श्री दुर्गा सप्तशती- देवीमयी

श्री दुर्गा सप्तशती - देवीमयी

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श्री दुर्गा सप्तशती - देवीमयी

देवीमयी

तव च का किल न स्तुतिरम्बिके! सकलशब्दमयी किल ते तनुः।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयो मनसिजासु बहिःप्रसरासु च॥

इति विचिन्त्य शिवे! शमिताशिवे! जगति जातमयत्‍‌नवशादिदम्।
स्तुतिजपार्चनचिन्तनवर्जिता न खलु काचन कालकलास्ति मे॥

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

‘हे जगदम्बिके! संसार में कौन-सा वाङ्मय ऐसा है, जो तुम्हारी स्तुति नहीं है, क्योंकि तुम्हारा शरीर तो सकलशब्दमय है। हे देवी! अब मेरे मन में संकल्प विकल्पात्मक रूप से उदित होने वाली एवं संसार में दृश्य रूप से सामने आने वाली सम्पूर्ण आकृतियों में आपके स्वरूप का दर्शन होने लगा है। हे समस्त अमंगल ध्वंसकारिणि कल्याण स्वरूपे शिवे! इस बात को सोचकर अब बिना किसी प्रयत्न के ही सम्पूर्ण चराचर जगत्‌ में मेरी यह स्थिति हो गयी है कि मेरे समय का क्षुद्रतम अंश भी तुम्हारी स्तुति, जप, पूजा अथवा ध्यान से नहीं है। अर्थात् मेरे सम्पूर्ण जागतिक आचार-व्यवहार तुम्हारे ही -भिन्न रूपों के प्रति यथोचित रूप से व्यवहृत होने के कारण तुम्हारी रूप में परिणत हो गये हैं।

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अम्बे तू है जगदम्बे काली

अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
तेरे भक्त जनों पे माता, भीर पड़ी है भारी।
दानव दल पर टूट पडो माँ, करके सिंह सवारी॥
सौ सौ सिंहों से तु बलशाली, दस भुजाओं वाली।
दुखिंयों के दुखडें निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
माँ बेटे का है इस जग में, बडा ही निर्मल नाता।
पूत कपूत सूने हैं पर, माता ना सुनी कुमाता॥
सब पर करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली।
दुखियों के दुखडे निवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
नहीं मांगते धन और दौलत, न चाँदी न सोना।
हम तो मांगे माँ तेरे मन में, इक छोटा सा कोना॥
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली।
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गायें भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥

श्री काली माँ की आरती

मंगल की सेवा, सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े ।
पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरे।
सुन जगदम्बे कर न विलम्बे, सन्तन के भण्डार भरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे।
चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे।
जब-जब भीर पड़े भक्तन पर, तब-तब आय सहाय करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
बार-बार तैं सब जग मोह्‌यो, तरुणी रूप अनूप धरे।
माता होकर पुत्र खिलावै, कहीं भार्य बन भोग करे।
संतन सुखदाई सदा सहाई, सन्त खड़े जयकार करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
ब्रह्‌मा, विष्णु, महेश फल लिए, भेंट देन तब द्वार खड़े।
अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र फिरे।
वार शनिश्चर कुमकुम वरणी, जब लंकुड पर हुक्म करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
खंग खप्पर त्रिशूल हाथ लिए, रक्तबीज कूं भस्म करे।
शुम्भ-निशुम्भ क्षणहिं में मारे, महिषासुर को पकड दले॥
आदितवारि आदि की वीरा, जन अपने का कष्ट हरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
कुपति होय के दानव मारे, चंड मुंड सब दूर करे।
जब तुम देखो दया रूप हो, पल में संकट दूर टरे।
सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता, जनकी अर्ज कबूल करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
सात बार की महिमा बरनी, सबगुण कौन बखान करे।
सिंह पीठ पर चढ़ी भवानी, अटल भवन में राज करे।
दर्शन पावें मंगल गावें, सिद्ध साधन तेरी भेंट धरे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥
ब्रह्‌मा वेद पढ़े तेरे द्वारे, शिव शंकर हरि ध्यान करे।
इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती चंवर कुबेर डुलाय रहे।
जै जननी जै मातु भवानी, अचल भवन में राज्य करे।
संतन प्रतिपाली सदाखुशहाली, जै काली कल्याण करे॥

श्री दुर्गा सप्तशती - देवीमयी

सिद्ध सम्पुट मन्त्र श्री दुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती - देवीमयी

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