
मुख पृष्ठ आरती संग्रह

॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥

संपूर्ण आरती संग्रह AartiSangrah
आरती पूजा का एक हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान है, अर्थात पूजा का एक हिस्सा है, जिसमें एक या एक से अधिक देवी-देवताओं को प्रकाश अर्पित किया जाता है। आरती का तात्पर्य देवी-देवता की स्तुति में गाए जाने वाले गीतों से भी है, जिसके लिए प्रकाश का प्रसाद चढ़ाया जा रहा हो।
तेल के दीपक की सहायता से देवी-देवता के समक्ष आरती की जाती है। दीपक जलाया जाता है और देवता को प्रसाद चढ़ाया जाता है। यह अधिकांश एक घंटी के साथ होता है। अनुष्ठान करने में, उपासक प्रार्थना या भजन गाते हुए दक्षिणावर्त दिशा में दीपक की परिक्रमा करता है। आइए अपने इष्टदेव या देवी माता को आरती या चालीसा के द्वारा आवाहन कर प्रसन्न करें।
श्री दुर्गा सप्तशती जिसमें माँ दुर्गा की महिमा, शक्ति और महासागरी शक्ति का वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
श्री दुर्गा सप्तशती पाठ (संपूर्ण भाग) 🐅
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा.
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा..
एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी,
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी.
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा..
अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया.
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा..
॥ दोहा ॥
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।
॥ चौपाई ॥
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ।।
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥
॥ दोहा ॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश॥
आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥
पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥
दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥
तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥
चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥
पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंजलोचन, कंज – मुख, कर – कंज, पद कंजारुणं॥
कंन्दर्प अगणित अमित छबि नवनील – नीरद सुन्दरं।
पटपीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमि जनक सुतवरं॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव – दैत्यवंश – निकन्दंन।
रधुनन्द आनंदकंद कौशलचन्द दशरथ – नन्दनं॥
सिरा मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषां।
आजानुभुज शर – चाप – धर सग्राम – जित – खरदूषणमं॥
इति वदति तुलसीदास शंकर – शेष – मुनि – मन रंजनं।
मम ह्रदय – कंच निवास कुरु कामादि खलदल – गंजनं॥
मनु जाहिं राचेउ मिलहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो॥
एही भाँति गौरि असीस सुनि सिया सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजी पुनिपुनि मुदित मन मन्दिरचली॥
॥दोहा॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे॥
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम्॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी
बराणु रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार
बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मनबसिया॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥
लाय सजीवन लखन जियाए
श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही
जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहि आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
जै जै जै हनुमान गुसाईँ
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥
जो यह पढ़े हनुमान चालीसा
होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥
॥दोहा॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
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दोहा:-
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय॥
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत॥
शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा॥
आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया॥
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे॥
चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै॥
॥ इति श्री विष्णु चालीसा ॥
कहूँ लगी आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकी जोत बिराजे॥
हो राम…
सात समुद्र जाके चरणनि बसे,
कहा भयो जल कुम्भ भरे॥
हो राम…
कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मंदिर दीप धरे॥
हो राम…
भार अठारह राम बलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्पधरे॥
हो राम…
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे,
कहा भयो नैवेद्य धरे॥
हो राम…
अमित कोटि जाके बाजा बाजे,
कहा भयो झनकार करे॥
हो राम…
चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रम्हा वेद पढ़े॥
हो राम…
शिव सनकादी आदि ब्रम्हादिक,
नारद हनी जाको ध्यान धरे॥
हो राम…
हिम मंदार जाको पवन झकोरे,
कहा भयो शिव चवँर दुरे॥
हो राम…
लाख चौरासी वन्दे छुडाये,
केवल हरियश नामदेव गाये॥
हो राम…
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव…
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव…
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ॐ जय शिव…
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव…
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
ॐ जय शिव…
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
ॐ जय शिव…
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव…
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव…
- आज की पहली पसंद:
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- उत्तरकाण्ड- 101-130
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 101-125
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- बालकाण्ड- 201-225
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 251-275
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 301-326
