करवा चौथ की व्रत विधि, आरती और कथा
करवा चौथ की व्रत विधि
हिंदू सनातन पद्धति में करवा चौथ विवाहित महिलाओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। इस त्योहार पर महिलाएं हाथों में मेहंदी लगाकर, चूड़ियां पहनकर और सोलह श्रृंगार करके और अपने पति की पूजा करके व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ शादीशुदा या विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि दो दिन चंद्रोदय हो या दोनों दिन न हो तो ‘मातृविद्धा प्रशस्त्यते’ के अनुसार पूर्वविधा लेनी चाहिए।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा अंतर होता है। सबका सार पति की दीर्घायु है।
करवा चौथ व्रत विधि :-
- करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
- व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’
- पूरे दिन निर्जला रहें।
- दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
- आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
- पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
- गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
- रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
- गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
- ‘नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥’
- करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
- तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
- रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
- इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
- पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
करवा चौथ की कथा
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वह पहले उसे खाना खिलाते और फिर खुद खाते। एक बार उसकी बहन अपने ससुराल से मायके आयी थी।
शाम को जब उसके भाई अपना व्यवसाय समाप्त करके घर लौटे तो उसने देखा कि उसकी बहन बहुत परेशान है। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना केवल चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, अतः वह भूख-प्यास से व्याकुल हो गयी है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो चतुर्थी का चंद्रमा उदित हो रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन खुशी-खुशी सीढ़ियाँ चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देती है और खाना खाने बैठ जाती है।
जब वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह परेशान हो जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करता है। वह उस पर उगने वाली सुई जैसी घास को इकट्ठा करती रहती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार उसकी भाभी उसे अगली भाभी से अनुरोध करने के लिए कहती है।
इस प्रकार जब छठी भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था इसलिए उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे। उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
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सबसे आखिर में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है। यह देखकर करवा उसे जोर से पकड़ लेती है और अपने पति को दोबारा जीवित करने के लिए कहती है। भाभी उसे छुड़ाने के लिए नोचती है, खींचती है, लेकिन फिर भी करवा उसे नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देखकर भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी उंगली को फाड़कर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना पति वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश – माँ गौरी, जिस प्रकार करवा को आपसे चिर सुहागन का वरदान मिला है, वैसा ही सभी सुहागिन स्त्रियों को मिले।
करवा मैया की आरती
ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया।।
ओम जय करवा मैया…
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी।।
ओम जय करवा मैया…
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कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती।।
ओम जय करवा मैया…
होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे।।
ओम जय करवा मैया…
करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे।।
ओम जय करवा मैया…