बाबा केदारनाथ कथा | What Is The Full Story Of Baba Kedarnath

नाथों के नाथ बाबा केदारनाथ

बाबा केदारनाथ

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बाबा केदारनाथ

बाबा केदारनाथ कथा

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

केदारनाथ का वर्णन

स्कंद पुराण मे बाबा केदारनाथ का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो मे यह पांचवा ज्योतिर्लिंग कहलाता है। प्रतिवर्ष यह केवल 6 माह के लिए ही खुलता है। आइए विस्तार पूर्वक जानते है।

स्कंद पुराण’ में भगवान शिवजी माता पार्वती से कहते हैं, ‘हे प्राणेश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। तथा यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है।’ केदारखंड में उल्लेख है,

‘अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:।,
यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्॥’

अर्थात् बिना केदारनाथ भगवान के दर्शन किए यदि कोई बदरीनाथ क्षेत्र की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है।

केदार नामक चोटी का वर्णन

नाथों के नाथ बाबा केदारनाथ का यह ज्योतिर्लिंग पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है। पुराणों एवं शास्त्रों में श्री केदारेश्वर- ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन अनेको बार किया गया है। यहाँ की प्राकृतिक शोभा देखते ही बनती है। इस चोटी के पश्चिम भाग में पुण्यमती मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित केदारेश्वर महादेव का मंदिर अपने स्वरूप से ही हमें धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ने का संदेश देता है। 

केदार चोटी के पूर्व में अलकनंदा के सुरम्य तट पर बद्रीनाथ का परम प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। अलकनंदा और मंदाकिनी- ये दोनों ही नदियाँ नीचे रुद्रप्रयाग में आकर मिल जाती हैं। तथा दोनों नदियों की यह संयुक्त धारा भी और नीचे देवप्रयाग में आकर भागीरथी गंगा से मिल जाती हैं। इस प्रकार परम पावन गंगाजी में स्नान करने वालों को भी श्री केदारेश्वर और बद्रीनाथ के चरणों को धोने वाले जल का स्पर्श सुलभ हो जाता है।

श्रीनर और नारायण की तपस्या का वर्णन

इस अत्यंत पवित्र और पुण्यफलदायी ज्योतिर्लिंग की स्थापना के विषय में पुराणों में एक कथा वर्णित है- अनंत रत्नों के जनक, अतिशय पवित्र, तपस्वियों, ऋषियों, सिद्धों, देवताओं की निवास-भूमि पर्वतराज हिमालय के केदार नामक अत्यंत शोभाशाली श्रृंग पर महातपस्वी श्रीनर और नारायण ने बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी।

कई हजार वर्षों तक वे निराहार रहकर तथा एक पैर पर खड़े होकर शिव नाम का जप करते ही रहे। इस तपस्या से सारे लोकों में उनकी ही चर्चा होने लगी। देवता, ऋषि-मुनि, यक्ष, गन्धर्व सभी उनकी साधना और संयम की अत्यंत प्रशंसा करने लगे। चराचर के पितामह ब्रह्माजी और सबका पालन-पोषण करने वाले भगवान विष्णु भी महापस्वी नर-नारायण के तप की बहुत-बहुत प्रशंसा करने लगे, अंत में भगवान शिवजी भी उनकी इस कठिन साधना से अत्यंत ही प्रसन्न हो उठे। फिर उन्होंने प्रत्यक्ष प्रकट होकर उन दोनों ऋषियों को दर्शन दिए।

ज्योतिर्लिंग की स्थापना का वर्णन

तब श्रीनर और नारायण ने भगवान शिवजी के दर्शन से भाव-विह्वल और आनंद-विभोर होकर बहुत प्रकार की पवित्र स्तुतियों और मंत्रो से उनकी पूजा-अर्चना की। भगवान शिवजी ने अत्यंत प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। भगवान शिव की यह बात सुनकर दोनों ऋषियों ने उनसे कहा, ‘देवाधिदेव महादेव! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो भक्तों के कल्याण हेतु आप सदा-सर्वदा के लिए अपने स्वरूप को यहाँ स्थापित करने की कृपा करें। 

