत्युत्तम।
रात को ९ से ११.३० बजे तक का समय रखें।
किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं।
विद्या प्राप्ति के लिए..
११ पाठ रोज करे:- (अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
यश-कीर्ति के लिए..
५१ पाठ रोज करे:- (देवी को चढ़ाया हुआ लाल पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
धन प्राप्ति के लिए..
१०८ पाठ रोज करे:- (सफेद तिल से अग्यारी करें)
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मुकदमे से मुक्ति के लिए..
५१ पाठ रोज करे:- (पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
ऋण मुक्ति के लिए..
२१ पाठ रोज करे:- (जौं की २१ आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
घर की सुख-शांति के लिए..
११ पाठ रोज करे:- (मीठा पान देवी को अर्पण करें)
स्वास्थ्यके लिए..
तीन पाठ रोज करे:- (देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
शत्रु से रक्षा के लिए..
३, ७ या ११ पाठ रोज करे:- (लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
रोजगार के लिए..
३, ५, ७ और ११ पाठ रोज करे:- (एच्छिक) (एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख लें)
सर्वबाधा शांति के लिए..
तीन पाठ रोज करे:- (लोंग के २ जोड़े अग्यारी पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे २ जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।)

