गोत्र क्या होता है, और क्यों है इसका महत्व
बहुत से लोगों को यह नहीं पता होता है कि गोत्र क्या होता है या उनका गोत्र क्या है। ऐसे में आज हम विस्तार से जानेंगे कि हिन्दू धर्म में गोत्र का क्या महत्व है और इसे कैसे पता लगाया जा सकता है।
गोत्र क्या होता है?
गोत्र: हिन्दू समाज में गोत्र शब्द का अर्थ कुल होता है। गोत्र प्राचीन मानव समाज द्वारा बनाए गए रीति-रिवाजों का भी हिस्सा है जिससे यह निर्धारित किया जाता है कि कोई व्यक्ति किस पूर्वज का वंशज है। एक वंश के सभी वंशज मूलतः एक ही पूर्वज से संबंधित होते हैं। गोत्र का महत्व इतना अधिक है कि प्रत्येक पूजा या धार्मिक अनुष्ठान में जहाँ संकल्प लिया जाता है, पूजा कराने वाले पुजारी को यजमान का गोत्र अवश्य पूछना पड़ता है। पुराने समय के लोग अक्सर अपना गोत्र जानते थे। अगर आप आज के लोगों से उनका गोत्र पूछें तो वे आसमान की ओर देखने लगते हैं।
अपना गोत्र कैसे प्राप्त करें? अपना गोत्र कैसे जानें?
किसी भी व्यक्ति का गोत्र उसके पूर्वजों से संबंधित होता है। आपके पूर्वज जिस ऋषि से जुड़े होंगे, आपका गोत्र उसी वंश के अंतर्गत निकलेगा। ऐसे में आप अपनी वंशावली में अपना गोत्र देख सकते हैं। सबसे आसान तरीका है कि आप अपने घर के बड़ों से अपने गोत्र के बारे में पूछें। इसके बारे में अपने दादा, परदादा या अपने पिता से सीखें। अगर आपके पाटीदार यानी आपके चाचा या गांव के पाटीदार का गोत्र आपके गोत्र का है तो आप इस तरह से भी पता लगा सकते हैं।
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बस यह जान लें कि आपके कुल का नाम इन आठ ऋषियों में से एक के नाम पर है। अब ऐसी स्थिति में आपको बस अपनी वंशावली किताब किसी पंडित को दिखानी है। या फिर आपको अपने बड़ों से इस बारे में पूछना होगा। कभी-कभी हमारे घर के पुराने पंडित या पुजारी को पता होता है कि हमारा गोत्र क्या है। तो वहाँ से भी आप इसके बारे में पता लगा सकते हैं।
मुख्य कुल/गोत्र कौन से हैं..?
मुख्य गोत्रों की बात करें तो यह 115 है जो ऋषियों के नाम, और हमारा गोत्र भी है।
- अत्रि गोत्र,
- भृगु गोत्र,
- आंगिरस गोत्र,
- मुद्गल गोत्र,
- पातंजलि गोत्र,
- कौशिक गोत्र,
- मरीच गोत्र,
- च्यवन गोत्र,
- पुलह गोत्र,
- आष्टिषेण गोत्र,
- उत्पत्ति शाखा,
- गौतम गोत्र,
- वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ) पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र
- वात्स्यायन गोत्र,
- बुधायन गोत्र,
- माध्यन्दिनी गोत्र,
- अज गोत्र,
- वामदेव गोत्र,
- शांकृत्य गोत्र,
- आप्लवान गोत्र,
- सौकालीन गोत्र,
- सोपायन गोत्र,
- गर्ग गोत्र,
- सोपर्णि गोत्र,
- शाखा गोत्र,
- मैत्रेय गोत्र,
- पराशर गोत्र,
- अंगिरा गोत्र,
- क्रतु गोत्र,
- अधमर्षण गोत्र,
- बुधायन गोत्र,
- आष्टायन कौशिक गोत्र,
- अग्निवेष भारद्वाज गोत्र,
- कौण्डिन्य गोत्र,
- मित्रवरुण गोत्र,
- कपिल गोत्र,
- शक्ति गोत्र,
- पौलस्त्य गोत्र,
- दक्ष गोत्र,
- सांख्यायन कौशिक गोत्र,
- जमदग्नि गोत्र,
- कृष्णात्रेय गोत्र,
- भार्गव गोत्र,
- हारीत गोत्र,
- धनञ्जय गोत्र,
- पाराशर गोत्र,
- आत्रेय गोत्र,
- पुलस्त्य गोत्र,
- भारद्वाज गोत्र,
- कुत्स गोत्र,
- शांडिल्य गोत्र,
- भरद्वाज गोत्र,
- कौत्स गोत्र,
- कर्दम गोत्र,
- पाणिनि गोत्र,
- वत्स गोत्र,
- विश्वामित्र गोत्र,
- अगस्त्य गोत्र,
- कुश गोत्र,
- जमदग्नि कौशिक गोत्र,
- कुशिक गोत्र,
- देवराज गोत्र,
- धृत कौशिक गोत्र,
- किंडव गोत्र,
- कर्ण गोत्र,
- जातुकर्ण गोत्र,
- काश्यप गोत्र,
- गोभिल गोत्र,
- कश्यप गोत्र,
- सुनक गोत्र,
- शाखाएं गोत्र,
- कल्पिष गोत्र,
- मनु गोत्र,
- माण्डब्य गोत्र,
- अम्बरीष गोत्र,
- उपलभ्य गोत्र,
- व्याघ्रपाद गोत्र,
- जावाल गोत्र,
- धौम्य गोत्र,
- यागवल्क्य गोत्र,
- और्व गोत्र,
- दृढ़ गोत्र,
- उद्वाह गोत्र,
- रोहित गोत्र,
- सुपर्ण गोत्र,
- गालिब गोत्र,
- वशिष्ठ गोत्र,
- मार्कण्डेय गोत्र,
- अनावृक गोत्र,
- आपस्तम्ब गोत्र,
- उत्पत्ति शाखा गोत्र,
- यास्क गोत्र,
- वीतहब्य गोत्र,
- वासुकि गोत्र,
- दालभ्य गोत्र,
- आयास्य गोत्र,
- लौंगाक्षि गोत्र,
- चित्र गोत्र,
- विष्णु गोत्र,
- शौनक गोत्र,
- पंचशाखा गोत्र,
- सावर्णि गोत्र,
- कात्यायन गोत्र,
- कंचन गोत्र,
- अलम्पायन गोत्र,
- अव्यय गोत्र,
- विल्च गोत्र,
- शांकल्य गोत्र,
- उद्दालक गोत्र,
- जैमिनी गोत्र,
- उपमन्यु गोत्र,
- उतथ्य गोत्र,
- आसुरि गोत्र,
- अनूप गोत्र,
- आश्वलायन गोत्र
ऐसे में पूरी हिन्दू जातियाँ इसी 115 गोत्रों में विभाजित है या यूँ कहें कि इन्हीं 115 ऋृषियों के वह वंशज हैं। इसमें से ब्राह्मणों में शाण्डिल्य को सर्वश्रेष्ठ गोत्र माना जाता है। यह तप, वैदिक ज्ञान को धारण करने वाले तीन ब्राह्मणों के उच्च गोत्र गौतम, गर्ग और शाण्डिल्य में से एक है।
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