जामवंत कथा क्या आज भी जिंदा हैं जामवंत?




जामवंत कथा
प्राचीन काल में इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, चंद्र पुत्र, पवन पुत्र, वरुण पुत्र, अग्नि पुत्र आदि देवताओं के पुत्रों का अधिक वर्णन मिलता है। उक्त देवताओं को स्वर्ग का निवासी कहा गया है। एक ओर जहां हनुमानजी और भीम को पवन पुत्र माना गया है, वहीं जामवन्तजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवन्त की माता एक गंधर्व कन्या थी। जब पिता देव और माता गंधर्व थीं तो वे कैसे रीछमानव हो सकते हैं?
एक दूसरी मान्यता अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांकि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है।
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सनातन संस्कृति मे पौराणिक कथाओं के साथ-साथ मंत्र, आरती और पुजा-पाठ का विधि-विधान पूर्वक वर्णन किया गया है। यहाँ पढ़े:-
जाम्बवंत भगवान ब्रह्मा के पुत्र थे। जिन्हें हमेशा अमर होने का वरदान प्राप्त था। उनका जन्म सतयुग काल में हुआ था व द्वापर युग के अंत तक वे जीवित रहे थे। जामवंत जन्म से ही अत्यधिक बुद्धिमान व शक्तिशाली थे। अपनी बुद्धि के बल पर ही उन्होंने अनेक महारथियों को परास्त कर दिया था। मुख्यतया त्रेता युग में उन्होंने भगवान राम की बहुत सहायता की थी। उन्हें अलग-अलग भाषाओँ में कई नामों से जाना जाता हैं। जैसे कि जामवंत, जाम्बवंत, जामुवन, जामवंता, जाम्बावान, सम्बुवन इत्यादि। आज हम उनके बारे में विस्तार से जानेंगे।
जामवंत का जन्म
माना जाता है कि देवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए जामवन्त का जन्म अग्नि के पुत्र के रूप में हुआ था। उनकी माता एक गंधर्व कन्या थीं।
सृष्टि के आदि में प्रथम कल्प के सतयुग में जामवन्तजी उत्पन्न हुए थे। जामवन्त ने अपने सामने ही वामन अवतार को देखा था। वे राजा बलि के काल में भी थे। राजा बलि से तीन पग धरती मांग कर भगवान वामन ने बलि को चिरंजीवी होने का वरदान देकर पाताल लोक का राजा बना दिया था। वामन अवतार के समय जामवन्तजी अपनी युववस्था में थे। जामवन्त को चिरंजीवियों में शामिल किया गया है जो कलियुग के अंत तक रहेंगे।
जामवन्त के बारे में संपूर्ण जानकारी
चूँकि जामवंत भी भगवान परशुराम व हनुमान की भांति अमर थे। इसलिये उनका योगदान भी कई युगों तक रहा। साथ ही उन्होंने भगवान विष्णु के कई अवतारों को धरती पर जन्म लेते व अपना कार्य करते देखा। उनकी मुख्य भूमिका त्रेतायुग में भगवान राम के समय रही व एक छोटी भूमिका द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय रही। आज हम दोनों युगों में उनके योगदान को जानेंगे।
त्रेता युग में जामवंत का योगदान
जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में अयोध्या नगरी में महाराज दशरथ के घर जन्म लिया तब उनका मुख्य उद्देश्य पापी रावण का अंत करना था जो कि लंका का राजा था। इसी के लिए उन्होंने 14 वर्षों का कठिन वनवास भोग व माता सीता का रावण के द्वारा अपहरण करवाया गया।
जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में वानर राज सुग्रीव से मिले तो जाम्बवंत की सुग्रीव के मंत्री के रूप में भगवान श्रीराम से भेंट हुई। तब से उन्होंने भगवान राम की हर विपत्ति में अपनी बुद्धिमता से सहायता की।
जब वानर सैनिकों का एक दल दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज में निकला तब उसमे हनुमान, जाम्बवंत, अंगद, नल व नीर थे। जब वे समुंद्र किनारे पहुंचे तब वहां से आगे जाना असंभव था। इस समय केवल हनुमान व जाम्बवंत ही थे जो समुंद्र पार करके उस ओर जा सकते थे। चूँकि जाम्बवंत जी अब बूढ़े हो चुके थे इसलिये वे समुंद्र को लांघने में असमर्थ थे।
उन्होंने हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद दिलाई जिन्हें बचपन में एक श्राप के कारण भूल चुके थे। जाम्बवंत के द्वारा ही याद दिलाने पर हनुमान जी को अपनी शक्तियां वापस मिली तथा वे माता सीता को खोजने में सफल रहे।
इसके अलावा भी जाम्बवंत जी भगवान राम व रावण के युद्ध के समय योजना बनाने, कोई विपत्ति आने पर उसका हल निकलने जैसे इत्यादि कार्य किया करते थे। जाम्बवंत की बुद्धिमता के कारण ही भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम को बहुत सहायता मिली।
द्वापर युग में जामवन्त का योगदान
एक बार जब श्रीकृष्ण के ऊपर स्यमंतक मणि के चोरी होने के मिथ्या आरोप लगे तो उन्होंने उसकी खोज प्रारंभ की। वह मणि जाम्बवंत के पास थी जो एक गुफा में रहते थे। जब भगवान श्रीकृष्ण को इसके बारे में पता चला तो उनका जाम्बवंत से भीषण युद्ध हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला जिसमे अंत में जाम्बवंत जी पराजित हुए।
भगवान ब्रह्मा के पुत्र होने व स्वयं को मिले वरदान के कारण जाम्बवंत जी किसी से हार नही सकते थे इसलिये उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह कैसे किसी मानव से हार सकते है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से उनका परिचय जाना व अपना असली अवतार दिखाने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि वे स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं व राम अवतार के बाद यह उनका अगला जन्म हैं।
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यह सुनकर जाम्बवंत जी को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ व उन्होंने श्रीकृष्ण को अंतिम बार भगवान राम के रूप में ही दर्शन देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनका यह अनुरोध स्वीकार किया व उन्हें त्रेतायुग के भगवान श्रीराम के दर्शन दिए।
इसके बाद जाम्बवंत जी ने उन्हें वह मणि लौटा दी व अपनी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह करने का प्रस्ताव रखा। श्रीकृष्ण ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया व उनकी पुत्री जाम्बवंती के साथ विवाह किया। इसके बाद जाम्बवंत जी ने मोक्ष प्राप्त किया।
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