नल नील कथा


नल नील कथा
हम भारतीय अक्सर हमारे ग्रंथ और उनमे घटी घटनाओ को केवल धार्मिक महत्ता ही देते हैं, शायद ही हम उन घटनाओ के कारण , परिणाम और प्रभावों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं।
रामायण मे सेतु का निर्माण कोई सामान्य कार्य नहीं था, तत्कालीन समय मे इस सेतु का निर्माण एक अकल्पनीय बात थी। आज के विदेशी वैज्ञानिक भी राम सेतु पर गहन शोध कर रहे हैं उनका कहना हैं की राम सेतु की इंजीनीर्यिंग (वास्तुकला) देखकर लगता हैं की हजारो वर्ष पूर्व भी भारत और वहाँ के कारीगर कितना समृद्ध और योग्य थे।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
इस सेतु का निर्माण श्री राम की आज्ञा से नल और नील अभियंताओ के निर्देशन मे किया गया था। रामायण से हम सभी परिचित हैं पर हमारा ध्यान नल और नील पर बहुत ही कम गया हैं।
श्राप शुभ साबित हुआ
नल विश्वकर्मा के पुत्र थे और उनके भाई नील वानर प्रजाति से संबन्धित थे। नल और नील बचपन मे बहुत ही शरारती और चंचल थे, वे अक्सर अपनी चंचल आदत के कारण ऋषियों की वस्तुए उठाकर नदी मे फेक देते थे।
अतः एक दिन क्रोधित होकर ऋषियों ने नल और नील को श्राप दे दिया की “तुम्हारे द्वारा फेंकी गई वस्तुए जल मे कभी नहीं डूबेंगी”। बाद मे यह दोनों सुग्रीव की सेना मे वास्तुकार बन गए थे।
सेतु निर्माण
प्रभु श्री राम माता सीता को वापस लाने के लिए लंका ओर चढ़ाई की योजना बना चुके थे। वानरो की सेना प्रभु श्री राम का सहयोग कर रही थी और नल नील भी उस सेना मे शामिल थे। पर लंका से पहले विशाल समुद्र उनका रास्ता रोक रहा था।
श्री राम की सेना लंका जाने को आतुर थी पर बीच मे समुद्र आ जाने से सब असमंजस की स्थिति मे पड़ गए थे। तब समुद्र देव ने प्रकट होकर श्री राम से सेतु बनाने का निवेदन किया और नल नील के श्राप के बारे मे श्री राम को बताकर उनकी समस्या का निवारण किया।
श्री राम का आदेश पाते ही नल और नील सेतु के निर्माण कार्य मे जुट गए , सर्वप्रथम नल नील ने रामेश्वरम मे ऐसा स्थान खोज निकाला जहां से लंका जल्दी पहुँचा जा सकता था। श्री राम ने उस स्थान पर धनुष मारा था जिसे आज हम धनुषकोटी कहते हैं।
नल नील के निर्देशन मे सभी वानर सेतु के निर्माण मे लग गए थे। सेतु की सरंचना का निर्णय भी नल और नील द्वारा लिया गया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस सेतु की लंबाई 100 योजन और चौड़ाई 5 योजन थी। इसे इतना मजबूत बनाया गया था की विशाल सेना इस पर चलकर उस ओर लंका पहुँच सके।
हम सभी जानते हैं श्री राम अपनी सेना के साथ इसी सेतु से लंका पहुंचे और अहंकारी रावण का वध किया।
प्रमाणित तथ्य
• वैज्ञानिको का मानना हैं की 15 वी शताब्दी तक यह सेतु पानी के बाहर था और इस पर चलकर वर्तमान श्री लंका तक पहुंचा जा सकता था। पर तेज समुद्री तूफान के कारण यह समय के साथ खंडित हो गया।
• धनुष मारने का उल्लेख वाल्मीकि रामायण मे भी आया हैं अगर आप मेप मे देखेंगे तो पाएंगे की धनुषकोटी एक ऐसा अंतिम छोर हैं जहां से लंका के द्वीपो की शृंखला एकदम समीप हैं। सेटेलाइट तस्वीरों से यह भी प्रमाणित हो चुका हैं की धनुषकोटी से लंका तक एक सेतु अवश्य हैं जो अब पानी से ढँक चुका हैं।
• वाल्मीकि रामायण के बाद महाभारत , महाकवि कालिदास के “रघुवंश”, स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण , और ब्रह्म पुराण मे भी राम सेतु का उल्लेख आया हैं।
• रामायण मे उल्लेख हैं की सेतु निर्माण के समय पत्थर नहीं डूबे थे और आज भी रामेश्वरम के आसपास ऐसे पत्थर हैं जो पानी पर तैरते हैं।
• वाल्मीक रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत के माध्यम में हो रहा था।- (वाल्मीक रामायण- 6/22/62)।
• अमेरिका के साइंस टीवी ने भी यह कहा हैं की यह मानव निर्मित कोई प्राचीन सेतु हैं।
अब इतने सारे प्रमाण केवल संयोग नहीं हो सकते हैं। पर समय समय पर भारतीय संस्कृति के शत्रु इसके अस्तित्व पर संदेह उठाते रहे हैं और हमेशा गलत साबित हुए हैं।
नल और नील जानते थे की उनको मिले श्राप के कारण यह पत्थर तैर रहे हैं पर उन्होने सेतु निर्माण मे काम आए सभी पत्थरो पर “राम” लिखवाया और तैरते पत्थरो को प्रभु श्री राम की महिमा बताया। पर विशाल हृदय के धनी प्रभु श्री राम ने उदारता पूर्वक इस सेतु का नाम “नल सेतु ” रखा पर वर्तमान मे सब इसे राम सेतु के नाम से पुकारते हैं।
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