आपके यहाँ निवास करने से यह स्थान सभी प्रकार से अत्यंत ही पवित्र हो उठेगा। तथा यहाँ आपका दर्शन-पूजन करने वाले मनष्यों को आपकी अविनाशिनी भक्ति प्राप्त हुआ करेगी। प्रभु! आप मनुष्यों के कल्याण और उनके उद्धार के लिए अपने स्वरूप को यहाँ स्थापित करने की हमारी प्रार्थना कृपया अवश्य ही स्वीकार करें।’

उनकी यह प्रार्थना सुनकर भगवान शिवजी ने ज्योतिर्लिंग के रूप में वहाँ वास करना स्वीकार किया। केदार नामक हिमालय-श्रृंग पर स्थित होने के कारण इस ज्योतिर्लिंग को श्री केदारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है।

भगवान शिवजी से वरदान मांगते हुए श्रीनर और नारायण ने इस ज्योतिर्लिंग और इस पवित्र स्थान के विषय में जो कुछ कहा है, वह अक्षरशः सत्य है। इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन तथा यहाँ पर स्नान करने से भक्तों को लौकिक और परलौकिक फलों की प्राप्ति होने के साथ-साथ अचल शिवभक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है।

पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए थे भगवान शिव

केदारनाथ की एक कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन शिवजी उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जा बसे। पांडव उनका पीछा करते-करते केदार तक पहुंच गए। भगवान शिव ने तब तक भैंसे का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले।

तब भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। फिर अन्य सब गाय-बैल और भैंसे तो निकल गए, पर शिवजी रूपी भैंसा पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुआ। भीम बलपूर्वक इस भैंसे पर झपटे, लेकिन भैंसा भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंसे की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिवजी पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शिव भैंसे की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला

यह उत्तराखंड का सबसे विशाल और पवित्र शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। यह मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है और जिसे 80 वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। इस मंदिर की छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद ही मजबूत पत्थरों से बनाई गई है।

छह माह तक जलता रहता है दीपक

पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। फिर 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब कही जाकर केदारनाथ की यात्रा आरंभ होती है। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय होता है कि वहॉं वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसा छोड़कर गए थे।

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बाबा केदारनाथ FAQ?

केदारनाथ मंदिर का रहस्य क्या है?

केदारनाथ की एक कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन शिवजी उन लोगों से रुष्ट थे। इसलिए एक भैंसे का रूप धारण कर लिया। भीम बलपूर्वक इस भैंसे पर झपटे, लेकिन भैंसा भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंसे की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। विस्तार पूर्वक पढ़े..

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श्रीनर और नारायण कौन थे?

देवताओं की निवास-भूमि पर्वतराज हिमालय के केदार नामक अत्यंत शोभाशाली श्रृंग पर महातपस्वी श्रीनर और नारायण ने बहुत वर्षों तक भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बड़ी कठिन तपस्या की थी। विस्तार पूर्वक पढ़े..

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क्या है केदारनाथ मंदिर की वास्तुकला?

यह मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है और जिसे 80 वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है। इस मंदिर की छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। केदारनाथ मंदिर 85 फुट ऊंचा, 187 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा है। इसकी दीवारें 12 फुट मोटी हैं और बेहद ही मजबूत पत्थरों से बनाई गई है। विस्तार पूर्वक पढ़े..

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पांचवा ज्योतिर्लिंग कौन सा है?

स्कंद पुराण मे बाबा केदारनाथ का विस्तार पूर्वक वर्णन मिलता है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो मे यह पांचवा ज्योतिर्लिंग कहलाता है। प्रतिवर्ष यह केवल 6 माह के लिए ही खुलता है। आइए विस्तार पूर्वक जानते है।

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