Hindu Navavarsh हिन्दू नववर्ष का विक्रम संवत 2080 में प्रवेश

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हिन्दू नववर्ष 2023
नववर्ष संपूर्ण जगत में एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के भिन्न-भिन्न स्थानों पर नववर्ष की तिथि भी भिन्न-भिन्न होती है। भिन्न-भिन्न संप्रदायों के नववर्ष समारोह भी भिन्न-भिन्न होते हैं और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में इसका महत्व भी भिन्न-भिन्न होता ही है।
- हिन्दू नववर्ष 2023, विक्रमी संवत 2080.
- बुधवार, 22 मार्च 2023.
- प्रतिपदा तिथि प्रारंभ : 21 मार्च 2023 को रात 10 बजकर 53 मिनट पर.
- प्रतिपदा तिथि समाप्त : 22 मार्च 2023 को रात्रि 08:21 बजे.
- संवत्सर- हिन्दू वर्ष का नाम.
अन्य समुदायों के नववर्ष
भारत में भी भिन्न-भिन्न राज्यों में नए साल की तिथियों में अंतर होता है या यूं कहें कि भिन्न-भिन्न समुदायों में नववर्ष की तिथियों में अंतर होता है। ईसाई धर्म के लोग ग्रिगोरियन कैलेंडर के आधार पर 1 जनवरी को अपना नववर्ष मनाते है। इसी प्रकार चीन के लोग लूनर कैलेंडर के आधार पर, इस्लाम के अनुयायी हिजरी सम्वंत के आधार पर, पारसी नववर्ष नवरोज से, पंजाब में नववर्ष वैशाखी पर्व से, जैन नववर्ष दीपावली के अगले दिन से मनाया जाता है।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
हिन्दू नववर्ष को महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी, राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में थापना, जम्मू-कश्मीर में नवरेह एवं सिंधी क्षेत्र में चेती चाँद के नाम से जाना जाता है।
उत्तर भारत के हिन्दू समुदाय में चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष का पर्व मनाया जाता है। इस साल 2023 में हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2080, पिंगल संवत्सर का स्वागत बुधवार 22 मार्च 2023 के दिन किया जायेगा। हिन्दू धर्म में इस दिन को साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है। हिन्दू नववर्ष उत्सव का दिन है। 2080 के नव संवत्सर को ‘पिंगल’ नाम से जाना जाएगा। इस साल संवत के राजा बुध और मंत्री शुक्र होंगे।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व
हिन्दू नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, पूर्व काल से इसका कई ऐतिहासिक महत्व है। यह त्यौहार पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है, मान्यता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही किया था। इसमें न केवल ब्रह्माजी और उनके द्वारा बनाए गए ब्रह्माण्ड के प्रमुख देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षसों, गंधर्वों, ऋषियों, नदियों, पहाड़ों, जानवरों और पक्षियों और कीड़ों, बीमारियों और उनके उपचारों की भी पूजा की जाती है। इसलिए हर साल नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसलिए इस तिथि को ‘नव संवत्सर’ भी कहा जाता है।
हिन्दू नववर्ष मनाने के कई ऐतिहासिक महत्व हैं, जिन्हें हम निम्नलिखित कारणों से जान सकते हैं, जो इस प्रकार हैं-
- इस दिन के सूर्योदय से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी थी।
- सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य की स्थापना की थी। उन्हीं के नाम से विक्रमी संवत का प्रथम दिन प्रारंभ होता है।
- यह भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक का दिन है।
- यह शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी नवरात्रि का पहला दिन है।
- राजा विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त करने और दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने के लिए इसी दिन को चुना था। विक्रम संवत की स्थापना हुई।
- युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
हिन्दू नववर्ष की विशेषताएँ
हिन्दू नववर्ष हजारों वर्षो से हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र, शुभ एवं महत्वपूर्ण दिनों में शामिल रहा है। हिन्दू धर्म में नववर्ष को नवीनता का प्रतीक माना गया है एवं इस अवसर पर पूजा-पाठ एवं विभिन प्रकार के शुभ कार्यो को करने की परंपरा रही है। हिन्दू नववर्ष को विक्रम संवत कैलेंडर के आधार पर मनाया जाता है जिसका प्रारंभ उज्जैन के महान शासक सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शकों को पराजित करने के उपलक्ष्य में 58 ई. पू. में किया था।
वैज्ञानिक पद्धति से तैयार किया गया विक्रम संवत कैलेंडर पूर्ण रूप से वैज्ञानिक गणना पर भी आधारित है जहाँ नववर्ष को प्रतिवर्ष चैत्र माह में मनाया जाता है। चैत्र माह में प्रकृति में चारों ओर उत्साह एवं सौंदर्य प्रदर्शित होता है एवं बसंत ऋतु का आगमन होता है। हिन्दू नववर्ष के अवसर पर सम्पूर्ण प्रकृति ही नए साल का स्वागत करने के लिए तैयार प्रतीत होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी हिन्दू नववर्ष को अत्यंत पवित्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत का आधिकारिक कैलेंडर
भारत सरकार द्वारा 22 मार्च 1957 को ग्रिगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर) के साथ भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या कहे कि ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ को आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया था जो की शक संवत पर आधारित है। शक संवत को 78. ईस्वी में शकों के महान शासक कनिष्क द्वारा जारी किया गया था जिसे ही भारत सरकार द्वारा आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया है।


हिन्दू नववर्ष FAQ?
