श्रीरामचरितमानस | ShriRamCharitManas

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॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री रामचरित मानस ॥
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श्रीरामचरितमानस

श्रीरामचरितमानस
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अखंड रामायण

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📕 • वाल्मीकी द्वारा रचित अंग्रेज़ी मे:- ₹150 ₹75

📕 • श्रीभगवद्गीता अंग्रेज़ी मे:- ₹50 ₹25

(श्रीरामचरितमानस के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।)

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श्रीरामचरितमानस

“श्री रामचरित मानस” भारतीय संस्कृति मे एक विशेष स्थान रखती है। वैसे तो श्री रामचरित मानस के बहुत सारे संस्करण इन्टरनेट पर दिख जायेंगे, परन्तु मैंने यंहा पर सम्पूर्ण रामायण एकत्रित करने का प्रयास किया है।
श्रीरामचरित मानस का विधिपूर्वक पाठ करने से पुर्व श्री गोस्वामी तुलसीदास, श्री महर्षि वाल्मीकि, श्री शिवजी तथा श्री हनुमानजी का आवाहन- पूजन करने के पश्चात् तीनों भाइयों सहित श्रीसीतारामजी का आवाहन, षोडशोपचार-पूजन और ध्यान करना चाहिये। तदन्तर पाठ का आरम्भ करना चाहियेः-
पारायण विधि

॥ आवाहन मन्त्रः ॥

तुलसीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुचिव्रत।
नैर्ऋत्य उपविश्येदं पूजनं प्रतिगृह्यताम्॥१॥
ॐ तुलसीदासाय नमः

श्रीवाल्मीक नमस्तुभ्यमिहागच्छ शुभप्रद।
उत्तरपूर्वयोर्मध्ये तिष्ठ गृह्णीष्व मेऽर्चनम्॥२॥
ॐ वाल्मीकाय नमः

गौरीपते नमस्तुभ्यमिहागच्छ महेश्वर।
पूर्वदक्षिणयोर्मध्ये तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥३॥
ॐ गौरीपतये नमः

श्रीलक्ष्मण नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
याम्यभागे समातिष्ठ पूजनं संगृहाण मे॥४॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय लक्ष्मणाय नमः

श्रीशत्रुघ्न नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठस्य पश्चिमे भागे पूजनं स्वीकुरुष्व मे॥५॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय शत्रुघ्नाय नमः

श्रीभरत नमस्तुभ्यमिहागच्छ सहप्रियः।
पीठकस्योत्तरे भागे तिष्ठ पूजां गृहाण मे॥६॥
ॐ श्रीसपत्नीकाय भरताय नमः

श्रीहनुमन्नमस्तुभ्यमिहागच्छ कृपानिधे।
पूर्वभागे समातिष्ठ पूजनं स्वीकुरु प्रभो॥७॥
ॐ हनुमते नमः

अथ प्रधानपूजा च कर्तव्या विधिपूर्वकम्।
पुष्पाञ्जलिं गृहीत्वा तु ध्यानं कुर्यात्परस्य च॥८॥
रक्ताम्भोजदलाभिरामनयनं पीताम्बरालंकृतं
श्यामांगं द्विभुजं प्रसन्नवदनं श्रीसीतया शोभितम्।
कारुण्यामृतसागरं प्रियगणैर्भ्रात्रादिभिर्भावितं
वन्दे विष्णुशिवादिसेव्यमनिशं भक्तेष्टसिद्धिप्रदम्॥९॥
आगच्छ जानकीनाथ जानक्या सह राघव।
गृहाण मम पूजां च वायुपुत्रादिभिर्युतः॥१०॥

इत्यावाहनम्

सुवर्णरचितं राम दिव्यास्तरणशोभितम्।
आसनं हि मया दत्तं गृहाण मणिचित्रितम्॥११॥

॥ इति षोडशोपचारैः पूजयेत् ॥

ॐ अस्य श्रीमन्मानसरामायणश्रीरामचरितस्य श्रीशिवकाकभुशुण्डियाज्ञवल्क्यगोस्वामीतुलसीदासा ऋषयः श्रीसीतरामो देवता श्रीरामनाम बीजं भवरोगहरी भक्तिः शक्तिः मम नियन्त्रिताशेषविघ्नतया श्रीसीतारामप्रीतिपूर्वकसकलमनोरथसिद्धयर्थं पाठे विनियोगः।