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- बालकाण्ड- 226-250
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 126-150
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता, मंगल मंगल देव अनन्ता
हाथ वज्र और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेउ साजे
शंकर सुवन केसरी नन्दन, तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
लाल लंगोट लाल दोउ नयना, पर्वत सम फारत है सेना
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी॥
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवन सुत नामा
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवाव
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बन्धन व्याधि विपत्ति निवारें॥
आपन तेज सम्हारो आपे, तीनो लोक हांक ते कांपै
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना॥
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुमरे परस होत सब खण्डा॥
पवन पुत्र धरती के पूता, दो मिल काज करो अवधूता
हर प्राणी शरणागत आये, चरण कमल में शीश नवाये॥
रोग शोक बहुत विपत्ति घिराने, दरिद्र दुःख बन्धन प्रकटाने
तुम तज और न मेटन हारा, दोउ तुम हो महावीर अपारा॥
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुःस्वप्न विनाशा
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे॥
विपत्ति हरन मंगल देवा अंगीकार करो यह सेवा
मुदित भक्त विनती यह मोरी, देउ महाधन लाख करोरी॥
श्री मंगल जी की आरती हनुमत सहितासु गाई
होइ मनोरथ सिद्ध जब अन्त विष्णुपुर जाई॥
आरती युगलकिशोर की कीजै।
तन मन धन न्योछावर कीजै॥
गौरश्याम मुख निरखन लीजै।
हरि का रूप नयन भरि पीजै॥
रवि शशि कोटि बदन की शोभा।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥
ओढ़े नील पीत पट सारी।
कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥
फूलन सेज फूल की माला।
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला॥
कंचन थार कपूर की बाती।
हरि आए निर्मल भई छाती॥
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी।
आरती करें सकल नर नारी॥
नंदनंदन बृजभान किशोरी।
परमानंद स्वामी अविचल जोरी॥
कृपया ध्यान दें:-
बुध ग्रह सूर्य के सबसे करीब ग्रह है। बुध देवता जी की आरती एंवं स्तुति का अपना ही एक महत्व है। ऐसा माना जाता है की बुध देवता अपने भगतों पर ज्ञान और धन की वर्षा करते हैं। बुधवार के दिन की गई एक प्रार्थना सभी बाधाओं से निजात दिलवाती है, जिससे कई गुना लाभ मिलता है। मुख्यतः रूप से संतान प्राप्ति तथा भूमि के लाभ मे इनकी खासकर पूजा की जाती है।
ॐ जय वृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊ फल मेवा॥
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगत्पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥
तन मन धन अर्पणकर जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
दीं दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भावः बंधन हार॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ संतान सुखकारी॥
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेस्तानंद बंद सो सो निश्चय पावे॥
सब बोलो विष्णु भगवान की जय।
सब बोलो बृहस्पति भगवान की जय॥
आरती लक्ष्मण बालजती की।
असुर संहारन प्राणपति की॥
जगमग ज्योति अवधपुर राजे।
शेषाचल पै आप विराजे॥
घंटा ताल पखावज बाजे।
कोटि देव मुनि आरती साजे॥
किरीट मुकुट कर धनुष विराजे।
तीन लोक जाकी शोभा राजे॥
कंचन थार कपूर सुहाई।
आरती करत सुमित्रा माई॥
आरती कीजे हरी की तैसी।
ध्रुव प्रहलाद विभीषण जैसी॥
प्रेम मगन होय आरती गावै।
बसि वैकुण्ठ बहुरि नहीं आवै॥
भक्ति हेतु हरि ध्यान लगावै।
जन घनश्याम परमपद पावै॥
!! जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी,
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी,
नालाम्बर धार नाथ गज की अवसारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी,
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी,
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
!! दे दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी,
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी,
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी !!
॥ॐ शं शनिश्चराय नमः॥
चार भुजा ताहि छाजे, गदा हस्त प्यारी ॥ जय ॥
रवि नंदन गज वंदन, यम् अग्रज देवा
कष्ट न सो नर पाते, करते तब सेना ॥ जय ॥
तेज अपार तुम्हारा, स्वामी सहा नहीं जावे
तुम से विमुख जगत में, सुख नहीं पावे ॥ जय ॥
नमो नमः रविनंदन सब गृह सिरताजा
बंशीधर यश गावे रखियो प्रभु लाजा ॥ जय ॥
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥
परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमके ॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं शत्रु संहारा ॥
पिंगल, कृष्णो, छायानन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःखभंजन ॥
सौरी, मन्द, शनि, दश नामा । भानु पुत्र पूरहिं सब कामा ॥
जापर प्रभु प्रसन्न हो जाहीं । राव करैं रंकहि क्षण माहीं ॥
पर्वतहू तृण होई निहारत । तृणहू को पर्वत सम करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हो । कैकेई की मति हरि लीन्हो ॥
बन में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥
रावण की मति गई बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो झारि करि कंचन लंका । बाज्यो बजरंग बीर का डंका ॥
लछमन विकल शक्ति के मारे । रामादल चिंतित भए सारे॥
नृप विक्रम पर दशा जो आई । चित्र मयूर हार गा खाई ॥
हार नौलखा की लगि चोरी । हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
अति निन्दामय बीता जीवन । तेली सेवा लायो नृप तन ॥
विनय राग दीपक महं कीन्हो । तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हो ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारी बिकानी । राजा भर्यो डोम घर पानी ॥
वक्र दृष्टि जब नल पर आई । भुंजी मीन जल पैठी जाई ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई । जगजननी कह भस्म कराई ॥
तनिक विलोकत करी कुछ रीसा । नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी । अपमानित भई द्रौपदी नारी ॥
