
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
॥ श्री कमलापति नम: ॥
॥ श्री जानकीवल्लभो विजयते ॥
॥ श्री गुरूदेवाय नमः ॥

।मुख पृष्ठ।।नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-



नवग्रह पीड़ाहर स्तोत्र
ग्रहों के द्वारा उत्पन्न पीड़ा का निवारण करने के लिए ब्रह्माण्डपुराणोक्त इस स्तोत्र का पाठ लाभदायक है। इसमें सूर्यादि नौ ग्रहों से क्रमश: एक-एक श्लोक के द्वारा पीड़ा दूर करने की प्रार्थना की गई है-
ग्रहाणामादिरात्यो लोकरक्षणकारक:। विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे रवि: ।।1।।
रोहिणीश: सुधामूर्ति: सुधागात्र: सुधाशन:। विषमस्थानसम्भूतां पीडां हरतु मे विधु: ।।2।।
भूमिपुत्रो महातेजा जगतां भयकृत् सदा। वृष्टिकृद् वृष्टिहर्ता च पीडां हरतु में कुज: ।।3।।
उत्पातरूपो जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:। सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुध: ।।4।।
देवमन्त्री विशालाक्ष: सदा लोकहिते रत:। अनेकशिष्यसम्पूर्ण: पीडां हरतु मे गुरु: ।।5।।
दैत्यमन्त्री गुरुस्तेषां प्राणदश्च महामति:। प्रभु: ताराग्रहाणां च पीडां हरतु मे भृगु: ।।6।।
सूर्यपुत्रो दीर्घदेहा विशालाक्ष: शिवप्रिय:। मन्दचार: प्रसन्नात्मा पीडां हरतु मे शनि: ।।7।।
अनेकरूपवर्णेश्च शतशोऽथ सहस्त्रदृक्। उत्पातरूपो जगतां पीडां हरतु मे तम: ।।8।।
महाशिरा महावक्त्रो दीर्घदंष्ट्रो महाबल:। अतनुश्चोर्ध्वकेशश्च पीडां हरतु मे शिखी: ।।9।।
ग्रहों में प्रथम परिगणित, अदिति के पुत्र तथा विश्व की रक्षा करने वाले भगवान सूर्य विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा का हरण करें ।।1।।
दक्षकन्या नक्षत्र रूपा देवी रोहिणी के स्वामी, अमृतमय स्वरूप वाले, अमतरूपी शरीर वाले तथा अमृत का पान कराने वाले चंद्रदेव विषम स्थानजनित मेरी पीड़ा को दूर करें ।।2।।
भूमि के पुत्र, महान् तेजस्वी, जगत् को भय प्रदान करने वाले, वृष्टि करने वाले तथा वृष्टि का हरण करने वाले मंगल (ग्रहजन्य) मेरी पीड़ा का हरण करें ।।3।।
जगत् में उत्पात करने वाले, महान द्युति से संपन्न, सूर्य का प्रिय करने वाले, विद्वान तथा चन्द्रमा के पुत्र बुध मेरी पीड़ा का निवारण करें ।।4।।
सर्वदा लोक कल्याण में निरत रहने वाले, देवताओं के मंत्री, विशाल नेत्रों वाले तथा अनेक शिष्यों से युक्त बृहस्पति मेरी पीड़ा को दूर करें ।।5।।
दैत्यों के मंत्री और गुरु तथा उन्हें जीवनदान देने वाले, तारा ग्रहों के स्वामी, महान् बुद्धिसंपन्न शुक्र मेरी पीड़ा को दूर करें ।।6।।
सूर्य के पुत्र, दीर्घ देह वाले, विशाल नेत्रों वाले, मंद गति से चलने वाले, भगवान् शिव के प्रिय तथा प्रसन्नात्मा शनि मेरी पीड़ा को दूर करें ।।7।।
विविध रूप तथा वर्ण वाले, सैकड़ों तथा हजारों आंखों वाले, जगत के लिए उत्पातस्वरूप, तमोमय राहु मेरी पीड़ा का हरण करें ।।8।।
महान् शिरा (नाड़ी)- से संपन्न, विशाल मुख वाले, बड़े दांतों वाले, महान् बली, बिना शरीर वाले तथा ऊपर की ओर केश वाले शिखास्वरूप केतु मेरी पीड़ा का हरण करें।।9।।


आगे पढ़ें 9 ग्रहों के सरल मंत्र
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यूं तो नवग्रहों की उपासना के लिए कई मंत्र है। यहां आपके लिए प्रस्तुत है नवग्रहों के बेहद सरल और तुरंत असरकारी अचूक मंत्र। इन मंत्रों का जाप पूरे दिन करने से जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है। आने वाली हर विपदा दूर होती है।
एक सरल और आनंददायक जीवन के लिए इन मंत्रों का प्रति दिन रूद्राक्ष की माला द्वारा 108 बार जाप अवश्य करें।
सूर्य:- ‘ॐ ह्रीं ह्रों सूर्याय नम:।’
चन्द्रमा:- ‘ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।’
मंगल:- ‘ॐ हूं श्री मंगलाय नम:।’
बुध:- ‘ॐ ऐं श्रीं श्रीं बुधाय नम:।’
बृहस्पति:- ‘ॐ ह्रीं क्लीं हूं बृहस्पतये नम:।’
शुक्र:- ‘ॐ ह्री श्रीं शुक्राय नम:।’
शनि:- ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नम:।’
राहु:- ‘ॐ ऐं ह्रीं राहवे नम:।’
केतु:- ‘ॐ ह्रीं ऐं केतवे नम:।’

शास्त्रो के अनुसार हर इंसान को सूर्योदय से पहले ही उठ जाना चाहिए। देर तक सोने वाले इंसान का भाग्य साथ नही देता और उसकी बुद्धि भी खराब हो जाती है।
हर स्त्री और पुरुष को रोज सुबह जागते ही इस मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए।
मंत्र:-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः कुर्वन्तु सर्वे ममसुप्रभातम्॥
इस मंत्र के जाप से देवताओं की कृपा होती है और नो ग्रहों के दोष भी शांत होते है। इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ होता है कि , विष्णु, शिव, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी मिलकर मेरी इस सुबह को और अधिक मंगलकारी बनाए। यह शुभ काम बिना नहाए भी किया जा सकता है।
प्रातः कृत्य- सूर्योदय से प्रायः दो घण्टे पूर्व ब्रह्म – मुहूर्त्त होता है । इस समय सोना (निद्रालीन होना) सर्वथा निषिद्ध है । इस कारण ब्रह्म – मुहूर्त्त में उठकर निम्न मंत्र को बोलते हुए अपने हाथों (हथेलियों) को देखना चाहिए।
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर-दर्शनम्॥
हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा स्थित हैं (ऐसा शास्त्रों में कहा गया है)। इसलिए प्रातः उठते ही हाथों का दर्शन करना चाहिए। उसके पश्चात् नीचे लिखी प्रार्थना को बोलकर भूमि पर पैर रखें।
समुद्रवसने देवी ! पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि ! नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे॥
हे विष्णु पत्नी ! हे समुद्ररुपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वतरुप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवी ! तुम्हें नमस्कार है , तुम मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो। इस कृत्य के पश्चात् मुख को धोएं, कुल्ला करें और फिर प्रातः स्मरण तथा भजन आदि करके श्री गणेश, लक्ष्मी, सूर्य, तुलसी, गाय, गुरु, माता, पिता , इष्टदेव एवं (घर के) वृद्धों को सादर प्रणाम करें।

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