हिन्दुत्व कि दुनिया

हिन्दुत्व कि दुनिया ही हमारी असली पहचान है।

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॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥
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मुख पृष्ठहिन्दुत्व की दुनिया

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मित्र यह एक निःशुल्क बेवसाइट है। इसलिए यहाँ पर किसी भी प्रकार से कोई राशी नही काटा जाता है। यह अपने आप मे पहला वेबसाइट भी है। जहाँ पर आप हिन्दु धर्म (सनातन धर्म) कि संस्कृति और संस्कार से पुर्णत: जुड़ सकते है। यहाँ पर आपको हिन्दुत्व की दूनिया से जोड़कर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाने का प्रयास किया गया है।
आप से आग्रह है कृपया एक समय सुनिश्चित कर अपने बच्चों को भी सनातन संस्कृति और संस्कार के बिषय मे बिस्तार पूर्वक बताए। हमारी संस्कृति ही हमारी असली पहचान है। इसे कदापि न मिटने दें।
व्यवस्थापक:- मनीष कुमार चतुर्वेदी

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हिन्दुत्व हि हमारी असली पहचान है। भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का प्रमुख रूप है। हिन्दुत्व शब्द का उपयोग पहली बार १८९२ में चंद्रनाथ बसु ने किया था और बाद में इस शब्द को १९२३ में विनायक दामोदर सावरकर ने लोकप्रिय बनाया। यह हिन्दू राष्ट्रवादी स्वयंसेवी सङ्गठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS), विश्व हिन्दू परिषद (VHP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य सङ्गठनों द्वारा संयुक्त रूप से सङ्घ परिवार कहा जाता है। हिन्दुत्व आंदोलन को उसके आलोचकों द्वारा दक्षिणपन्थी राजनीति के रूप में और “शास्त्रीय अर्थों में लगभग फासीवादी” के रूप में वर्णित किया गया है, जो समरूप बहुसंख्यक और सांस्कृतिक आधिपत्य की एक विवादित अवधारणा का पालन करता है। कुछ लोग फासीवादी विशेषण पर विवाद करते हैं, और सुझाव देते हैं कि हिंदुत्व “रूढ़िवाद” या “नैतिक निरपेक्षता” का एक चरम् रूप है।

२०१४ में प्रधानमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के चुुुनाव के साथ हिन्दुत्व को भारतीय राजनीति में मुख्य धारा में लाया गया।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत और नेपाल में हैं। इसे विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।

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जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र भी कहते हैं। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। ‘उपनयन’ का अर्थ है, ‘पास या सन्निकट ले जाना।’ किसके पास? ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाना। हिन्दू समाज का हर वर्ग जनेऊ धारण कर सकता है। जनेऊ धारण करने के बाद ही द्विज बालक को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है।

सनातन धर्म यह वेदों पर आधारित धर्म है, जो अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए है। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है।

चार ऋण। जब मनुष्य जन्म लेता है तो कर्मानुसार उसकी मृत्यु तक कई तरह के ऋण, पाप और पुण्य उसका पीछा करते रहते हैं। हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि तीन तरह के ऋण को चुकता कर देने से मनुष्य को बहुत से पाप और संकटों से छुटकारा मिल जाता है। हालांकि जो लोग इसमें विश्वास नहीं करते उनको भी जीवन के किसी मोड़ पर इसका भुगतान करना ही होगा। आखिर ये ऋण कौन से हैं और कैसे उतरेंगे यह जानना जरूरी है।

संध्यावंदनम् या संध्यावंदन (संस्कृत: saṃdhyāvandana) या संध्योपासनम् (संध्योपासन) उपनयन संस्कार द्वारा धार्मिक अनुष्ठान के लिए संस्कारित हिंदू धर्म में गुरू द्वारा उसके निष्पादन हेतु दिए गए निदेशानुसार की जाने वाली महत्वपूर्ण नित्य क्रिया है। संध्यावंदन में महान वेदों से उद्धरण शामिल हैं जिनका दिन में तीन बार पाठ किया जाता है।

इस बात को तो शायद सभी जानते ही हैं कि 25 दिसंबर के दिन तुलसी पूजन दिवस मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इसे पूजनीय माना गया है और आयुर्वेद में तुलसी को अमृत कहा गया है, क्योंकि ये औषधि का काम भी करती है। बता दें कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां हमेशा सुख-शांति का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी के पत्ते के बिना भगवान श्री हरि भोग स्वीकार नहीं करते हैं।

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सूर्य मंत्र आपकी सभी मनोकामनाएं करेगा पूर्ण, मनुष्य के जीवन में बहुत सी तकलीफ उत्पन्न होती है, जिनको लेकर अक्सर व्यक्ति काफी चिंतित रहता है, हर कोई व्यक्ति चाहता है कि वह अपने जीवन की परेशानियों से जल्द छुटकारा प्राप्त करें और वह अपनी मनोकामनाओं को पूरा कर सके, जिसके लिए वह देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करता है, जैसा कि आप लोग जानते हैं सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है