अथाचमनम्

श्रीसीतारामाभ्यां नमः।
श्रीरामचन्द्राय नमः।
श्रीरामभद्राय नमः।
इति मन्त्रत्रितयेन आचमनं कुर्यात्।
श्रीयुगलबीजमन्त्रेण प्राणायामं कुर्यात्॥

अथ करन्यासः

जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
अगुंष्ठाभ्यां नमः
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
तर्जनीभ्यां नमः
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
मध्यमाभ्यां नमः
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
अनामिकाभ्यां नमः
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
कनिष्ठिकाभ्यां नमः
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

॥ इति करन्यासः ॥

॥ अथ ह्रदयादिन्यासः ॥


जग मंगल गुन ग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥
ह्रदयाय नमः।
राम राम कहि जे जमुहाहीं। तिन्हहि न पापपुंज समुहाहीं॥
शिरसे स्वाहा।
राम सकल नामन्ह ते अधिका। होउ नाथ अघ खग गन बधिका॥
शिखायै वषट्।
उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
कवचाय हुम्
सन्मुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥
नेत्राभ्यां वौषट्
मामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक॥
अस्त्राय फट्

॥ इति ह्रदयादिन्यासः ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥

मामवलोकय पंकजलोचन। कृपा बिलोकनि सोच बिमोचन॥
नील तामरस स्याम काम अरि। ह्रदय कंज मकरंद मधुप हरि॥
जातुधान बरुथ बल भंजन। मुनि सज्जन रंजन अघ गंजन॥
भूसुर ससि नव बृंद बलाहक। असरन सरन दीन जन गाहक॥
भुजबल बिपुल भार महि खंडित। खर दूषन बिराध बध पंडित॥
रावनारि सुखरुप भूपबर। जय दसरथ कुल कुमुद सुधाकर॥
सुजस पुरान बिदित निगमागम। गावत सुर मुनि संत समागम॥
कारुनीक ब्यलीक मद खंडन। सब विधि कुसल कोसला मंडन॥
कलि मल मथन नाम ममताहन। तुलसिदास प्रभु पाहि प्रनत जन॥

॥ इति ध्यान: ॥

श्लोक :
रामराज्यवासी त्वम्, प्रोच्छ्रयस्व ते शिरम्, न्यायार्थ युद्धस्व, सर्वेषु सम चर।
परिपालय दुर्बलम्, विद्धि धर्मं वरम्प्रोच्छ्रयस्व ते शिरम्, रामराज्यवासी त्वम्॥

भावार्थ :-

तुम रामराज्य वासी, अपना मस्तक उँचा रखो, न्याय के लिए लडो, सबको समान मानो। कमजोर की रक्षा करो, धर्म को सबसे उँचा जानो अपना मस्तक उँचा रखो, तुम रामराज्य के वासी हो॥

बालकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के बालकाण्ड में प्रभु श्री राम के जन्म से विवाह तक के घटनाक्रम का उल्लेख है। बालकाण्ड के सभी घटनाक्रमों की विषय सूची नीचे दी गई है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

अयोध्याकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के अयोध्याकाण्ड में श्रीराम राज्याभिषेक की तैयारी, वन गमन श्रीराम-भरत मिलाप तक के घटनाक्रम आते हैं। अयोध्याकाण्ड से जुड़े सभी घटनाक्रमों की सूची नीचे दी गई है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

अरण्यकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के अरण्यकाण्ड में शूर्पणखा वध, मारीच प्रसंग और रावण का सीता हरण के घटनाक्रम अरण्यकाण्ड में उल्लेखित हैं। अरण्यकाण्ड से जुड़े सभी घटनाक्रमों की सूची नीचे दी गयी है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