कौरव कुल की गति मति हारी । युद्ध महाभारत भयो भारी ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला । कूदि परयो सहसा पाताला ॥
शेष देव तब विनती किन्ही । मुख बाहर रवि को कर दीन्ही ॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना । दिग्गज, गर्दभ, मृग, अरुस्वाना ॥
जम्बुक, सिंह आदि नखधारी । सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं । हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा । सिंह सिद्ध कर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै । मृग दे कष्ट प्राण संहारे ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी । चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा । स्वर्ण लौह चांदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं । धन जन सम्पति नष्ट करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी । स्वर्ण सदा शुभ मंगलकारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै । दशा निकृष्ट न कबहुँ सतावै ॥
नाथ दिखावै अद्भुत लीला । निबल करै जैहे बलशीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई । विधिवत शनि ग्रह कराई ॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत । दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत ‘रासुन्दर’ प्रभु दासा । शनि सुमिरत सुख होत प्रकासा ॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
चलो रे साधो चलो रे सन्तो चन्दन तलाब में नहायस्याँ।
दर्शन ध्यों जगन्नाथ स्वामी, फेर जन्म नाही पायस्याँ॥
चलो रे साधो चलो रे सन्तो, रत्नागर सागर नहायस्याँ।
दर्शन ध्यों रामनाथ स्वामी, फेर जन्म नहीं पायस्याँ॥
चलो रे साधो चलो रे सन्तो, गोमती गंगा में नहायस्याँ।
दर्शन ध्यो रणछोड़ टीकम, फेर जन्म नही पायस्याँ॥
चलो रे साधो चलो रे सन्तो, तपत कुण्ड में नहायस्याँ।
दर्शन ध्यो बद्रीनाथ स्वामी, फेर जन्म नही पायस्याँ॥
कुण दिशा जगन्नाथ स्वामी, कुण दिशा रामनाथ जी।
कुण दिशा रणछोड़ टीकम, कुण दिशा बद्रीनाथ जी॥
पूरब दिशा जगन्नाथ स्वामी, दखिन दिशा रामनाथ जी।
पश्चिम दिशा रणछोड़ टीकम, उत्तर दिशा बद्रीनाथ जी॥
केर चढ़े जगन्नाथ स्वामी, केर चढ़े रामनाथ जी।
केर चढ़े रणछोड़ टीकम, केर चढ़े बद्रीनाथ जी॥
अटको चढ़े जगन्नाथ स्वामी, गंगा चढ़े रामनाथ जी।
माखन मिसरी रणछोड़ टीकम, दल चढ़े बद्रीनाथ जी॥
केर करन जगन्नाथ स्वामी, केर करण रामनाथ जी।
केर करन रणछोड़ टीकम, केर करण बद्रीनाथ जी॥
भोग करन जगन्नाथ स्वामी, जोग करन रामनाथ जी।
राज करण रणछोड़ टीकम, तप करन बद्रीनाथ जी॥
केर हेतु जगन्नाथ जी केर हेतु रामनाथ जी।
केर हेतु रणछोड़ टीकम, केर हेतु बद्रीनाथ जी॥
पुत्र हेतु जगन्नाथ स्वामी, लक्ष्मी हेतु रामनाथ जी।
भक्ति हेतु रणछोड़ टीकम, मुक्ति हेतु बद्रीनाथ जी॥
चार धाम अपार महिमा, प्रेम सहित जो गायसी।
लख चौरासी जुण छूटै फेर जन्म नही पायसी॥
जय लक्ष्मी रमना जय जय श्री लक्ष्मी रमना।
सत्यानारयाना स्वामी जन पटक हरना॥
रत्ना जडित सिंघासन अद्भुत छबि राजे।
नारद करत निरंजन घंटा ध्वनि बाजे॥
प्रकट भये कलि कारन द्विज को दरस दियो।
बुधो ब्रह्मिन बनकर कंचन महल कियो॥
दुर्बल भील कराल जिनपर किरपा करी।
चंद्रचूड एक राजा तिनकी विपति हरी॥
भाव भक्ति के कारन छिन छिन रूप धरयो।
श्रद्धा धारण किन्ही तिनके काज सरयो॥
ग्वाल बाल संग राजा बन में भक्ति करी।
मन वांछित फल दीन्हा दीनदयाल हरी॥
चढात प्रसाद सवायो कदली फल मेवा।
धुप दीप तुलसी से राजी सतदेवा॥
श्री सत्यानारयाना जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
रतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरण ते होत मोह भंगा;
बसी शिव शीश, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता॥
मैया जय सन्तोषी माता…
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हो
मैया माँ धारण कींहो।
हीरा पन्ना दमके तन शृंगार कीन्हो॥
मैया जय सन्तोषी माता…
गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे
मैया बदन कमल सोहे।
मंद हँसत करुणामयि त्रिभुवन मन मोहे॥
मैया जय सन्तोषी माता…
स्वर्ण सिंहासन बैठी चँवर डुले प्यारे
मैया चँवर डुले प्यारे।
धूप दीप मधु मेवा, भोज धरे न्यारे॥
मैया जय सन्तोषी माता…
गुड़ और चना परम प्रिय ता में संतोष कियो
मैया ता में सन्तोष कियो।
संतोषी कहलाई भक्तन विभव दियो॥
मैया जय सन्तोषी माता…
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सो ही,
मैया आज दिवस सो ही।
भक्त मंडली छाई कथा सुनत मो ही॥
मैया जय सन्तोषी माता…
मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई
मैया मंगल ध्वनि छाई।
बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई॥
मैया जय सन्तोषी माता…
भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै
मैया अंगीकृत कीजै।
जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै॥
मैया जय सन्तोषी माता…
दुखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये
मैया संकट मुक्त किये।
बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिये॥
मैया जय सन्तोषी माता…
ध्यान धरे जो तेरा वाँछित फल पायो
मनवाँछित फल पायो।
पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो॥
मैया जय सन्तोषी माता…
चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे
मैया रखियो जगदम्बे।
संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे॥
मैया जय सन्तोषी माता…
सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे
मैया जो कोई जन गावे।
ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे॥
मैया जय सन्तोषी माता…
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनि, त्रिभुवन विख्याता॥ जय…
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥ जय…
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥ जय…
देवी शरण में आये, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया॥ जय…
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥ जय…
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥ जय…
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे॥ जय…
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय…
॥ इति माँ सरस्वती आरती संपूर्णम् ॥
Maa Saraswati Aarti In English
Jai Saraswati Mata, Maiya Jai Saraswati Mata.
