श्री शिव महापुराण – माहात्म्य

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श्री शिव महापुराण – एक सिंहावलोकन

ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च
नमः शङ्कराय च मयस्कराय च
नमः शिवाय च शिवतराय च॥

कल्याण एवं सुख के मूल स्रोत भगवान् सदाशिव को नमस्कार है। कल्याण का विस्तार करने वाले तथा सुख का विस्तार करने वाले भगवान् शिव को नमस्कार है। मंगल स्वरूप और मंगलमयता की सीमा भगवान् शिव को नमस्कार है।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

पुराणों में शिव महापुराण का अत्यन्त महिमामय स्थान है। पुराणों की परिगणना में वेदतुल्य, पवित्र और सभी लक्षणों से युक्त यह चौथा महापुराण है। इस ग्रन्थरत्न के आदि, मध्य और अन्त में सर्वत्र भूतभावन भगवान् सदाशिव की महिमा का प्रतिपादन किया गया है। इस पुराण में परब्रह्म परमात्मा की सदाशिवरूप में उपासना का वर्णन है। भगवान् सदाशिव की लीलाएँ अनन्त हैं, उनकी लीला – कथाओं तथा उनकी महिमा का वर्णन ही इस ग्रन्थ का मुख्य प्रतिपाद्य विषय है, जिसके सम्यक् अवगाहन से साधकों – भक्तों का मन महादेव के पदपद्मपराग का भ्रमर बनकर मुक्तिमार्ग का पथिक बन जाता है।

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एक बार श्रीशौनकजी ने महाज्ञानी सूतजी से निवेदन किया- हे सूतजी! सदाचार, भगवद्भक्ति और विवेक की वृद्धि कैसे होती है तथा साधु पुरुष किस प्रकार अपने काम, क्रोध, लोभ आदि मानसिक विकारों का निवारण करते हैं? आप हमें ऐसा कोई शाश्वत साधन बताइये, जो कल्याणकारी एवं परम मंगलकारी हो और वह साधन ऐसा हो, जिसके अनुष्ठान से शीघ्र ही अन्तःकरण की विशेष शुद्धि हो जाय तथा निर्मल चित्तवाले पुरुष को सदा के लिये शिवपद की प्राप्ति हो जाय।

सूतजी ने कहा – मुनिश्रेष्ठ शौनक! सम्पूर्ण शास्त्रों के सिद्धान्त से समन्वित, भक्ति आदि को बढ़ाने वाला तथा भगवान् शिव को सन्तुष्ट करने वाला उत्तम शिवपुराण कालरूपी सर्प से प्राप्त महात्रास का भी विनाश करने वाला है। हे मुने! पूर्वकाल में शिवजी ने इसे कहा था, गुरुदेव व्यासजी ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर कलियुग के प्राणियों के कल्याण के लिये बड़े आदर से संक्षेप में इस पुराण का प्रतिपादन किया। इसे भगवान् शिव का वाङ्मय स्वरूप समझना चाहिये तथा सब प्रकार से इसका सेवन करना चाहिये।

इसके पठन पाठन और श्रवण से शिवभक्ति पाकर मनुष्य शीघ्र ही शिवपद को प्राप्त कर लेता है। इस शिवपुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा बड़े-बड़े उत्कृष्ट भोगों का भोग करके अन्त में शिवलोक को प्राप्त कर लेता है।शिवपुराण का श्रवण और भगवान् शंकर के नाम का संकीर्तन – दोनों ही मनुष्यों को कल्पवृक्ष के समान सम्यक् फल देने वाले हैं, इसमें सन्देह नहीं है-

पुराणश्रवणं शम्भोर्नामसङ्कीर्तनं तथा।
कल्पद्रुमफलं सम्यङ् मनुष्याणां न संशयः॥

यह शिवपुराण चौबीस हजार श्लोकों से युक्त है, इसमें सात संहिताएँ हैं। मनुष्य को चाहिये कि वह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से भली-भाँति सम्पन्न हो बड़े आदर से इसका श्रवण करे। जिस घर में इस शिवपुराण की कथा होती है, वह घर तीर्थ रूप ही है, उसमें निवास करने वालों के पाप यह नष्ट कर देता है।

सूतजी शिवपुराण की महिमा का वर्णन करते हुए पुराने इतिहास का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पहला उदाहरण देवराज नाम के एक ब्राह्मण का है, जो वेश्यागामी एवं दुष्ट था तथा दूसरा उदाहरण चंचुला नाम की एक स्त्री एवं बिन्दुग नाम के उसके पति का है। ये दोनों ही दुरात्मा और महापापी थे, परंतु शिवपुराण की कथा के श्रवण के प्रभाव से इन सबका उद्धार हो जाता है और इन्हें शिवपद की प्राप्ति हो जाती है।

शिवपुराण के श्रवणकी विधि

शौनकजी के पूछने पर सूत जी शिवपुराण के श्रवण की विधि का वर्णन करते हुए कहते हैं-

शिवपुराण को सुनने के प्रायः सभी अधिकारी हैं, शिव – उपासक के अतिरिक्त गणेशभक्त, शाक्त, सूर्योपासक, वैष्णव और इसके साथ ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र – चारों वर्णों के स्त्री-पुरुष एवं ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यासी – ये सभी सकाम भाव अथवा निष्काम भाव से कथा श्रवण कर सकते हैं, किंतु जो लोग विष्णु और शिव में भेददृष्टि रखते हैं, शिवभक्ति से रहित हैं; पाखण्डी, हिंसक तथा दुष्ट हैं, नास्तिक हैं; परस्त्री, पराया धन तथा देवसम्पत्ति के हरण के लिये लुब्ध रहते हैं –

वे कथा – श्रवण के अधिकारी नहीं हैं। श्रोता को चाहिये कि वह ब्रह्मचर्य का पालन करे, पृथ्वी पर सोये, सत्य बोले, जितेन्द्रिय रहे तथा कथा की समाप्ति तक पत्तल पर भोजन करे तथा लोभ एवं हिंसा आदि से रहित हो और काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, ईर्ष्या, राग-द्वेष, पाखण्ड एवं अहंकार को भी छोड़ दे। श्रोता को सदा विनयशील, सरलचित्त, पवित्र, दयालु, कम बोलने वाला तथा उदार मनवाला होना चाहिये।

कथावाचक के लिये संयमी, शास्त्रज्ञ, शिव आराधना में तत्पर, दयालु, निर्लोभी, दक्ष, धैर्यशाली तथा वक्तृत्व – शक्ति से सम्पन्न होना उत्तम माना गया है। व्यास के आसन पर बैठा हुआ कथावाचक ब्राह्मण जब तक कथा समाप्त न हो जाय, तब तक किसी को प्रणाम न करे। इस तरह विधि-विधान का पालन करने पर श्रीसम्पन्न शिवपुराण सम्पूर्ण फल को देने वाला तथा भोग एवं मोक्ष का दाता होता है।

हे मुने! मैंने आपको शिवपुराण का यह माहात्म्य जो सम्पूर्ण अभीष्टों को देने वाला है, बता दिया। जो सदा भगवान् विश्वनाथ का ध्यान करते हैं, जिनकी वाणी शिव के गुणों की स्तुति करती है और जिनके दोनों कान उनकी कथा सुनते हैं, इस जीव जगत् में उन्हीं का जन्म लेना सफल है। वे निश्चय ही संसार सागर से पार हो जाते हैं।

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