१४. आश्वमेधिकपर्व- महाभारत

॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-





।मुख पृष्ठ।।महाभारत।।१४. आश्वमेधिकपर्व।


महाभारत
(हिन्दी में)
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आश्वमेधिकपर्व का वर्णन
आश्वमेधिकपर्व में 113 अध्याय हैं। आश्वमेधिकपर्व में महर्षि व्यास द्वारा अश्वमेध यज्ञ करने के लिए आवश्यक धन प्राप्त करने का उपाय युधिष्ठिर से बताना और यज्ञ की तैयारी, अर्जुन द्वारा कृष्ण से गीता का विषय पूछना, श्री कृष्ण द्वारा अनेक आख्यानों द्वरा अर्जुन का समाधान करना, ब्राह्मणगीता का उपदेश, अन्य आध्यात्मिक बातें, पाण्डवों द्वारा दिग्विजय करके धन का आहरण, अश्वमेध यज्ञ की सम्पन्नता, युधिष्ठिर द्वारा वैष्णवधर्मविषयक प्रश्न और श्रीकृष्ण द्वारा उसका समाधान आदि विषय वर्णित हैं।
अश्वमेध यज्ञ
कुछ ही समय बाद युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ करने का निश्चय किया। और सभी के साथ बिचार विमर्श किया गया। तब महर्षि व्यास ने अश्वमेध यज्ञ करने के लिए आवश्यक धन प्राप्त करने का उपाय युधिष्ठिर को बताया। और यज्ञ की तैयारी मे सभी जुट गये। सभी कार्य पूर्ण होने के उपरान्त यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया तथा अर्जुन घोड़े के रक्षक बनकर देश-देश विचरने लगे। किसी भी राज्य के राजाओ द्वारा यज्ञ का घोड़ा नही रोका गया। अन्तत: केवल त्रिगर्त के राजा केतुवर्मा ने घोड़ा पकड़ा, और युद्ध के लिए ललकार परन्तु अर्जुन के सामने उसकी एक न चली तथा उसने भी युधिष्ठिर की अधीनता स्वीकार कर ली। इस प्रकार युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण हुआ।
आश्वमेधिक पर्व के अन्तर्गत 3 (उप) पर्व हैं- अश्वमेध पर्व, अनुगीता पर्व, वैष्णव पर्व।
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