Sadgun Vaibhav Shalini, Tribhuvan Vikhyata. Jai…
Chandravadani Padmasini, Dyuti Mangalkaari.
Sohe Shub Hans Savari, Atul Tejdhari. Jai…
Baaye Kar Mein Veena, Daaye Kar Mala.
Shish Mukut Mani Sohe, Gal Motiyan Mala. Jai…
Dev Sharan Jo Aaye, Unka Uddhar Kiya.
Paithi Manthra Dasi, Ravan Sanghar Kiya. Jai…
Veedhya Gyaan Pradayini, Gyaan Prakash Bharo.
Moh Agyaan Aur Timir Ka, Jag Se Naash Karo. Jai…
Dhup Deep Phal Meva, Maa Svikaar Karo.
Gyaanchakshu De Mata, Jag Nistaar Karo. Jai…
Maa Saraswati Ki Aarti, Jo Koi Jann Gaave.
Hitkari Sukhkaari, Gyaan Bhakti Paave. Jai…
Jai Saraswati Mata, Maiya Jai Saraswati Mata.
Sadgun Vaibhav Shalini, Tribhuvan Vikhyata. Jai…
!! Iti Maa Saraswati Aarti !!
ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी.
ॐ जय अम्बे…
मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना चन्द्र बदन नीको.
ॐ जय अम्बे…
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प दल माला कंठन पर साजे.
ॐ जय अम्बे…
केहरि वाहन राजत खड़्ग खप्पर धारी
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी.
ॐ जय अम्बे…
कानन कुण्डल शोभित नासग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति.
ॐ जय अम्बे…
शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती.
ॐ जय अम्बे…
चण्ड – मुंड संहारे सोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे.
ॐ जय अम्बे…
ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी.
ॐ जय अम्बे…
चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरु
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु.
ॐ जय अम्बे…
तुम ही जग की माता तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ता.
ॐ जय अम्बे…
भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मन वांछित फ़ल पावत सेवत नर-नारी.
ॐ जय अम्बे…
कंचन थार विराजत अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति.
ॐ जय अम्बे…
श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे.
ॐ जय अम्बे…
नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुँलोक में डंका बाजत॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तन बीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
आभा पुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो। काम क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें। रिपु मुरख मोही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी॥
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली।
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
माँ बेटे का है इस जग में, बडा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता॥
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
मंगल की सेवा, सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े ।
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे, सन्तन के भण्डार भरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे।
जब-जब भीर पड़े भक्तन पर, तब-तब आय सहाय करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
बार-बार तैं सब जग मोह्यो, तरुणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्य बन भोग करे।
संतन सुखदाई सदा सहाई, सन्त खड़े जयकार करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
ब्रह्मा, विष्णु, महेश फल लिए, भेंट देन तब द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र फिरे।
वार शनिश्चर कुमकुम वरणी, जब लंकुड पर हुक्म करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
खंग खप्पर त्रिशूल हाथ लिए, रक्तबीज कूं भस्म करे।
शुम्भ-निशुम्भ क्षणहिं में मारे, महिषासुर को पकड दले॥
आदितवारि आदि की वीरा, जन अपने का कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
कुपति होय के दानव मारे, चंड मुंड सब दूर करे।
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे।
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जनकी अर्ज कबूल करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
सात बार की महिमा बरनी, सबगुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे।
दर्शन पावें मंगल गावें, सिद्ध साधन तेरी भेंट धरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान करे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती चंवर कुबेर डुलाय रहे।
जै जननी जै मातु भवानी, अचल भवन में राज्य करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
Shri Kali Maa Aarti In English
Mangal Ki Seva, Sun Meri Deva, Hath Jod Tere Dwar Khade.
Pan Supari Dhawaza Nariyal, Le Jwala Teri Bhent Dhare.
Sun Jagdambe Kar Na Vilambe, Santan Ke Bhandar Bhare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Buddhi Vidhata Tu Jagmata, Mera Karaj Sidh Kare.
Charan Kamal Ki Liya Aasra, Sharan Tumhari Aan Pare.
Jab-Jab Bheer Pade Bhaktan Par, Tab Tab Aaye Shaye Kare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Baar-Baar Taii Sab Jag Moyo, Taruni Roop Anoop Dhare.
Mata Hokar Putra Khilave, Kai Barya Ban Bhog Kare.
Santan Sukhdayi Sada Sahai, Sant Khade Jaikar Kare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Bramha, Vishnu, Mahesh Phal Liye, Bhent Den Tab Dwar Khade.
Atal Sinhasan Baithi Mata, Sheir Sone Ka Chatra Phire.
Var Sanichar Kumkum Varni, Jab Lakund Par Hukm Kare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Khang Khapar Trishul Hath Liye, Raktbeez Ko Bhasm Kare.
Sumbh-Nishumbh Charnhi Me Mare, Mahisasur Ko Pakad Dale.
Aa-Ditwari Aadi Ki Veera, Jan Apne Ka Kasht Hare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Kupit Hoye Ke Danav Mare, Chand Mund Sab Dhoor Kare.
Jab Tum Dekho Daya Roop Ho, Pal Me Sankat Door Kare.
Somya Swabhav Dharyo Meri Maata, Jan Ki Arj Kabool Kare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Saat Bar Ki Mahima Barni, Sab Gun Kon Bakhan Kare.
Singh Peeth Par Chadi Bhawani, Atal Bhawan Me Raj Kare.
