कल्कि अवतार कथा

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कल्कि अवतार कथा
कल्कि को विष्णु का भावी अवतार माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कलियुग में पाप की सीमा पार होने पर विश्व में दुष्टों के संहार के लिये कल्कि अवतार प्रकट होगा। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अभी तो कलियुग का प्रथम चरण है।
कलियुग के पांच सहस्त्र से कुछ ही अधिक वर्ष बीते हैं। इतने दिनों में मानव जाति का कितना मानसिक हृास एवं नैतिक पतन हो गया है, यह सर्वविदित हैं। यह स्थिति उत्तरोत्तर बढ़ती ही जायगी, ऐसा विद्वानों का अनुमान है। ज्यों-ज्यों कलियुग आता जायगा, त्यों-त्यों धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और स्मरण शक्ति-सबका उत्तरोत्तर लोप होता जायगा।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
सम्भल ग्राम मुख्यस्य ब्राह्मणस्यमहात्मनः भवनेविष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति
कल्कि पुराण में “कल्कि” अवतार के जन्म व परिवार की कथा इस प्रकार कल्पित है-
“सम्भल नामक ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण निवास करेंगे, जो सुमति नामक स्त्री के साथ विवाह करेंगें दोनों ही धर्म-कर्म में दिन बिताएँगे। कल्कि उनके घर में पुत्र होकर जन्म लेंगे और अल्पायु में ही वेदादि शास्त्रों का पाठ करके महापण्डित हो जाएँगे। बाद में वे जीवों के दुःख से कातर हो महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे जिनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा।“
कल्कि अवतार के गुरू
कल्कि पुराण के अनुसार ”भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरू होगें और उन्हें युद्ध की शिक्षा देगें। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके दिव्य शस्त्र प्राप्त करने के लिए कहेंगे।“ अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में छठवें अवतार – परशुराम अवतार तक अनेक असुरी राजाओं द्वारा राज्यों की स्थापना हो चुकी थी परिणामस्वरूप ऐसे परिस्थिति में एक पुरूष की आत्मा अदृश्य प्राकृतिक चेतना द्वारा निर्मित परिस्थितियों में प्राथमिकता से वर्तमान में कार्य करना, में स्थापित हो गयी और उसने कई राजाओं का वध कर डाला और असुरों तथा देवों के सह-अस्तित्व से एक नई व्यवस्था की स्थापना की।
जो एक नई और अच्छी व्यवस्था थी। इसलिए उस पुरूष को कालान्तर में उनके नाम पर परशुराम अवतार से जाना गया तथा व्यवस्था ”परशुराम परम्परा“ के नाम से जाना गया जो साकार आधारित ”लोकतन्त्र का जन्म“ था, इसी साकार आधारित लोकतन्त्र व्यवस्था को श्रीराम द्वारा प्रसार हुआ था और इसी के असफल हो जाने पर द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के द्वारा समाप्त कर निराकार लोकतन्त्र व्यवस्था की नींव डाली थी जा भगवान बुध द्वारा मजबूती पायी और वर्तमान में निराकार संविधान आधारित लोकतन्त्र सामने है। इसी व्यवस्था की पूर्णता के लिए कल्कि अवतार होंगे। जो मात्र शिव तन्त्र की समझ से ही हो सकता है अर्थात यही शिव का अस्त्र है तथा लोकतन्त्र को समझने के कारण परशुराम कल्कि के गुरू होगें।
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कलियुग के लक्षण क्या क्या होंगे
व्यावहारिक ज्ञान, सत्य और ईमानदारी समाप्त हो जाएंगे; छल-कपट-पटु व्यक्ति ही व्यवहार कुशल समझा जायगा। अर्थहीन (निर्धन) व्यक्ति ही असाधु या असभ्य माने जायेंगे। धर्म, तीर्थ, माता-पिता और गुरूजन उपेक्षित और तिरस्कृत होंगे। मनुष्य-जीवन का सर्वश्रेष्ठ पुरूषार्थ होगा-उदर-भरण। धर्म का सेवन यश के लिये किया जायेगा।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों में जो शक्ति सम्पन्न होगा, वही शासन करेगा। उस समय के नीच राजा अत्यन्त दुष्ट एवं निष्ठुर प्रकृति के होंगे। लोभी तो वे इतने होंगे कि उनमें और लुटेरों में कोई अंतर नहीं रह जायगा। उनसे भयभीत होकर प्रजा वनों और पर्वतों में छिप कर तरह-तरह के शाक, कंद-मूल, मांस, फल-फूल और बीज-गुठली आदि से अपनी क्षुधा मिटायेगी।
समय पर वृष्टि नहीं होगी, वृक्ष फल नहीं देंगे। भयानक सूखा, भयानक सर्दी और भयानक गर्मी पड़ेगी। तब भी शासक कर-पर-कर लगाते जायेंगे। प्राणि मात्र धर्म की मर्यादा त्याग कर स्वच्छन्द मार्ग का अनुसरण करेंगे। मनुष्यों की परमायु बीस वर्ष की हो जायेगी। कलि के प्रभाव से प्राणियों के शरीर छोटे-छोटे, क्षीण और रोगग्रस्त होने लगेंगे।
वेद मार्ग प्रायः मिट जायगा। राजा-महाराजा डाकू-लुटेरों के समान हो जायेंगे। वानप्रस्थी, सन्यासी आदि विरक्त-जीवन व्यतीत करने वालेे गृृहस्थोें की भांति जीवन व्यतीत करनेे लगेंगे। मनुष्योें का स्वभाव गधोें-जैसा दुुस्सह, केवल गृृहस्थी का भार ढोनेे वाला हो जायगा। लोेग विषयोें में अनुरक्त होेे जायंगे। धर्म-कर्म का भान लेश मात्र भी नहीं रहेगा। लोेग एक-दूसरेे को लूटेंगेेे औैर मारेेंगे। सामान्यतः मनुुष्य जप रहित, नास्तिक औैर चोर होंगे।
कलियुग का प्रभाव
कलियुग का प्रभाव ऐसा होगा कि पुुत्र पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे। अपनी प्रशंसा केे लिये लोग बड़ी-बड़ी बातेें बनायंगेे, किंतुु समाज मेेें उनकी निंदा नहीं हागी। उस समय सारा जगत म्लेच्छ हो जायेगा-इसमेें संशय नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ कोे लूूटेगा | सगा भाई भी अपने भाई केे धन कोे हड़प लेगा।
अर्धम बढ़ेगा, धर्म विदा हो जायगा। स्त्रियाँ अपने पतियों की सेवा छोड़ देंगी। वे कठोर स्वभाव वाली और सदैव कटुवादिनी होंगी। वे पति की आज्ञा में नहीं रहेंगी । पति को अपने ही गृह में मांगने पर भी कहीं अन्न-जल या ठहरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा। सर्वत्र पाप-पीड़ा, दुःख-दारिद्रय, क्लेश-अनीति, अनाचार और हाहाकार व्याप्त हो जायंगे।
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कल्कि अवतार कहाँ पर होगा?