हिन्दू नववर्ष क्यों मनाया जाता है ?
हिन्दू नव वर्ष का आयोजन नए साल के अवसर पर किया जाता है। हालांकि हिन्दू नववर्ष 1 जनवरी को शुरू ना होकर प्रतिवर्ष चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। यह दिवस विक्रम सम्वत के आधार पर मनाया जाता है। विस्तार पूर्वक पढ़ेः
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हिन्दू नववर्ष कब मनाया जाता है ?
हिन्दू नववर्ष को प्रतिवर्ष विक्रम संवत कैलेंडर के आधार पर चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है जिसे की हिन्दू नव संवत्सर या नया संवत के नाम से भी जाना जाता है। विस्तार पूर्वक पढ़ेः
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वर्ष 2023 में हिन्दू नववर्ष कब मनाया जायेगा ?
इस साल 2023 में हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2080, पिंगल संवत्सर का स्वागत बुधवार 22 मार्च 2023 के दिन किया जायेगा। हिन्दू धर्म में इस दिन को साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है। विस्तार पूर्वक पढ़ेः
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हिन्दू नववर्ष को मनाने के इतिहास की जानकारी प्रदान करें ?
पूर्व काल से इसका कई ऐतिहासिक महत्व है। यह त्यौहार पौराणिक दिन से जुड़ा हुआ है, जो इस प्रकार हैं-
- इस दिन के सूर्योदय से ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी थी।
- सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य की स्थापना की थी। उन्हीं के नाम से विक्रमी संवत का प्रथम दिन प्रारंभ होता है।
- यह भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक का दिन है।
- यह शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी नवरात्रि का पहला दिन है।
- राजा विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त करने और दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने के लिए इसी दिन को चुना था। विक्रम संवत की स्थापना हुई।
- युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
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हिन्दू नववर्ष को विभिन राज्यों में किस नाम से मनाया जाता है ?
हिन्दू नववर्ष को महाराष्ट्र, गोवा और कोंकण क्षेत्र में गुड़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी, राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में थापना, जम्मू-कश्मीर में नवरेह एवं सिंधी क्षेत्र में चेती चाँद के नाम से जाना जाता है। विस्तार पूर्वक पढ़ेः
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भारत सरकार द्वारा आधिकारिक कैलेंडर कौन सा है ?
भारत सरकार द्वारा आधिकारिक कैलेंडर के रूप में भारतीय राष्ट्रीय पंचांग या ‘भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर’ को अपनाया गया है जो की शक सम्वत पर आधारित है। साथ ही सरकार द्वारा ग्रिगोरियन कैलेंडर (ईसाई कैलेंडर) को भी आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया है। विस्तार पूर्वक पढ़ेः
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
हिन्दू नववर्ष क्यों खास है ?
हिन्दू नववर्ष जीवन में नवीनता का प्रतीक है। यह दिवस धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से शुभ होता है ऐसे में इस अवसर पर नवीन संकल्प लेना अत्यंत फलदायक माना जाता है। साथ ही इस दिवस के सभी पहर को धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है ऐसे में इस अवसर पर सभी कार्य फलदायी होते है।
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