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भगवान् विष्णु पाप और कष्ट से दिला सकते है मुक्ति, जानिये क्या है प्रसन्न करने का तरीकापूरी दुनिया के पालन हार श्री हरि की कृपा जिस भक्त को मिलती है. उसका तो मानो जीवन धन्य हो जाता है. श्री हरि की भक्ति हर पाप और कष्ट से मुक्ति दिला सकती है. परन्तु सवाल ये कि श्री हरि को प्रसन्न कैसे किया जाए. श्री हरि को मनाने के लिए उनकी कृपा पाने के लिए धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में कई दिव्य मंत्र बताए गए हैं।

चन्द्रमा की प्रसन्नता के लिए चान्द्रायण व्रतचान्द्रायण व्रत का अर्थ है ‘चन्द्रमा के ह्रास-वृद्धि (घटने-बढ़ने) के समान आहार (भोजन) को घटा-बढ़ाकर किया जाने वाला व्रत। कुण्डली में कमजोर चन्द्रमा को ठीक करने, पापों के नाश, किसी प्रायश्चित के लिए और चन्द्रलोक की प्राप्ति के लिए ‘चान्द्रायण’ व्रत किया जाता है ।

वैभव लक्ष्मी व्रत घर में सुख-समृद्धि की कामना को पूर्ण करता है। यदि आप आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं, घर में धन रुक नहीं रहा है, प्रयास करने पर भी काम नहीं बन रहे हैं तो 11 या 21 शुक्रवार को माँ वैभव लक्ष्मी का व्रत करने का संकल्प लें। यह व्रत शुक्रवार को ही किया जाता है।

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महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का सबसे बड़ा मंत्र माना जाता है। हिन्दू धर्म में इस मंत्र को प्राण रक्षक और महामोक्ष मंत्र कहा जाता है। मान्यता है कि महामृत्युंजय मंत्र से शिवजी को प्रसन्न करने वाले जातक से मृत्यु भी डरती है। इस मंत्र को सिद्ध करने वाला जातक निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त करता है। यह मंत्र ऋषि मार्कंडेय द्वारा सबसे पहले पाया गया था।

कामाख्या कवच माँ कामाख्या देवी को समर्पित हैं ! कामाख्या कवच के भगवान शिव जी रचियता है ! कामाख्या कवच को नियमित रूप से पाठ करने से जातक के ऊपर किसी तरह का तांत्रिक प्रभाव, बुरी नज़र का प्रभाव, काला जादू का प्रभाव नही होता हैं। मित्रो हमारे ऋषि-मुनियों का मानना था यदि आप नियमित रूप से कामाख्या कवच का पाठ करते हैं तो कोई तंत्र मंत्र जादू टोना आप पर कभी भी असर नहीं करेगा।

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दारिद्रय दहन स्तोत्र: इसे पढ़ने से दूर होते हैं आर्थिक संकट प्रतिदिन भगवान शिव का ‘दारिद्रय दहन स्तोत्र’ के साथ अभिषेक करने से मनुष्य को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता से मुक्ति मिलती है। हमारे शास्त्रों में ऐसे अनेक अनुष्ठानों एवं स्तोत्र का उल्लेख है जिनसे दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर है। इस स्तोत्र के मूल मन्त्र नवाक्षरी मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) के साथ प्रारम्भ होते है। कुंजिका का अर्थ है चाबी 🗝 अर्थात कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है जो महेश्वर शिव के द्वारा गुप्त कर दी गयी है।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

ग्रहों के द्वारा उत्पन्न पीड़ा का निवारण करने के लिए ब्रह्माण्डपुराणोक्त इस स्तोत्र का पाठ लाभदायक है। इसमें सूर्यादि नौ ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है।

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क्षमा मांगने वाला मंत्र कई बार हम अनजाने में ऐसी-ऐसी गलतियां (Mistakes) कर जाते हैं जिनके बारे में हमको पता नहीं होता है। इस बारे में आपको जानकारी जब होती है तब तक बहुत देर हो जाती है। अगर आपस ऐसा हुआ है तो ये आलेख आपके लिए सबसे अच्छा है। क्योंकि इसमें बताया जाएगा की गलतियों की मांफी भगवान से कैसे मांगी जाती है।

गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मन्त्र ‘ॐ भूर्भुवः स्वः’ और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।

मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही है, लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, ‍जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता है। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं।

हनुमान चालीसा हम सभी को लगभग पूर्णतः स्मरण है। परन्तु क्या आपको पता है। कि हम हनुमान जी क्या कहते है और क्या पढ़ते है। शायद नही। इस लिए आप की सुविधा के लिए हम हनुमान चालीसा भावार्थ सहित उपल्बध करा रहे है।

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श्री रामचरित मानस के सिद्ध ‘मन्त्र’ नियम-मानस के दोहे-चौपाईयों को सिद्ध करने का विधान यह है कि किसी भी शुभ दिन की रात्रि को दस बजे के बाद अष्टांग हवन के द्वारा मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस कार्य के लिये मन्त्र-जप की आवश्यकता हो, उसके लिये नित्य जप करना चाहिये। वाराणसी में भगवान् शंकरजी ने मानस की चौपाइयों को मन्त्र-शक्ति प्रदान की है-इसलिये वाराणसी की ओर मुख करके शंकरजी को साक्षी बनाकर श्रद्धा से जप करना चाहिये।

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