Darshan Paave Mangal Gaave, Shidh Shadhan Teri Bhent Dhare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
Bramha Vedh Padhe Tere Dware, Shiv Shankar Hari Dhyan Kare.
Indra Krishna Teri Kare Aarti, Chravan Kuber Dular Kare.
Jai Janni Jai Matu Bhawani, Achal Bhawan Me Raj Kare.
Santan Pratipali Sada Khusali, Jai Kali Kalyan Kare.
!! Iti Shree Kali Maa Aarti !!
॥आरती न०- 1॥
जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता, वर दाता
जय जय तुलसी माता॥
सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर
रुज से रक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता॥
बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता
जय जय तुलसी माता॥
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी विख्याता
जय जय तुलसी माता॥
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में
मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता
जय जय तुलसी माता॥
हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी
प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता॥
॥आरती न०- 2॥
तुलसी महारानी नमो नमो, हरी की पटरानी नमो नमो।
धन तुलसी पूरण तप कीनो, शालिग्राम बनी पटरानी।
जाके पत्र मंजर कोमल, श्रीपति कमल चरण लपटानी॥
धुप दीप नैवेद्य आरती, पुष्पन की वर्षा बरसानी।
छप्पन भोग छत्तीसो व्यंजन, बिन तुलसी हरी एक ना मानी॥
सभी सखी मैया तेरो यश गावे, भक्तिदान दीजै महारानी।
नमो नमो तुलसी महारानी, नमो नमो तुलसी महारानी॥
॥दोहा॥
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी॥
श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमरतूल वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब॥
॥चौपाई॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता। महिमा अगम सदा श्रुति गाता॥
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी। हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी॥
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो। तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो॥
हे भगवन्त कन्त मम होहू। दीन जानी जनि छाडाहू छोहु॥
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी। दीन्हो श्राप कध पर आनी॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी। होहू विटप तुम जड़ तनु धारी॥
सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा। करहु वास तुहू नीचन धामा॥
दियो वचन हरि तब तत्काला। सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला॥
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा। पुजिहौ आस वचन सत मोरा॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा। तासु भई तुलसी तू बामा॥
कृष्ण रास लीला के माही। राधे शक्यो प्रेम लखी नाही॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला। नर लोकही तुम जन्महु बाला॥
यो गोप वह दानव राजा। शङ्ख चुड नामक शिर ताजा॥
तुलसी भई तासु की नारी। परम सती गुण रूप अगारी॥
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ। कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥
वृन्दा नाम भयो तुलसी को। असुर जलन्धर नाम पति को॥
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा। लीन्हा शंकर से संग्राम॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे। मरही न तब हर हरिही पुकारे॥
पतिव्रता वृन्दा थी नारी। कोऊ न सके पतिहि संहारी॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई। वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई॥
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा। कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा॥
भयो जलन्धर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा॥
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी। लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता। सोई रावन तस हरिही सीता॥
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा। धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा॥
यही कारण लही श्राप हमारा। होवे तनु पाषाण तुम्हारा॥
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे। दियो श्राप बिना विचारे॥
लख्यो न निज करतूती पति को। छलन चह्यो जब पारवती को॥
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा। जग मह तुलसी विटप अनूपा॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा। नदी गण्डकी बीच ललामा॥
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं। सब सुख भोगी परम पद पईहै॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा॥
जो तुलसी दल हरि शिर धारत। सो सहस्त्र घट अमृत डारत॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी॥
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर। तुलसी राधा में नाही अन्तर॥
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा। बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा॥
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही। लहत मुक्ति जन संशय नाही॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत। तुलसिहि निकट सहसगुण पावत॥
बसत निकट दुर्बासा धामा। जो प्रयास ते पूर्व ललामा॥
पाठ करहि जो नित नर नारी। होही सुख भाषहि त्रिपुरारी॥
॥दोहा॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी॥
सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र॥
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम॥
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास॥
॥दोहा॥
मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस॥
सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार॥ टेक॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जय जय जगत जननि जगदंबा सबकी तुम ही हो अवलंबा॥1॥
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं॥
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
॥ दोहा॥
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास। जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर। मातु लक्ष्मी दास पर, करहु दया की कोर॥
जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता।
हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥
जय वैष्णवी माता…
शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी।
गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥
जय वैष्णवी माता…
ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे।
सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥
जय वैष्णवी माता…
सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे।
बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥
जय वैष्णवी माता…
भवन पे झण्डे झूलें, घंटा ध्वनि बाजे।
ऊँचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे॥
जय वैष्णवी माता…
पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा।
दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥
जय वैष्णवी माता…
जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे।
उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥
जय वैष्णवी माता…
इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे।
कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥
जय वैष्णवी माता…
॥ इति माँ वैष्णो देवी आरती संपूर्णम् ॥
Maa Vaishno Devi Aarti In English
Jai Vashnavi Mata, Maiya Jai Vashnavi Mata.
Hath Jod Tere Aage, Aarti Mai Gaataa.
Jai Vashnavi Mata…
Sheesh Pe Chatra Virajai, Murtiyan Pyaari.
Ganga Bahti Charnan, Jyoti Jage Nyaari.
Jai Vashnavi Mata…
Brahma Ved Padhe Nit Dvare, Shankar Dhyan Dhare.
Sevat Chanvar Dulavat, Narad Nritya Kare.
Jai Vashnavi Mata…
Sundar Gufa Tumhari, Mann Ko Ati Bhave.
