काल कौन था और कैसे हुई थी कलयुग की रचना ? The Story Of Kaal

मुख पृष्ठ पोस्ट काल और कलयुग की रचना

काल और कलयुग की रचना
आप इस लेख में पढ़ेंगे:
दोस्तों कहते हैं ना कि प्रकृति (सृष्टि) जब और जो भी चाहती हैं, वह करवा कर ही रहती है। इसी कड़ी में एक बार यूं हुआ कि जब सभी देवताओं की सभा चल रही था तो उस वक्त काल अर्थात कलयुग बीच सभा में नाराज होकर और सभा को बीच मे ही छोड़ कर चला जाते हैं। उसकी इस नाराजगी से सभी देवता डर जाते हैं और फिर काल को मनाने का उपाय जानने के लिए सभी देवता भगवान विष्णु के पास जाते है, फिर विष्णु भगवान काल को अपने पास बुलाने के लिए नारद मुनि को भेजते हैं।
अत्यधिक पढ़ा गया लेख: 8M+ Viewers
सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
नारद मुनि काल के पास जाते हैं और उससे कहते हैं कि आपको साक्षात भगवान विष्णु ने अपने पास बुलाया है। परन्तु काल के नाराजगी की सीमा अथाह होने के कारण वह नारद मुनि को खाली हाथ लौटा देता है जिससे भगवान विष्णु काफी क्रोधित हो जाते हैं और स्वयं ही काल के पास चले जाते हैं। भगवान विष्णु को साक्षात अपने समक्ष देखकर भी काल का गुस्सा शान्त नही होता है और भगवान के साथ भी अभद्रता का व्यवहार करता है।
भगवान विष्णु का काल को श्राप देना
अन्ततः भगवान विष्णु काल से अत्यधिक नाराज हो जाते हैं। जिससे काल डर जाता है और भगवान से अपनी अभद्रता की क्षमा याचना करने लगता है। परन्तु भगवान उसकी किसी भी बात को सुनना पसन्द नहीं करते हैं और उसे इस अभद्रता का दण्ड भोगने और भविष्य मे शक्तिहीन होने का श्राप देकर वापिस अपने विष्णु लोक चले जाते हैं।
काल की और युगों की रचना
हुआ यूं था कि जब सृष्टि की रचना हुई थी और पृथ्वी का अस्तित्व सामने आया था। तब ब्रह्मा द्वारा गलती से एक अत्यंत ही शक्तिशाली काल की रचना भी हुई थी। परन्तु उस वक्त देवता और प्रकृति इन दोनों का ही अस्तित्व था। फिर युग की रचना हुई और उस समय सतयुग, द्वापरयुग और त्रेतायुग बस इन्ही तीन युगों की ही रचना ब्रह्मा द्वारा हुई थी तब किसी अन्य युग (कलयुग) का कोई नामोनिशान ही नहीं था। तथा दिवस एवं मास भी देवताओ को ही दे दिए गए थे।
जन्म देने का अधिकार ब्रह्मा, पालनहार भगवान विष्णु और संहार का रुद्र (शंकर) के पास था। और त्रिदेव सृष्टि के अनुसार ही यह तीन कार्य करते थे। काल की रचना तो हो गई थी परन्तु उसका कोई अस्तित्व या अधिकार नही था। वह बस इधर से उधर भटकता ही रहता था। जिससे वह अत्यंत ही दुःखी रहता था।
काल का नाराज होना
अंततः एक दिन वह, इंद्र के पास जाता है और सभी देवताओं को एकत्रित करने का अनुरोध करता है। फिर इंद्रदेव सभी देवताओं को एकत्रित करते हैं और एक सभा का आयोजन करते हैं। उस सभा का उद्देश्य काल को समान अधिकार दिलाना था परन्तु कोई भी देवता काल को कुछ भी अधिकार देने को तैयार नही था अंततः काल नाराज होकर और सभा को बीच मे ही छोड़ कर चला जाते हैं।
काल की तपस्या
विष्णु भगवान का काल को श्राप देने के बाद काल अत्यन्त दुःखी रहने लगा और अपने अस्तित्व और अधिकार के लिए जन्म दाता ब्रह्मा की घोर तपस्या करने लगा। युग समाप्त होते चले गये, सतयुग से द्वापर, द्वापर से त्रेतायुग भी समाप्त होने को था कि अंततः ब्रह्मा काल की तपस्या से प्रसन्न होकर साक्षात उसके समक्ष प्रकट होते हैं और उससे वरदान स्वरूप कुछ मांगने को कहते हैं।
तब काल ब्रह्मा से कहता हैं कि हे सृष्टि के रचयिता यदि आप मेरी तपस्या से परेशान है तो मुझे मेरा अस्तित्व बचाने और मेरा अधिकार के लिए मुझे भी देवताओ कि तरह ही अमरता का और युगपुरुष बनने का वरदान प्रदान करें, तब ब्रह्मा ने काल अस्तित्व बचाने और अधिकार के लिए उसे नये युग की रचना करने का वरदान दिया और साथ ही विष्णु भगवान द्वारा दिए गये श्राप को भी स्मरण कराया। जिसके अनुसार काल के युग की तीन चरणों मे रचना हुई।
कलयुग के तीन चरण
प्रथम चरण मे काल युग (कलयुग) त्रेतायुग की समाप्ति के साथ ही जवान होगा है।
द्वितीय चरण मे काल युग (कलयुग) अत्यन्त ही शक्तिशाली और आक्रामक होगा है। जिसमे देवता भी शक्तिहीन हो जाऐगें और अधर्म की शुरूआत होने लगेगी।
तृतीय और अंतिम चरण मे अधर्म की अधिकता के साथ ही पाप भी बढ़ने लगेगा जिससे भगवान विष्णु को काल को दिए श्राप के कारण फिर से अवतार लेना पड़ेगा। यह ही भगवान विष्णु का अंतिम कल्कि अवतार होगा।
तब यह थी काल और कलयुग की रचना की कथा। शायद आपको यह काल्पनिक कथा पसंद आई होगी।
- आज की पहली पसंद:
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- उत्तरकाण्ड- 101-130
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 101-125
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- बालकाण्ड- 201-225
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 251-275
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 301-326
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- बालकाण्ड- 226-250
- श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित- अयोध्याकाण्ड- 126-150