किष्किंधाकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के किष्किंधाकाण्ड में श्री राम – हनुमान और सुग्रीव मिलन, सुग्रीव का दुःख सुनना, बाली का उद्धार, सीता जी की खोज के लिए सभी का प्रस्थान और जामवंत का हनुमान को बल स्मरण कराना उल्लेखित है। किष्किंधाकाण्ड से जुड़े सभी घटनाक्रमों की सूची नीचे दी गई है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

सुन्दरकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी का लंका प्रस्थान, सुरसा भेंट, लंकिनी वध,सीता और हनुमान जी संवाद, लंका दहन, हनुमान जी की वापसी, रावण – विभीषण संवाद, विभीषण का श्रीराम जी से शरण प्राप्ति और समुद्र पर श्रीराम जी का क्रोध तक की घटनायें हैं। सुन्दरकाण्ड से जुड़े सभी घटनाक्रमों की सूची नीचे दी गयी है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

लंकाकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के लंकाकाण्ड में नल नील का समुद्र पे सेतु बांधना, सभी का समुद्र पार करना, अंगद-रावण संवाद, लक्ष्मण-मेघनाथ युद्ध, हनुमान जी का संजीवनी लाने के लिए जाना, कुम्भकर्ण का जागना और उसकी परमगति, मेघनाथ युद्ध, राम – रावण युद्ध, सीता जी अग्नि परीक्षा, विभीषण का राज्याभिषेक और श्री सीता-रामजी का अवध के लिए प्रस्थान उल्लेखित है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

उत्तरकाण्ड

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श्री रामचरित मानस के उत्तरकाण्ड में भरत विरह, श्री रामजी का स्वागत, राज्याभिषेक, रामराज्य वर्णन, पुत्रोत्पति, श्री रामजी का प्रजा को उपदेश, श्री रामजी का भाइयों सहित अमराई में जाना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर और रामायणजी की आरती उल्लेखित है। आप सभी घटना के बारे में उस पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।


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रामायण की सीख

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• रामायण के सारे चरित्र अपने धर्म का पालन करते हैं।
• राम एक आदर्श पुत्र हैं। पिता की आज्ञा उनके लिये सर्वोपरि है। पति के रूप में राम ने सदैव एकपत्नीव्रत का पालन किया। राजा के रूप में प्रजा के हित के लिये स्वयं के हित को हेय समझते हैं। विलक्षण व्यक्तित्व है उनका। वे अत्यन्त वीर्यवान, तेजस्वी, विद्वान, धैर्यशील, जितेन्द्रिय, बुद्धिमान, सुंदर, पराक्रमी, दुष्टों का दमन करने वाले, युद्ध एवं नीतिकुशल, धर्मात्मा, मर्यादापुरुषोत्तम, प्रजावत्सल, शरणागत को शरण देने वाले, सर्वशास्त्रों के ज्ञाता एवं प्रतिभा सम्पन्न हैं।
• सीता का पातिव्रत महान है। सारे वैभव और ऐश्ववर्य को ठुकरा कर वे पति के साथ वन चली गईं।
• रामायण भातृ-प्रेम का भी उत्कृष्ट उदाहरण है। जहाँ बड़े भाई के प्रेम के कारण लक्ष्मण उनके साथ वन चले जाते हैं वहीं भरत अयोध्या की राज गद्दी पर, बड़े भाई का अधिकार होने के कारण, स्वयं न बैठ कर राम की पादुका को प्रतिष्ठित कर देते हैं।
• कौशल्या एक आदर्श माता हैं। अपने पुत्र राम पर कैकेयी के द्वारा किये गये अन्याय को भुला कर वे कैकेयी के पुत्र भरत पर उतनी ही ममता रखती हैं जितनी कि अपने पुत्र राम पर।
• हनुमान एक आदर्श भक्त हैं, वे राम की सेवा के लिये अनुचर के समान सदैव तत्पर रहते हैं। शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण को उनकी सेवा के कारण ही प्राणदान प्राप्त होता है।
• रावण के चरित्र से सीख मिलती है कि अहंकार नाश का कारण होता है।
• रामायण के चरित्रों से सीख लेकर मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
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