Baar-Baar Dekhn Ko, Ae Maa Mann Chaave.
Jai Vashnavi Mata…
Bhawan Pe Jhande Jhulay, Ghanta Dhwani Baajay.
Uncha Parvat Tera, Mata Priya Laagay.
Jai Vashnavi Mata…
Paan Supari Dhwaja Nariyal, Bhet Pushp Mewa.
Daas Khade Charnon Mai, Darshan Do Deva.
Jai Vashnavi Mata…
Jo Jan Nischay karke, Dwar Tere Aavay.
Uski Ichchha Puran, Mata Ho Jaave.
Jai Vashnavi Mata…
Itnni Stuti Nish-Din, Jo Nar Bhi Gaave.
Kahte Sevak Dhyanu, Sukh Sampati Paave.
Jai Vashnavi Mata…
!! Iti Maa Vaishno Devi Aarti !!
जय सिद्धिदात्री मां, तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक, तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बे दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥
॥ इति मां सिद्धिदात्री आरती संपूर्णम् ॥
Maa Siddhidatri Aarti In English
Jai Siddhidatri Maa, Tu Siddhi Ki Data.
Tu Bhakto Ki Rakshq, Tu Daaso Ki Mata.
Tere Naam Lete Hi, Milti Hai Siddhi.
Tere Naam Se Man Ki, Hoti Hai Suddhi.
Kathin Kaam Siddh, Karti Ho Tum.
Jabhi Haath Sevak Ke, Sir Dharti Ho Tum.
Teri Puja Me To, Na Koi Vidhi Hai.
Tu Jagdambe Daati, Tu Sarv Siddhi Hai.
Ravivaar Ko Tera, Sumiran Kare Jo.
Teri Murti Ko Hi, Man Me Dhare Jo.
Tu Sab Kaaj, Uske Karti Hai Pure.
Kabhi Kaam Uske, Rahe Na Adure.
Tumhari Daya Aur, Tumhari Yeh Maya.
Rakhe Jiske Sir Par, Maiya Apni Chaya.
Sarv Siddhi Daati, Vah Hai Bhgyashali.
Jo Hai Tere Dar Ka Hi, Ambe Swali.
Himachal Hai Parvat, Jaha Vaas Tera.
Maha Nanda Mandhir Me Hai, Vaas Tera.
Mujhe Aasra Hai, Tumhara Hi Mata.
Bhakti Hai Swali, Tu Jiski Data.
!! Iti Maa Siddhidatri Aarti !!
ॐ जय ज्वाला माई, मैय्या जय ज्वाला माई।
कष्ट हरण तेरा अर्चन, सुमिरण सुख दाई॥
ॐ जय ज्वाला माई…
मैय्या जय ज्वाला माई, मैय्या जय ज्वाला माई।
कष्ट हरण तेरा अर्चन, सुमिरण सुख दाई॥
ॐ जय ज्वाला माई…
अटल अखंड तेरी ज्योति, युग युग से ही जगे।
ऋषि मुनि सुर नर सबको, बड़ी प्यारी माँ लागे॥
ॐ जय ज्वाला माई…
पार्वती रूप शिव शक्ति, तू ही माँ अम्बे।
पूजे तुम्हे त्रिभुवन के, देवता जगदम्बे॥
ॐ जय ज्वाला माई…
लाखों सूरज फीके, ज्योति तेरी आगे।
तेरे चिंतन से माँ, भवका भय भागे॥
ॐ जय ज्वाला माई…
चरण शरण में चल के, जो तेरे द्वारे आये।
खाली कभी न जाए, वांछित फल पाए॥
ॐ जय ज्वाला माई…
दुर्गति नाशक चंडिका, तू दानव दलनी।
दिन हिन् की रक्षक तू ही सुख करनी॥
ॐ जय ज्वाला माई…
आठों सिद्धियाँ तेरे, द्वार भरे पानी।
दान माँ तुझसे लेते, बड़े बड़े महादानी॥
ॐ जय ज्वाला माई…
चरण कमल तेरी धोकर, ध्यानु ने रस था पिया।
तेरी धुन में खोकर, शीश तेरे भेंट किया॥
ॐ जय ज्वाला माई…
भक्तों के काज असंभव, संभव तू करती।
सुख रत्नों से सबकी, झोलियाँ तू भरती॥
ॐ जय ज्वाला माई…
धुप दीप पुष्पों से, होए तेरा अभिषेक।
तेरे दर रंक को राजा, बनते हुए देखा॥
ॐ जय ज्वाला माई…
अष्ट भुजी सिंह वाहिनी, तू माँ रुद्राणी।
धन वैभव यश देना, हमको महारानी॥
ॐ जय ज्वाला माई…
ज्योति बुझाने आये, राजे अभिमानी।
हार गए वो तुमसे, मूढ़ मति अज्ञानी॥
ॐ जय ज्वाला माई…
माई ज्वाला तेरी आरती, श्रद्धा से जो गाये।
वो निर्दोष उपासक, भव से तर जाए॥
ॐ जय ज्वाला माई…
ॐ जय ज्वाला माई, मैय्या जय ज्वाला माई।
कष्ट हरण तेरा अर्चन, सुमिरण सुखदायी॥
ॐ जय ज्वाला माई…
॥ इति मां ज्वाला आरती संपूर्णम् ॥
Maa Jwala Devi Aarti In English
Om Jai Jwala Maayi, Maiyya Jai Jwala Maayi.
Kasht Haran Tera Archan, Sumiran Sukh Dayi.