उस समय सम्भल ग्राम में विष्णुयशा नामक एक अत्यन्त पवित्र, सदाचारी एवं श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। वे सरल एवं उदार होंगे। वे श्री भगवान के अन्यन्त अनुरागी भक्त होंगे। उन्हीं अत्यन्त भाग्यशाली ब्राह्मण विष्णुयशा के यहाँ सदगुणों के एक मात्र आश्रय, निखिल सृष्टि के सर्जक, पालक एवं संहारक पर ब्रह्म परमेश्वर भगवान कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। उनके रोम-रोम से अदभुत तेजोमयी किरणें छिटकती रहेंगी। वे महान बुद्धि एवं पराक्रम से सम्पन्न, महात्मा, सदाचारी तथा सम्पूर्ण प्रजा के शुभैषी होंगी।
उन प्रभु के (विष्णुयशा के बालक के) चिंतन करते ही उनके पास इच्छा अनुसार वाहन, अस्त्र-शस्त्र, योद्धा और कवच उपस्थित हो जायंगे। वह धर्मविजयी चक्रवर्ती राजा होंगे । वह उदारबुद्धि, तेजस्वी ब्राह्मण दुःख से व्याप्त हुए इस जगत को आनंद प्रदान करेगा। कलि युग का अंत करने के लिये ही उसका प्रादुर्भाव होगा।
भगवान् शंकर स्वयं शिक्षा देंगे उनको
भगवान शंकर स्वयं कल्कि भगवान को शस्त्रास्त्र की शिक्षा देंगे, उन्हें वीर और पराक्रमी बनाएंगे और भगवान परशुराम उनके वेदोपदोष्टा होंगे, उन्हें वेद आदि का अध्ययन कराएंगे ।
वे देवदत्त नामक शीघ्रगामी अश्व पर आरूढ़ होकर राजा के वेष में छिप कर रहने वाले, पृथ्वी में सर्वत्र फैले हुए दस्युओं एवं नीच स्वभाव वाले सम्पूर्ण म्लेच्छों का संहार कर डालेंगे । वे परम पुण्यमय भगवान कल्कि भूमण्डल के सम्पूर्ण पातकियों, दुराचारियों एवं दुष्टों को विनाश कर अश्वमेध नामक महान यज्ञ करेंगे और उस यज्ञ में सम्पूर्ण पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे देंगे।
भगवान कल्कि दस्यु वध में सदा तत्पर रहेंगे। वे जिन-जिन देशों पर विजय प्राप्त करेंगे, उन-उन देशों में काले, मृग चर्म, शक्ति, त्रिशूल तथा अन्य अस्त्र-शस्त्रों की स्थापना करेंगे। वहां उत्तमोत्तम ब्राह्मण उनका श्रद्धा-भक्तिपूर्ण स्तवन करेंगे और प्रभु कल्कि उन ब्राह्मणों का यथोचित सत्कार करेंगे।
भगवान् कल्कि इस धरती से दस्युओ, अधर्मियों एवं पापियों का संहार कर देंगे
वीरवर कल्कि भगवान के कर कमलों से पृथ्वी के सम्पूर्ण दस्युओं, अधर्मियों एवं पापियों का विनाश और अधर्म का क्षय हो जायगा। फिर स्वाभाविक ही धर्म का उत्थान प्रारम्भ होगा। उनका यश तथा कर्म-सभी परम पावन होंगे। वे ब्रह्मा जी की चलायी हुई मंगलमयी मर्यादाओं की स्थापना करके तपस्या के लिये रमणीय वन में प्रवेश करेंगे। फिर इस जगत के निवासी मनुष्य उनके शील-स्वभाव का अनुकरण करेंगे।
मंगलमय भगवान कल्कि के अंगराग को स्पर्श कर बहने वाली वायु ग्राम, नगर, जनपद एवं देश की सारी प्रजा के मन में पवित्रता के भाव भर देगी। उनमें सहज सात्त्विकता उदित हो जायगी। फिर उनकी संतति पूर्ववत हृष्ट-पुष्ट, दीर्घायु एवं धर्म परायण होने लगेगी।
इस प्रकार सर्व भूतात्मा सर्वेश्वर भगवान कल्कि केे अवतरित होने पर पृथ्वी पर पुनः सत्य युग प्रतिष्ठित होगा।
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