रामसेतु एक अजूबा | Ramsetu Ek Ajooba

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रामसेतु एक अजूबा

रामसेतु एक अजूबा

भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाला एकमात्र प्रसिद्ध सेतु है। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, रामसेतु का संबंध रामायण से है। श्रीराम और उनकी वानर सेना ने माता सीता को रावण से मुक्‍त कराने के लिए एक सेतु बनाया था, जिसे रामसेतु नाम दिया गया। धर्मग्रंथों में उल्‍लेख है कि लंका पहुंचने के लिए श्रीराम सेना को समुद्र पर 100 योजन लंबा और 10 योजन चौड़ा सेतु बनाना पड़ा। सेतु के निर्माण में नल नील नाम के वानर-वीरों की अहम भूमिका रही, उन्‍हें यह श्राप मिला था कि उनके हाथ से छुआ या फेका हुआ कोई भी वस्तु कभी डूबेगा नहीं।

रामसेतु के विषय में हम सभी जानते हैं। यह एक सेतु है, जो समुद्र के पार तमिलनाडु में पंबन आइलैंड को श्रीलंका के मन्नार आइलैंड से जाेड़ता है। यह सेतु मनुष्‍य द्वारा बनाया गया है या प्राकृतिक है इस बात पर पिछले कई वर्षों से लगातार बहस चल रही है। हालांकि रामसेतु आज भी एक रहस्‍य है। यही कारण है कि आज भी लोग इस सेतु के विषय में जानने में दिलचस्‍पी रखते हैं। तो आइए जानते हैं रामसेतु से जुड़ी वो बातें, जिन्‍हें जानना अति आवश्यक है।

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सेतु का महत्व

रामसेतु के महत्व हिन्दू और मुसलमानों दोनों ही धर्मों की पौराणिक कथाओं में उद्धरण मिलता है। जहाँ एक तरफ इसे वानर सेना द्वारा बनाया गया रामसेतु मानते हैं, वहीं मुसलमानों का मानना है कि एडम ने इस पुल का उपयोग आदम की चोटी तक पहुंचने के लिए किया था।

​रामसेतु के अनेको नाम

रामसेतु को आज कई नामों से जाना जाता है। जैसे एडम ब्रिज, नल सेतु और सेतु बांध। इसे न सेतू इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सेतु बनाने का विचार वानर सेना के सदस्‍य नल ने ही अन्‍य सदस्‍यों को दिया था। इसलिए नल नील को रामसेतु का इंजीनियर भी कहते हैं। जबकि एडम्स ब्रिज का नाम कुछ प्राचीन इस्लामी ग्रंथों से आया है।

सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग

वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यन्त्रों के द्वारा समुद्रतट पर ले आते थे। तो कुछ वानर सौ योजन लम्बा सूत पकड़े हुए थे, अर्थात पुल का निर्माण सूत से सीध में हो रहा था।- (वाल्मीकि रामायण- 6/22/62)

सेतु का निर्माण समय और आकार

वाल्मीकि रामायण में वर्णन मिलता है कि पुल लगभग 5 दिनों में बन गया जिसकी लम्बाई सौ योजन और चौड़ाई दस योजन की थी। रामायण में इस पुल को नल सेतु की संज्ञा दी गई है। क्योकि नल के निरीक्षण में वानरों ने बहुत ही प्रयत्न पूर्वक इस सेतु का निर्माण किया था।- (वाल्मीकि रामायण-6/22/76)

अंन्य ग्रंथों और पुराणों में भी सेतु का वर्णन

वाल्मीकि रामायण के अलावा कवि कालिदास ने ‘रघुवंश’ के 13वें सर्ग में श्रीराम के आकाश मार्ग से लौटने का वर्णन किया है। इस सर्ग में श्रीराम द्वारा सीता को रामसेतु के बारे में बताने का वर्णन है। यह सेतु कालांतर में समुद्री तूफानों आदि की चोटें खाकर टूट गया था। अंन्य ग्रंथों में कालीदास की रघुवंश में सेतु का वर्णन है। स्कंद पुराण (तृतीय, 1.2.1-114), विष्णु पुराण (चतुर्थ, 4.40-49), अग्नि पुराण (पंचम-एकादश) और ब्रह्म पुराण (138.1-40) में भी श्रीराम के सेतु का जिक्र किया गया है।