Om Jai Jwala Maayi…
Maiyya Jai Jwala Maayi, Maiyya Jai Jwala Maayi.
Kasht Haran Tera Archan, Sumiran Sukh Daayi.
Om Jai Jwala Maayi…
Atal Akhand Teri Jyoti, Yug Yug Se Hi Jage.
Rishi Muni Sur Nar Sabko, Badi Pyaari Maa Laage.
Om Jai Jwala Maayi…
Parvati Rup Shiv Shakti, Tu Hi Maa Ambe.
Puje Tumhe Tribhuvan Ke, Devta Jagdambe.
Om Jai Jwala Maayi…
Laakhon Suraj Fike, Jyoti Teri Aage.
Tere Chintan Se Maa, Bhavka Bhay Bhaage.
Om Jai Jwala Maayi…
Charan Sharan Me Chal Ke, Jo Tere Dwaare Aaye.
Khaali Kabhi Na Jaaye, Wanchhit Phal Paaye.
Om Jai Jwala Maayi…
Durgati Naashak Chandika, Tu Daanav Dalni.
Din Hin Ki Rakshak, Tu Hi Sukh Karni.
Om Jai Jwala Maayi…
Aathon Siddhiyaan Tere, Dwaar Bhare Paani.
Daan Maa Tujhse Lete, Bade Bade Mahadaani.
Om Jai Jwala Maayi…
Charan Kamal Teri Dhokar, Dhyaanu Ne Ras Tha Piya.
Teri Dhun Me Khokar, Sheesh Tere Bhent Kiya.
Om Jai Jwala Maayi…
Bhakton Ke Kaaj Asambhaw, Sambhaw Tu Karti.
Sukh Ratno Se Sabki, Jholiyaan Tu Bharti.
Om Jai Jwala Maayi…
Dhup Deep Pushpon Se, Hoye Tera Abhishek.
Tere Dar Rank Ko, Raja Bante Hue Dekha.
Om Jai Jwala Maayi…
Asht Bhuji Sinh Wahini, Tu Maa Rudrani.
Dhan Vaibhaw Yash, Dena Humko Maharani.
Om Jai Jwala Maayi…
Jyoti Bujhaane Aaye, Raaje Abhimani.
Haar Gaye Wo Tumse, Mudh Mati Agyani.
Om Jai Jwala Maayi…
Maayi Jwala Teri Aarti, Shraddha Se Jo Gaaye.
Wo Nirdosh Upasak, Bhaw Se Tar Jaaye.
Om Jai Jwala Maayi…
Om Jai Jwala Maayi, Maiyya Jai Jwala Maayi.
Kasht Haran Tera Archan, Sumiran Sukhdaayi.
Om Jai Jwala Maayi…
!! Iti Maa Jwala Aarti !!
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता॥
ॐ जय शीतला माता…
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भाता।
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता॥
ॐ जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता॥
ॐ जय शीतला माता…
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता॥
ॐ जय शीतला माता…
घण्टा शंख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरती लखि लखि हर्षाता॥
ॐ जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता।
भक्तन को सुख देती मातु पिता भ्राता॥
ॐ जय शीतला माता…
जो जन ध्यान लगावे प्रेम शक्ति पाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता॥
ॐ जय शीतला माता…
रोगों से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता॥
ॐ जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे दारिद्र कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछताता॥
ॐ जय शीतला माता…
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता।
उत्पत्ति बाला बिनाशन तू सब की माता॥
ॐ जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ माता॥
ॐ जय शीतला माता…
॥ इति श्री शीतला माता आरती संपूर्णम् ॥
Shri Sheetala Mata Aarti In English
Jai Sheetala Mata, Maiya Jai Sheetala Mata.
Aadi Jyoti Maharani, Sab Phal Ki Data.
Jai Sheetala Mata…
Ratan Sinhasan Shobhit, Shvet Chhatr Bhata.
Riddhi-Siddhi Chanvar Dhulaven, Jagamag Chhavi Chhata.
Jai Sheetala Mata…
Vishnu Sevat Thadhe, Seven Shiv Dhata.
Ved Puran Varanat, Paar Nahin Pata.
Jai Sheetala Mata…
Indr Mrdang Bajavat, Chandr Veena Hatha.
Suraj Taal Bajavai, Narad Muni Gata.
Jai Sheetala Mata…
Ghanta Shankh Shahanai, Baajai Mann Bhata.
Karai Bhakt Jan Aarti, Lakhi Lakhi Harshata.
Jai Sheetala Mata…
Brahm Roop Varadani Tuhi, Teen Kal Gyata.
Bhaktan Ko Sukh Deti, Maatu Pita Bhrata.
Jai Sheetala Mata…
Jo Jan Dhyan Lagave, Prem Shakti Pata.
Sakal Manorath Pave, Bhavanidhi Tar Jata.
Jai Sheetala Mata…
Rogon Se Jo Peedit Koi, Sharan Teri Aata.
Kodhi Pave Nirmal Kaya, Andh Netra Pata.
Jai Sheetala Mata…
Banjh Putr Ko Pave, Daaridra Kat Jata.
Tako Bhjai Jo Nahin, Sir Dhuni Pachhatata.
Jai Sheetala Mata…
Sheetal Karati Janani, Too Hi Hai Jag Trata.
Utpatti Baala Binaashan, Too Sab Ki Ghaata.
Jai Sheetala Mata…
Daas Vichitra Kar Jode, Sun Meri Mata.
