भगवान शिव जन्म कथा | What Is The Shiv Janm katha

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शिव का जन्म

भगवान शिव जन्म कथा

भगवान शिव को त्रिदेव यानी तीनों लोकों का स्वामी कहा जाता है और यह मान्यता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करना सबसे सरल है। यदि एकबार वह प्रसन्न हो जाएँ तो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को ही समर्पित है और सुबह स्नान आदि के बाद ही इनकी अराधना की जाती है। वेदों के अनुसार भगवान शिव समेत सभी ईश्वर निराकार, अप्रकटा, अजन्मा और निर्विकार हैं।

शिव जी के जन्म के पीछे की कहानी की बात करें तो था कुछ इस प्रकार है। जब संपूर्ण ब्रह्मांड- धरती, आकाश और पाताल जलमग्न था, उस समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा कोई भी अस्तित्व में नहीं था। उस दौरान केवल भगवान विष्णु ही थे जो जल में शेषनाग पर विश्राम करते हुए नजर आ रहे थे। तभी ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से प्रकट हुए और फिर भगवान शिव की उत्पत्ति माथे के तेज से हुई।

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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-

ब्रह्मा जी ने जब शिव जी को देखा तो उन्होंने शिव जी को पहचानने से साफ इनकार कर दिया। ब्रह्मा के इस इनकार से भगवान विष्णु को यह भय सताने लगा कि कहीं शिव जी रूठ न जाएं। जिस कारण उन्होंने ब्रह्मा जी को दिव्यदृष्टि प्रदान की जिससे उन्हें शिव जी के बिषय में स्मरण हो गया।

सब कुछ स्मरण होते ही ब्रह्मा जी को अपनी गलती का आभास हुआ और तब उन्होंने शिव जी से माफी मांगी। साथ ही ब्रह्मा जी ने शिव जी से अपने पुत्र के रूप में भी जन्म लेने का आशीर्वाद भी मांगा। भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को माफ करते हुए उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया।

विष्णु पुराण की कथा

विस्तार पूर्वक विष्णु पुराण की कथाएँ कहती हैं कि भगवान शिव का जन्म भगवान विष्णु के माथे से उत्पन्न हुए तेज से हुआ है। माथे के तेज से ही जन्में होने के कारण भगवान शंकर सदैव योग मुद्रा में रहते हैं। इतना ही नहीं विष्णु पुराण में वर्णित भगवान शिव के जन्म की कहानी उनके बालपन का एकमात्र वर्णन है क्योंकि और कहीं भी उनके जन्म से जुड़े साक्ष्य नहीं पाए जाते हैं।

विष्णु पुराण में वर्णित भगवान शिव के जन्म की कथा कुछ इस प्रकार है कि जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना करना आरंभ किया तब उन्हें एक बच्चे की आवश्यकता पड़ी। इसी समय उन्हें भगवान शिव से मिला आशीर्वाद याद आया। आशीर्वाद को पाने के लिए उन्होंने तपस्या की और फिर एक बालक उनकी गोद में प्रकट हो गया। जब ब्रह्मा जी ने इस रोते हुए बालक को देखा तो उन्होंने यह सवाल किया कि तुम रो क्यों रहे हो?

इसपर वह बालक बोला कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए वह रो रहा है। उस नन्हें मासूम बालक की बात को सुन कर ब्रह्मा ने उसे नाम दिया ‘रूद्र’। इस नाम का अर्थ था रोने वाला। परंतु बालक रूप में बैठे भगवान शिव तब भी चुप न हुए। इस तरह बालक शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा जी ने आठ नाम दिए थे। वे आठ नाम इस प्रकार हैं- रूद्र, भाव, उग्र, भीम, शर्व, पशुपति, महादेव और ईशान। यही कारण है कि भगवान शिव इन सभी नामों से भी जाने जाते हैं।

भगवान शिव के पिता कौन है..?

विष्णु पुराण की मानें तो शिव जी के पिता स्वयं ब्रह्मा जी थे जिन्होंने शिव जी से अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद माँगा था। फिर समय आने पर सृष्टि के निर्माण के समय शिव जी ने ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया था।

शंकर भगवान के गुरु कौन थे..?

भगवान शिव स्वयं इस संसार के गुरु माने जाते हैं। जिन्होंने स्वयं ही इस संसार में गुरु शिष्य की परंपरा का शुभारंभ किया था। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ कहते हैं कि ब्रह्मा जी और भगवान शिव जी ही इस संसार के सबसे पहले गुरु हैं। जहाँ ब्रह्मदेव ने अपने मानस पुत्रों को शिक्षा प्रदान की थी तो वहीं भगवान शिव ने अपने सात शिष्यों को शिक्षा प्रदान की थी। इन्हीं सात शिष्यों को सप्तऋषियों का दर्जा दिया गया है।

शिवपुराण की कथा

शिव पुराण में जन्म से जुड़ा भगवान शिव का रहस्य कहता है कि भगवान शिव का आदि और अंत से कोई संबंध नहीं है। वे काल और मृत्यु के चक्र से बिल्कुल परे हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू हैं अर्थात जिनका जन्म स्वयं हुआ है। जिस प्रकार शिव स्वयंभू हैं उसी प्रकार नर्मदा नदी से निर्मित होने वाले शिवलिंग को भी स्वयंभू माना जाना जाता है।

इसके पीछे का कारण यह है कि उन शिवलिंग को कहीं से भी निर्मित नहीं किया गया है वे खुद ही नर्मदा नदी से निर्मित होकर स्वयं ही निकले हैं। स्वयंभू होने के कारण शिवलिंग अपने साथ कई विषेशताओं को लिए हुए है। जिस घर में भी इस स्वयंभू शिवलिंग को पूजा जाता है वहां भगवान शिव का आशीर्वाद सदैव बना रहता है सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं।

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