7000+ बर्ष पुराना है सेतु

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प्रोजेक्ट रामेश्वरम नाम के एक अध्‍ययन के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कहा है कि 7000 से 18000 साल पहले रामेश्वरम के आइलैंड और श्रीलंका के आइलैंड की खोज हुई थी। यानी ऐसा माना जाता है कि इस पुल की लंबाई 48 किमी है।

रामसेतु का पौराणिक महत्व

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वाल्मीकि की रामायण में सबसे पहले प्रसिद्ध रामसेतु का उल्लेख किया गया है। पौराणिक रूप से यह सेतु भगवान श्रीराम की वानर सेना द्वारा निर्मित माना जाता है। सेना के सदस्य वानर नल ही थे, जिन्होंने सेना के अन्य सदस्यों को सेतु बनाने का निर्देश दिया था। राक्षस राजरावण से अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए भगवान श्रीराम को लंका पहुंचने में मदद करने के लिए इस सेतु का निर्माण किया गया था।

पत्‍थरों पर भगवान श्रीराम का नाम

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दिलचस्‍प बात यह है कि सेतु बनाते समय सभी पत्थरों पर भगवान श्रीराम का नाम उकेरा गया था। इससे भी दिलचस्‍प बात ये है कि जब पत्‍थराें पर वानर सेना द्वारा चलकर पुल पार किया गया, तो यह एक चमत्‍कार ही था कि एक भी पत्‍थर डूबे नहीं। यह सेतु कथित रूप से 15वी शताब्दी तक पैदल चलकर पार करने योग्य था जबतक कि तूफानों ने इस वाहिक को गहरा नहीं कर दिया था। वहाँ स्थित मन्दिर के अभिलेखों के अनुसार रामसेतु पूरी तरह से सागर के जल के ऊपर स्थित था, जब तक कि इसे 1480 ई० में एक चक्रवात ने तोड़ नहीं दिया।

क्या है वैज्ञानिकों का मानना..?

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वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि रामसेतु एक प्राकृतिक संरचना है जो टेक्टोनिक मूवमेंट और कोरल में रेत के फंसने से बनती है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, यह दावा करने के लिए “सबूत” पेश किए गए हैं कि पुल मानव निर्मित ही है। कई हिन्दू दक्षिणपंथी संगठनों का तर्क है पुल पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं है। यह वास्तव में भगवान श्रीराम द्वारा बनाया गया था।

कई बार विवादों में रहा रामसेतु

रामसेतु मुद्दा एक बड़े विवाद में तब फंस गया जब यूपीए सरकार के दौरान सेतुसमुद्रम परियोजना को हरी झंडी दिखाकर सेतु के चारों ओर ड्रेजिंग करने का प्रस्ताव दिया गया, जिसमें दक्षिणपंथी निकायों और तत्कालीन विपक्षी भाजपा ने इसे हिन्दू भावनाओं पर हमला बताया। रामसेतु पर विभिन्न अध्ययनों का प्रस्ताव किया गया है, सबसे हाल ही में 2021 में, जब सरकार ने इसकी उत्पत्ति का पता लगाने के लिए एक पानी के नीचे अनुसंधान परियोजना को मंजूरी दी थी।

क्या रामसेतु मानव निर्मित ही है..?

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हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसे भगवान श्रीराम ने वानर सेना की मदद से बनवाया था। उन्हें श्रीलंका पहुंचने के लिए इस सेतु का निर्माण करना पड़ा। दरअसल, रावण ने भगवान श्रीराम की पत्नी सीता का अपहरण कर उन्हें वहीं कैद कर लिया गया था। हैरानी की बात यह है कि रामायण (5000 ईसा पूर्व) का समय और सेतु का कार्बन एनालिसिस का तालमेल एकदम सटीक बैठता है।

हालांकि, आज भी ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है जो यह बताता है कि पुल मानव निर्मित है। 15 वीं शताब्दी तक, पुल पर चलकर जा सकते थे। रिकॉर्ड बताते हैं कि, 1480 तक पुल पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था। हालांकि, प्राकृतिक आपदाओं ने पुल को समुद्र में पूरी तरह से डुबो दिया।

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