Bhakti Aapani Deejai, Aur Na Kuchh Bhata.
Jai Sheetala Mata…
!! Iti Shri Sheetala Mata Aarti !!
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी,
जग को तारो भोली माँ,
जन को तारो भोली माँ,
काली दा पुत्र पवन दा घोड़ा भोली माँ…
सिंह पर भई असवार भोली माँ,
चिंतपूर्णी चिंता दूर करो माँ,
एक हाथ खड़ग दूजे में खड़ा,
तीजे त्रिशूल सम्भालो, भोली माँ…
चौथा हाथ चक्कर गदा,
पाँचवे-छठे मुण्ड़ो की माला, भोली माँ…
सातवे में रुंड मुंड विदारे,
आठवे से असुर संहारो, भोली माँ…
चम्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर,
बैठी दीवान लगाये, भोली माँ…
हरी ब्रह्मा तेरे भवन विराजे,
लाल चन्दो भेथी तान, भोली माँ…
औखी घाटी विकटा पेंदा,
टेल बहे दरिया, भोली माँ…
सुमन चरण ध्यानु जस गावे,
भक्तां दी पज निभाओ, भोली माँ…
॥ इति चिंतपूर्णी माता आरती संपूर्णम् ॥
Chintpurni Mata Aarti In English
Chintpurni Chinta Dur Karni,
Jag Ko Taaro Bholi Maa,
Jan Ko Taaro Bholi Maa,
Kaali Da Putra Pavan Da Ghoda Bholi Maa…
Singh Par Bhai Asawaar Bholi Maa,
Chintpurni Chinta Dur Karo Maa,
Ek Haath Khadag Duje Me Khada,
Tije Trishul Sambhaalo, Bholi Maa…
Chauthe Haath Chakkar Gadaa,
Paanchve Chaithe Mundo Ki Mala, Bholi Maa…
Saatve Se Rund Mund Vidaare,
Aathve Se Asur Sanghaaro, Bholi Maa…
Champe Ka Baag Laga Ati Sundar,
Baithi Deevaan Lagaye, Bholi Maa…
Hari Bramha Tere Bhavan Viraaje,
Laal Chando Baithi Taan, Bholi Maa…
Aukhi Ghaati Vikata Paindaa,
Tail Bahe Dariya, Bholi Maa…
Suman Charan Dhyaanu Jas Gaave,
Bhakta Di Paj Nibhao, Bholi Maa…
!! Iti Chintpurni Mata Aarti !!
जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता…
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन, जगपालक कर्त्री।
दु:ख शोक, भय, क्लेश, कलश, दारिद्रय, दैन्य हर्त्री॥
जयति जय गायत्री माता…
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिनी, जगतधातृ अम्बे।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे॥
जयति जय गायत्री माता…
भयहारिणी भवतारिणी अनघे, अज आनन्द राशी।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥
जयति जय गायत्री माता…
कामधेनु सतचित आनन्दा, जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥
जयति जय गायत्री माता…
ऋग, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्रार, सुषुम्ना शोभा गुण गरिमे॥
जयति जय गायत्री माता…
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥
जयति जय गायत्री माता…
जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत, तऊ बालक है तेरे॥
जयति जय गायत्री माता…
स्नेहसनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै॥
जयति जय गायत्री माता…
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥
जयति जय गायत्री माता…
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि-पुष्टि त्राता।
सत मार्ग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
जयति जय गायत्री माता…
॥ इति गायत्री माता आरती संपूर्णम् ॥
Jai Gayatri Mata, Jaiati Jai Gayatri Mata.
Sat Maarag Par Hamen Chalao, Jo Hai Sukhadaata.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Aadi Shakti Tum Alakh Niranjan, Jagpaalak Kartri.
Dukh Shok, Bhay, Klesh, Kalash, Daaridray, Dainya Hartri.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Brahm Roopini, Pranaat Palini, Jagatdhaatra Ambe.
Bhavbhayahari, Janhitkari, Sukhda Jagdambe.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Bhayharini Bhavtarini Anghe, Aj Aanand Rashi.
Avikari, Aghahari, Avichalit, Amale, Avinashi.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Kaamdhenu Satchit Aananda, Jai Ganga Geeta.
Savita Ki Shaashvati, Shakti Tum Savitri Sita.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Rig, Yaju, Saam, Atharv, Pranayini, Pranav Mahamahime.
Kundalini Sahasraar, Sushumna Shobha Gun Garime.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Svaaha, Svadha, Shachi, Brahmani, Radha, Rudrani.
Jai Satroopa, Vaani, Vidya, Kamala, Kalyani.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Janani Hum Hain Deen-Heen, Dukh-Daridr Ke Ghere.
Yadapi Kutil, Kapati Kapoot, Taoo Baalak Hai Tere.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Snehsani Karunamayi Mata, Charan Sharan Deejai.
Bilakh Rahe Hum Shishu Sut Tere, Daya Drshti Keejai.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Kaam, Krodh, Mad, Lobh, Dambh, Durbhaav, Dvesh Hariye.
Shudh Budhi, Nishpaap Hriday, Man Ko Pavitr Kariye.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
Tum Samarth Sab Bhaanti Taarini, Tushti-Pushti Traata.
Sat Maarg Par Humen Chalao, Jo Hai Sukhdata.
Jaiati Jai Gayatri Mata…
!! Iti Gayatri Mata Aarti !!

व्रत कथा
अखंड रामायण / श्री भगवद् गीता
